जयपुर.राजस्थान हाईकोर्ट ने नाबालिग सौतेली पुत्री के साथ दुष्कर्म के आरोप में शहर की सती निवारण अदालत की ओर से 27 फरवरी, 1992 को सुनाई सात साल की सजा को रद्द कर दिया है. इसके साथ ही अदालत ने डीजीपी को आदेश दिए हैं कि वह प्रकरण में जांच अधिकारी रहे पुलिसकर्मी के आचरण की जांच करें और उसे सुनवाई का मौका देने के बाद नियमानुसार कार्रवाई करें. जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश नाबालिग के सौतेले पिता की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए दिए.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि एफआईआर दर्ज करने से पहले बयान दर्ज किए जाएं, लेकिन अनुसंधान अधिकारी ने रिपोर्ट को जांच में रखकर बयान दर्ज किए और बाद में एफआईआर दर्ज की. अदालत ने कहा कि यह बडे़ आश्चर्य की बात है कि घटना में तीन बार दुष्कर्म का आरोप लगाया गया है, लेकिन जांच अधिकारी ने मौका का नक्शा मौका बनाना और पीड़िता को मौके पर ले जाना जरूरी नहीं समझा. इसके अलावा पीड़िता से नमूना लेकर एफएसएल में भेजा गया, लेकिन रिपोर्ट को अदालत में पेश ही नहीं किया गया. याचिका में अधिवक्ता सुधीर जैन ने अदालत को बताया कि नाबालिग की मां ने याचिकाकर्ता से दूसरा विवाह किया था.