रायपुर: 18 नवंबर 1962 को 114 अहीर सैनिकों की शहादत हुई थी. इन सैनिकों को मिशन अहीर रेजिमेंट के राष्ट्रीय संयोजक रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु ने रायपुर में याद किया. कैंडल जलाकर वीर सैनिकों की शहादत को नमन किया. इसके साथ ही रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु ने देश में अहीर रेजीमेंट बनाने की मांग की. रायपुर के कौशल यादव चौक पर वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी गई. इस अवसर पर रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु ने मशाल जलाकर अहीर रेजीमेंट की मांग को बुलंद किया.
अहीर सैनिकों की हुई थी शहादत: 18 नवंबर1962 में रेजांगला के युद्ध के दौरान शहीद हुए 114 अहीर जवानों को याद किया गया. इस दौरान कैंडल जलाकर लोगों ने शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी, साथ ही मशाल जलाकर अहीर रेजीमेंट की मांग की. अहीर रेजिमेंट के राष्ट्रीय संयोजक रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु ने बताया कि 18 नवंबर 1962 एक ऐतिहासिक दिन है. इस दिन शूरवीर ,वीर अहीर , जिन्होंने देश की सीमा की रक्षा की खातिर खतरनाक हालात में चीन के सैनिकों को टक्कर दी. इस दौरान उनसे मुकाबला करते हुए हमारे 114 जवानों ने शहादत दी. उनकी कुर्बानी को हमारा देश सदैव याद रखेगा.
अहीर रेजिमेंट की मांग हम लंबे समय से करते आ रहे हैं लेकिन इस पर अब तक किसी ने भी ध्यान नहीं दिया है.आजादी के पहले अंग्रेजों ने अहीरों को बागी कौम का दर्जा दिया था. ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि 1857 का गदर मेरठ की छावनी से शुरू हुआ था. उसके बाद यह धीरे धीरे पूरे देश में फैलता गया. इस विद्रोह के चार मुख्य सूत्रधार थे जिनमें से दो अहीर थे; राव तुलाराम यादव तथा राव कृष्ण गोपाल यादव जिनके चलते यादवों को अंग्रेजों ने बागी कौम घोषित कर दिया. अंग्रेजों ने अनेक जातिगत और क्षेत्रगत रेजिमेंटों का गठन किया पर अहीर रेजिमेंट नहीं बनाई: रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु, मिशन अहीर रेजिमेंट के राष्ट्रीय संयोजक
"प्रथम विश्व युद्ध में अहीर सैनिकों ने दी शहादत": रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु ने दावा किया कि फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में 74,000 भारतीय सैनिकों को शहादत मिली. इन सैनिकों में 7,500 से ज्यादा अहीर थे. उसके बाद साल 1924 में अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा का गठन हुआ. इस सभा ने अहीर रेजीमेंट की स्थापना का जिम्मा उठाया. उसके बाद सेकेंड वर्ल्ड वॉर में 87000 भारतीय सैनिक शहीद हुए. जिसमें 9000 से ज्यादा अहीर थे. इस युद्ध में अंग्रेजों ने 18 भारतीय सैनिकों को तत्कालीन सर्वोच्च वीरता पुरस्कार दिया था. जिसमें तीन सैनिक अहीर थे. इन्हें विक्टोरिया क्रॉस तथा जॉर्ज क्रॉस दिया गया था.
"अंग्रेजों ने दोबारा अहीरों को बागी कौम में डाला": इस मुद्दे पर रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रदीप यदु ने कई अहम जानकारियां दी. उन्होंने कहा कि सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान 1941-42 में करीब 40,000 भारतीय सैनिकों ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिंद सेना को ज्वाइन किया. इसमें हजारों की संख्या में अहीर सैनिक थे. उसके बाद एक बार फिर अंग्रेजों ने अहीरों को बागी कौम की संज्ञा दे डाली. आजादी के बाद यादव समाज ने लगातार अहीर रेजिमेंट की मांग की. रीजनीति और अलग अलग समीकरणों के बीच इस मांग को बारी बारी से उलझाया गया.