रीवा : भारत देश में अनेकों ऐसे अदभुत मंदिर व देवालय और तीर्थ स्थान हैं, जिनके कई रहस्य हैं और रोचक कहानियां भी हैं. प्रत्येक देवालयों की कहानी अदभुत और निराली भी है. इनके किस्से और कहानियां सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि क्या ऐसा भी हो सकता है? ईटीवी भारत आज आपको एक ऐसे धाम के बारे में बताने जा रहा है, जिसके बारे में शायद आपने न तो कभी सुना होगा और न ही कभी देखा होगा.
दिव्य शिव मंदिर की विचित्र और अनसुलझी कहानी
यह एक ऐसा दिव्य शिव मंदिर है, जिसकी कहानी विचित्र और अनुसुलझी भी है.इतिहासकार असद खानके मुताबिक, "भगवान शिव के इस अनोखे मंदिर को आपसी भाईचारे और सौहार्द का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि मंदिर की पश्चिमी दीवार पर अरबी भाषा में इस्लाम का पहला कलमा लिखा हुआ है और चौखट पर अल्लाह लिखा हुआ है. वहीं मंदिर के महंत की कहानी कुछ अलग ही कथा बयां करती है, लेकिन मंदिर के निर्माण से जुडे़ दोनों के बताए हुए कुछ किस्से आपस में मेल भी खाते हैं. जिसके चलते इस प्राचीन मंदिर से जुडे़ किस्से और कहानियां इसे और भी ज्यादा अदभुत और अकल्पनीय बनाते हैं."
यहां पर स्थापित है भगवान शिव का दिव्य मंदिर
भगवान शिव का दिव्य और अनोखा मंदिर मध्य प्रदेश के रीवा शहर से महज 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रांची झारखंड हाइवे के गुढ़ विधानसभा क्षेत्र स्थित खड्डा गांव में है. यह आलौकिक शिवधाम रौरियानाथ महादेवलाय शिव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. इस मंदिर की बनावट देखकर आपको इसे बार-बार निहारने का मन करेगा. मंदिर का स्वरूप चारों ओर से वैसा ही दिखाई देता है, जैसा की ठीक सामने से दिखाई देता है. कहा जाता है की इस दिव्य मंदिर के गर्भगृह पर शिवलिंग रूप में स्वयं भगवान भोलेनाथ और वाम भाग में स्वयं मां पार्वती विराजित हैं. जिससे इस मंदिर की मान्यता और भी बढ़ जाती है.
इस तरह है मंदिर की बनावट
बताया गया की प्राचीन शिव मंदिर के पश्चिमी हिस्से के बरामदे से प्रथम तल में पहुंचने के लिए तंग सीढ़ियां है. भूमि तल की कोठरियों के ठीक ऊपर चार स्तंभों पर टिकी छतरियां हैं. इसका गुंबद मुगल शैली से प्रभावित है. इन गुंबदों में पाषाण खण्डों की जगह पतले देशी ईटों के साथ सुर्खी व चूने का उपयोग किया गया है. गर्भगृह के भीतरी हिस्से की दीवारों में पशु-पक्षी एवं विभिन्न तरह की कई आकृतियां उकेरी गई है. इसके द्वितीय तल में चारों ओर खिड़कियां है. मंदिर का मुख्य गुम्बद नागर शैली से प्रभावित है. मंदिर के विभिन्न हिस्सों में लगे पत्थर और प्रतिमाएं कलचुरी कालीन के प्रतीत होते हैं.
मंदिर की दिव्यता और कई अनसुलझे रहस्य
जानकारों की माने तो मंदिर के गर्भगृह में भगवान भोलेनाथ और स्वयं मां पार्वती विराजित हैं. महंत कहते हैं की मंदिर के ठीक पीछे एक तालाब है. जब इस तालाब में जल भरा होता है. तब सभी घोड़ों वाले रथ में सवार सूर्य देवता का प्रतिबिंब परछाई बनकर इस तालाब के पानी में दिखाई देता है, जो अपने आप में एक अदभूत घटना है. इसी तरह से रौरियानाथ शिव मंदिर में एक और घटना होती है. जिसका इसका वर्णन भी रामचरित मानस और अन्य ग्रंथ में पाया जाता है. जिसकी चौपाई से ही सिद्ध होता है कि यहां पर भगवान भोलेनाथ और स्वयं माता पार्वती विराजमान हैं.
रामचरित मानस में इस मंदिर का वर्णन
"उदय अस्त गिरवर कैलाशु" ऊमा सहित तहूं करै निवासू" महंत रामाचार्य पाठक ने इस चौपाई का अर्थ भी बताया कि जिस शिव मंदिर में सूर्य उदय होने के दौरान पहली किरण मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर पड़े और सूर्यास्त के दौरान भी सूर्य की किरणें शिवलिंग को स्पर्श करे, उस मंदिर में स्वयं भोलेनाथ और मां पार्वती विराजमान होते हैं. रामचरित मानस में लिखी चौपाई के अनुसार भगवान शिव के इस अलौकिक रौरियानाथ मंदिर में उसी प्रकार से सूर्य की किरणें शिवलिंग को स्पर्श करती है, जैसा रामचरित मानस में इसका वर्णन है. इसी के चलते इस अलौकिक मंदिर की मान्यताएं और भी बढ़ जाती है.
शिव के सेवक बनकर मंदिर में वास करते हैं नाग देवता
बताया गया की इस मंदिर में एक विशालकाय नाग देवता भी वास करते हैं. यह भगवान भोलेनाथ के सेवक भी माने जाते हैं. मंदिर के महंत का दावा है कि कई बार शाम की आरती के समय नाग देवता प्रकट होते हैं. शिवलिंग से लिपटकर फन फैलाकर बैठ जाते हैं. आरती होने के पश्चात वह अचानक अदृश्य भी हो जाते हैं. इसके अलावा कई वर्ष पूर्व मंदिर में एक चमत्कारिक घटना भी हो चुकी है. बताते हैं कि सीधी जिले का एक परिवार अपने बच्चे को मर्णाशन हालत में मंदिर लेकर आया था. जैसे ही वह मंदिर पहुंचा अचानक उसने अपनी आंखे खोल दी और पीने के लिए पानी मांगने लगा. बच्चे के परिवार ने इस घटना को भोलेनाथ का चमत्कार माना और पूजा-अर्चना करके बच्चे के साथ वापस लौट गए.
मंदिर की दीवार पर लिखा है कलमा
इतिहासकार असद खानके मुताबिक "सन् 1755 ई. में राजा अवधूत सिंह के पुत्र केशव राय ने इस भव्य रौरियानाथ महा देवलाय मंदिर का निर्माण करवाया था. राजा केशव राय की माता और पत्नी मुस्लिम थी. राजा केशव राय भगवान शिव के बड़े उपासक थे. खड्डा गांव में मंदिर निर्माण के दौरान केशव राय की माता ने उनसे गुजारिश की थी की यह तो अल्लाह, भगवान का घर है, सब एक है. इसमें कलमा लिखवा दो. तब तब राजा केशव राय ने मंदिर के तलाब की ओर पश्चिम दिशा की दीवार पर अरबी भाषा में लिखा. इस्लाम के पहले कलमा वाला पत्थर दीवार पर लगवा दिया, लेकिन मंदिर के निर्माण में लगे शिल्पकारों की गलती से वह पत्थर उल्टा लगा दिया गया, जो आज भी उसी स्थिति में लगा हुआ है.