रतलाम: शमशान का नाम जहन में आते ही अंधेरा, एकांत और अपने लोगों को अंतिम विदाई देने के क्षण याद आने लगते हैं. लेकिन यहां एक वर्ग ऐसा भी है जो शमशान में दीपावली का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाता है. दरअसल पूर्वजों की याद में यहां शमशान में दिवाली मनाई जाती है. इस त्यौहार को शमशान में मनाने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं,बच्चे और पुरुष पहुंचते हैं. रतलाम के कई सामाजिक संगठनों की यह पहल है कि अपने पूर्वजों की याद में त्रिवेणी मुक्तिधाम पहुंचकर यहां बकायदा दीप अर्पण करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद दीपोत्सव के त्योहार पर मिलता है. यहां हजारों दीपकों से
मुक्तिधाम को सजाया जाता है, रंगोली बनाई जाती है और इसके बाद मुक्तिधाम में जमकर आतिशबाजी भी की जाती है.
20 साल पहले 5 लोगों ने की थी शुरुआत
मुक्तिधाम में दिवाली मनाने की यह परंपरा ज्यादा पुरानी नहीं है. प्रेरणा संस्था से जुड़े गोपाल सोनी बताते हैं कि "2006 में उनकी संस्था के 5 लोगों ने मिलकर शमशान में दीपदान करने का कार्यक्रम आयोजित किया था. जिसके बाद धीरे-धीरे लोग इस दीपदान कार्यक्रम से जुड़ते गए और अब बड़े स्तर पर मुक्तिधाम में दिवाली मनाने का आयोजन किया जाता है."
गोपाल सोनी के अनुसार "उनके साथी जितेंद्र कसेरा, चेतन शर्मा, मधुसूदन कसेरा, राजेश विजयवर्गीय और गोपाल सोनी ने त्यौहार के दिन मुक्तिधाम में पसरे सन्नाटे और अंधकार को देखकर पहली बार 31 दीपक लगाकर इस कार्यक्रम की शुरुआत की थी. धीरे-धीरे इस आयोजन में कई परिवार और जुड़ते गए और अब महिलाएं और बच्चे भी बिना डरे मुक्तिधाम में आकर दीपावली मनाते हैं."
महिलाएं और बच्चे बिना डर के मनाते हैं दिवाली
आमतौर पर मुक्तिधाम में महिलाओं और बच्चों का आना वर्जित रहता है. शमशान में आने पर बच्चे और महिलाएं डरते भी हैं. शमशान का नाम आते ही गमगीन माहौल और रोते बिलखते परिजनों का दृश्य दिखाई देता है लेकिन रूप चौदस के मौके पर इसी मुक्तिधाम में खुशियां और उत्साह के साथ महिलाएं और छोटे बच्चे भी दीपदान कर आतिशबाजी करते नजर आते हैं. यहां आने वाले बच्चे और महिलाएं बताते हैं कि उन्हें यहां आकर अपने पूर्वजों के लिए दीपदान करने और उन्हें याद करने में आनंद आता है.