छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / state

रायपुर नगरीय निकाय चुनाव : पत्नी के लिए टिकट जुगाड़ने में लगे नेता, जानिए नफा और नुकसान - RAIPUR MUNICIPAL BODY ELECTION

रायपुर नगरीय निकाय चुनाव में मेयर सीट महिला होने के बाद दिग्गज नेता अपनी पत्नियों के नाम पर टिकट लेने की कोशिश में जुटे हैं.

Leaders ask for tickets for wives
पत्नी के लिए टिकट जुगाड़ने में लगे नेता (ETV BHARAT CHHATTISGARH)

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 24, 2025, 1:55 PM IST

रायपुर :छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव को लेकर कांग्रेस और बीजेपी की तैयारियां जोरों पर है. निकायों में आरक्षण के बाद अब पार्षद और मेयर के पद को लेकर उठापठक का दौर शुरु हो चुका है.आरक्षण को लेकर जिन दिग्गजों के वार्डों में बदलाव हुआ है,वो अब दूसरे वार्ड में अपनी जगह तलाश रहे हैं,वहीं जिन निकायों में मेयर की सीट महिला हुई है वहां पर दिग्गज अपनी पत्नियों को टिकट दिलाने के लिए जुगाड़ लगा रहे हैं.हालात ये हैं कि सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि दिल्ली दरबार तक नेता चहेतों का नाम लिस्ट की सूची में डलवाने के लिए पसीना बहा रहे हैं.

कांग्रेस में लगी होड़ :रायपुर नगर निगम में इस बार महिला प्रत्याशी को मेयर बनने का मौका मिलेगा.इसके लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के नेता अपनी-अपनी पत्नियों का चेहरा अपने नाम पर आगे रखना चाहते हैं.पत्नी के लिए नेता आलाकमान के दर पर फील्डिंग करने में व्यस्त हैं. पत्नी के मामले में टिकट लेने की बात करें तो इसमें सबसे आगे कांग्रेस दिखाई दे रही है.

कांग्रेस के किन नेताओं ने पत्नी के लिए लगाया जोर :कांग्रेस के ज्यादातर दावेदार महिला किसी ने किसी बड़े नेता की पत्नी है. इनमें दीप्ति दुबे निवृत्तमान सभापति प्रमोद दुबे की पत्नी,अरजुमन ढेबर निवृत्तमान महापौर एजाज ढेबर की पत्नी, परमजीत जुनेजा पूर्व विधायक कुलदीप जुनेजा की पत्नी सहित कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने महापौर पद के लिए कांग्रेस से दावेदारी की है. वहीं बीजेपी में अब तक किसी भी महिला दावेदार का नाम सामने नहीं आया है.

बेरोजगार नेताओं ने पत्नियों को किया आगे:इस पूरे मामले में जब बीजेपी के प्रदेश महामंत्री संजय श्रीवास्तव से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस में नेताओं की पत्नी ने टिकट मांगे हैं. जो इस ओर इशारा करता है कि पार्टी में महिला नेत्रियों का अभाव है. नारी सशक्तिकरण की बात करने वाली कांग्रेस ने महिलाओं को नेतृत्व नहीं दिया है. यही वजह है कि वहां पर ऐसी स्थिति निर्मित हुई है.

जो नेता बेरोजगार हैं वो अपनी पत्नियों के सहारे अपनी राजनीति को चमकाना चाहते हैं.जहां कैंडिडेट नहीं है वहां यदि पत्नियों को टिकट दिया जाता है तो उससे कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन सिर्फ पत्नियों को ही टिकट दिया जाए तो बाकी की पार्टी की दूसरी महिला नेत्री कहां जाएंगी- संजय श्रीवास्तव, प्रदेश महामंत्री बीजेपी

बीजेपी में कैसे मिलेगा टिकट :वहीं बीजेपी में पत्नियों को टिकट दिए जाने के सवाल पर संजय श्रीवास्तव ने कहा कि बीजेपी में चयन का आधार अलग है.मंडल से लेकर जिले, संभाग में जो दावेदारी करते हैं, उसका पैनल बनाया जाता है. संभाग स्तर फाइनल होता है. अलग-अलग कैटेगरी की समिति है. वो इसे फाइनल करती है. यहां पर सिस्टम बना हुआ है, जो पार्टी के मापदंड और सिस्टम पर खरा उतरेगी ,वहीं उम्मीदवार बनेगी.

