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रतलाम में जनसुनवाई से खाली हाथ लौटे 2 अनाथ भाई, अनुकंपा नियुक्ति और NPS की राशि की मांग - RATLAM JANSUNWAI ORPHAN BROTHERS

रतलाम में पिता की मृत्यु के 3 साल बाद भी अनाथ बच्चों को नहीं मिला एनपीएस की राशि.

RATLAM ORPHAN BROTHERS DEMAND JOB
अनुकंपा नियुक्ति और NPS की राशि के लिए दर-दर भटक रहे अनाथ बच्चे (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 28, 2025, 10:25 PM IST

रतलाम: जिला मुख्यालयों में प्रत्येक मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई में आवेदकों के चक्कर लगाने का सिलसिला खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. रतलाम में मंगलवार को फिर 2 बेरोजगार युवक बिना सुनवाई के ही घर लौटने को मजबूर हो गए. आवेदकों के माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन आदिवासी जाति कल्याण विभाग के चक्कर लगाते-लगाते दोनों अनाथ युवक थक चुके हैं. जनसुनवाई में भी उन्हें वही रटा-रटाया जवाब दे दिया गया कि विभाग में पद रिक्त नहीं होने से अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा रही है. वहीं, उनके पिता सुरेश पारगी के एनपीएस अकाउंट की राशि और मृत्यु उपरांत मिलने वाली विभागीय सहायता भी इन्हें नहीं मिल पाई है.

पिता की मृत्यु के 3 साल बाद भी नहीं मिली राशि

दरअसल, जनसुनवाई में आवेदक अविनाश पारगी और उसके छोटे भाई ने जनसुनवाई कर रहे अधिकारी के सामने गुहार लगाई कि उनके पिता सुरेश पारगी की 3 वर्ष पहले मृत्यु हो चुकी है. वहीं, उनकी माता का भी देहांत 6 साल पहले हो चुका है. दोनों अनाथ हो गए हैं और वे बेरोजगार है, लेकिन उन्हें अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिल रही है. पिता की मृत्यु के 3 वर्ष बाद भी एनपीएस की राशि नहीं मिली है.

पिता की मृत्यु के 3 साल बाद भी नहीं मिला एनपीएस की राशि (ETV Bharat)

'एनपीएस राशि का आवेदन विभाग को भेजा गया'

इसके साथ ही सीएम हेल्पलाइन, जनसुनवाई और विभागीय अधिकारियों से गुहार लगाने के बाद भी अब तक उन्हें ना तो अनुकंपा नियुक्ति मिली है और ना ही एनपीएस की राशि मिल पाई है. जनजाति विभाग की सहायक आयुक्त रंजना सिंह का कहना है कि "पद रिक्त नहीं होने की वजह से अनुकंपा नियुक्ति अब तक नहीं दी जा सकी है. एनपीएस की राशि के संबंध में संबंधित विभाग में आवेदन को फॉरवर्ड किया गया है."

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश की जनसुनवाईयों में कभी आवेदक लोटते हुए तो कभी दंडवत लगाते हुए तो कभी आवेदनों की माला पहनकर जनसुनवाई में पहुंच जाते हैं. जनसुनवाई में पहुंचने वाले कई आवेदकों को समाधान ही नहीं मिल पा रहा है और यही वजह है कि ऐसे आवेदक अजीबो गरीब तरीके से जनसुनवाई में पहुंचकर अपनी बात सरकार तक पहुंचाते है.

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