गया:बिहार के गया जिले के मूर्तिकार रामचंद्र गौड़ के हाथों में ऐसा जादू है कि वो मूर्तियों में जान डाल देते है. इनकी काष्ठ कला की मूर्तियां इन दिनों सुर्खियों में हैं. 75 साल के रामचंद्र गौड़ पिछले 60 साल से मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं और आज काष्ठ कला के जाने माने मूर्तिकार बन चुके हैं.
गया के रामचंद्र गौड़ की रोचक कहानी : बात पत्थर की मूर्तियों को बनाने की हो या काष्ठ कला की मूर्तियों की. सभी मूर्तियों में महारत देखते ही बनती है. यही वजह है, कि उनके हाथों की बनाई मूर्तियां देश में नहीं बल्कि विदेश तक जाती है. हालांकि, रामचंद्र गौड़ के इंटरनेशनल मूर्तिकार बनने की कहानी बड़ी रोचक है.
ट्रांजिस्टर की डिमांड की, पिता के पास पैसे नहीं थे :रामचंद्र गौड़ की सफलता के पीछे 150 रूपए के ट्रांजिस्टर का शौक है. गया के सूरजकुंड के रहने वाले रामचंद्र गौड़ तब पढ़ाई किया करते थे और उनकी उम्र सिर्फ 15 साल की थी. उन्होंने एक शख्स को ट्रांजिस्टर बजाते और गाना सुनते देखा. संगीत के प्रति उनका भी लगाव बढ़ गया. उन्होंने ट्रांजिस्टर को पाने की जिद ठान ली. अपने पिता से ट्रांजिस्टर की डिमांड की. पिता के पास इतने पैसे नहीं थे, कि वे ट्रांजिस्टर लाकर देते, उन्होंने मना कर दिया.
ट्रांजिस्टर खरीदने की जिद, ऐसे हुई पूरी : फिर क्या था, उस दिन 150 रूपये के ट्रांजिस्टर को पाने की ऐसी जिद्द ठानी कि उन्होंने इसकी कोशिश शुरू कर दी. एक दिन पास में उन्होंने एक मूर्तिकार को मूर्ति बनाने देखा.उन्होंने भी मूर्ती बनानी शुरू कर दी. महज 15 साल की उम्र में ही मूर्तियां बनाकर अपने चाचा के साथ बाहर जाकर बेचने लगे और फिर ट्रांजिस्टर के अपने शौक को पूरा किया.
ट्रांजिस्टर के शौक ने बना दिया मूर्तिकार :पिता के मना करने के बाद रामचंद्र गौड़ ने मन में कुछ ठानी और फिर मूर्ति बनाना सीखने लगे. मूर्तियां बनाकर उसे बाहर जाकर बेचने भी लगे. हाथ में पैसे आए और उन्होंने ट्रांजिस्टर खरीदकर ही दम लिया. ट्रांजिस्टर खरीदने के बाद मूर्ति निर्माण की इनकी लालसा और बढ़ गई. कुछ इस तरह उनके सफलता की कहानी शुरू हो गई.
15 की उम्र से शुरुआत, 20 में महारत हासिल कर ली : 15 साल की उम्र से मूर्तियां बनानी शुरू की. सबसे पहले शिवलिंग बनाया. शिवलिंग की बिक्री कर ट्रांजिस्टर खरीदा. मूर्ति बेचने के लिए बनारस पहुंचे. वहां मूर्ति की अच्छी कीमत मिली और फिर ट्रांजिस्टर खरीदा. रामचंद्र का शौक तो पूरा हो गया, लेकिन उन्होंने जिस काम को शुरू किया अब उसे आगे बढ़ाने का वक्त था.
''ट्रांजिस्टर के शौक ने हमें इस करियर के मुकाम तक पहुंचाया. यदि ट्रांजिस्टर का शौक नहीं होता, तो मैं मेहनत नहीं करता और मेहनत नहीं करता तो मूर्ति कला में शायद इतना निपुण नहीं बन पाता. ट्रांजिस्टर के शौक ने ही मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया है.''- रामचंद्र गौड़, मूर्तिकार
मूर्तियों को आकार देते.. ट्रांजिस्टर पर गाने सुनते :एक तरफ संगीत सुनते और दूसरी तरफ मूर्तियों को आकार देते. उनके हाथों की बनी पत्थर और काष्ठ (लकड़ी) की मूर्तियों की ख्याति देश भर में होने लगी. इनकी भगवान बुद्ध की मूर्तियां दूसरे राज्यों और विदेशी सैलानियों को खूब भाते थे. उन दिनों गया शहर या बोधगया में पत्थर और कास्ठ कला की मूर्तियां बनाने वालों की संख्या बेहद कम हुआ करती थी. ऐसे में रामचंद्र गौड़ की प्रसिद्धी होने लगी.
मूर्ति निर्माण.. 60 साल से सफर जारी :आज रामचंद्र गौड़ की दिनचर्या में मूर्ति निर्माण का कार्य नियमित रूप से शामिल है. सुबह होते ही अपने लिए बने मूर्ति निर्माण के लिए एक अलग कमरे में पहुंच जाते हैं और मूर्तियों को मूर्त रूप देने में जुट जाते हैं. 15 वर्ष की उम्र से मूर्तियों बनाने ती शुरुआत और आज 75 की उम्र पार कर चुके हैं, लेकिन इस उम्र में भी उनकी कारीगरी बेमिसाल है. आज इनका कारोबार करोड़ों में पहुंच चुका है.
भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं की मूर्तियां बनाते हैं :भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं की मूर्तियां बनाने में रामचंद्र गौड़ को महारत हासिल हैं. इनमें 4 इंच से लेकर 15 फीट तक की मूर्ति शामिल हैं. इसके अलावे महाबोधि मंदिर की कास्ठ कला की बनाई तस्वीर देखते ही बनती है. इन मूर्तियों की खूबसूरती ऐसी रहती है, कि देखने वाला हैरान रह जाता है.