बीजेपी के बयान पर कांग्रेस का पलटवार :वहीं बीजेपी के बयान पर पलटवार करते हुए कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा का कहना है कि कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र है. प्रत्येक कार्यकर्ता अपने उम्मीदवारी प्रस्तुत कर सकता है. उन्हें अधिकार दिया गया है. बीजेपी के नेताओं को दावेदारी करने का अधिकार नहीं है. लिफाफा संस्कृति बीजेपी की है. वहां ऊपर से लिफाफा में नाम आता है.जिसे खोलकर बता दिया जाता है.


ये जरुरी नहीं कि जनप्रतिनिधियों की पत्नी को ही टिकट दिया जाए. जो भी दावेदार हैं वो अपना दावा प्रस्तुत करते हैं और किसी ना किसी रूप में पार्टी और संगठन में सक्रिय होते हैं. बड़े नेता के साथ उनके परिजन भी पार्टी में अपनी अहम भूमिका रखते हैं. वह सामाजिक फिगर है. लेकिन टिकट का पहला अधिकार कार्यकर्ता का है. सभी सदस्यों के नाम पर चर्चा के बाद सर्वसम्मति से उम्मीदवार के नाम की घोषणा की जाती है- सुरेंद्र वर्मा, प्रदेश प्रवक्ता कांग्रेस

वहीं पत्नियों को टिकट देने के मामले में वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा का कहना है कि इस तरह के दावेदार कांग्रेस में ज्यादा है. बड़े नेताओं से जुड़े लोगों को टिकट देना इसलिए भी देखा जा रहा है क्योंकिआजकल चुनाव काफी खर्चीला हो गया है. ऐसे में सामान्य नेत्री या महिला कार्यकर्ता के लिए पहला चुनाव लड़ना काफी कठिन होगा. जिस वजह से भी पार्टी बड़े नेताओं की पत्नियों को टिकट दे सकती है.

पार्टी के बड़े नेता और जनप्रतिनिधि भी चाहते हैं कि यदि आरक्षण की वजह से वह चुनाव नहीं लड़ सकते तो क्यों ना उनकी जगह से उनकी पत्नी दावा करें और चुनाव लड़ें. लेकिन इस तरह की व्यवस्था ज्यादातर कांग्रेस में ही देखने को मिल रही है- उचित शर्मा , वरिष्ठ पत्रकार


महिला कार्यकर्ताओं का मारा जाता है हक :वहीं टिकट देने को लेकर उचित शर्मा ने कहा कि यदि बड़े नेताओं की पत्नियों को टिकट मिलता है तो कहीं ना कहीं दशकों से पार्टी का झंडा उठाए महिला कार्यकर्ताओं का हक मारा जाता है. क्योंकि वो इतने साल ईमानदारी से इसी दिन का इंतजार करते हैं.लेकिन आगे चलकर उनकी सुनवाई भी नहीं होती.इसलिए आजकल टिकट वरिष्ठ की जगह घनिष्ठ को ही मिलता है.

कार्यकर्ता सम्मान बनाम जनप्रतिनिधि की लड़ाई :पत्नियों को टिकट देने को लेकर सभी की अलग-अलग राय है.लेकिन किसी नेता की पत्नी को यदि टिकट मिलता है तो वो महिला दावेदार जो उस टिकट का हकदार थी, उन सभी की उम्मीदों पर पानी फिरता है.पार्टी के वरिष्ठ नेता ऐसी स्थिति में मान मनौव्वल करके कार्यकर्ताओं को मना लेते हैं.लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता.कई बार इस चीज को अपमान मानकर कार्यकर्ता पार्टी के विपरीत काम करने लगते हैं,जिससे पत्नी पर खेला गया दाव उलटा भी पड़ जाता है.फिलहाल रायपुर में यदि किसी बड़े नेता की पत्नी को टिकट देने की फैसला कोई भी पार्टी करती है तो सबसे पहले उन महिला कार्यकर्ताओं को साधना होगा,जिनके बूते महिला ब्रिगेड मौजूदा समय में खड़ी है.


जगदलपुर नगर निगम में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरु, जानिए किन मुद्दों को लेकर तैयार हैं नेता

राष्ट्रीय बालिका दिवस: परिवार, समाज और देश की शान, मान और अभिमान बेटियां

छत्तीसगढ़ में शराब पीने और चिकन मटन खाने वालों के लिए जरूरी खबर

ABOUT THE AUTHOR

...view details