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12 साल से भटक रहा बिहार का एक सरकारी स्कूल, ठिकाना मिला भी तो एक झोपड़ी ! - PURANDAHI PRIMARY SCHOOL

बिहार का एक स्कूल जिसका वनवास 12 साल पूरे होने के बाद भी खत्म नहीं हुआ. वर्षों बाद भी ठिकाना मिला तो झोपड़ी-

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 5 hours ago

समस्तीपुर : सूबे के सरकारी स्कूलों में बड़े बदलाव के दावों व वादों से अलग आज बात जिले के एक ऐसे स्कूल की, जो बीते बारह वर्षों से दर-दर भटक रहा है. वैसे वर्तमान में इस स्कूल को फिर नया ठिकाना जरुर मिला, लेकिन वह भी एक झोपड़ी. ऐसे में बड़ा सवाल ये कि क्या शिक्षा व शिक्षा के केन्द्रों को लेकर सरकार और शिक्षा विभाग धरातल पर गंभीर नहीं है?

12 साल बाद भी स्कूल का 'वनवास' : ये स्कूल है समस्तीपुर का जहां, शिवाजीनगर प्रखंड के पुरन्दाही में बीते बारह वर्षों से एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय को अपनी जगह नहीं मिल पा रही है. वर्तमान में यह स्कूल एक झोपड़े में चल रहा. यहां पठन-पाठन के साथ ही मिड-डे मिल बनाने का भी इंतजाम किया जा रहा.

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समस्तीपुर में झोपड़ी में चलता है स्कूल : शिवाजीनगर प्रखंड का भटौरा पंचायत का प्राथमिक विद्यालय पुरन्दाही के वर्तमान हालात को समझने से पहले स्थापना के बाद से ही दर-दर भटकते इस स्कूल के सफर को समझना जरूरी होगा. साल 2012 में इस स्कूल का स्थापना भटौरा मठ के शिवमंदिर में हुआ. करीब एक वर्ष बाद ग्रामीणों के प्रयास से यह विद्यालय मठ की जगह से पुरन्दाही गांव में आया.

बच्चों की कम नहीं हुई परेशानी : साल 2014 से इस स्कूल के हेडमास्टर रहे नरेश कुमार सिंह ने बदहाल स्कूल के हालात पर कहा कि वह लगातार इस स्कूल के हालात की जानकारी वरीय अधिकारी को दे रहे हैं. सीमित संसाधन के वाबजूद हम घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल तक लेकर आये, लेकिन 2016 में जमींन और भवनहीन स्कूल को मेरे लाख प्रयास के बावजूद विभाग ने प्राथमिक विद्यालय धोबियाही रहटौली पंचायत से अटैच कर दिया.

"हम लगातार वरीय अधिकारियों को स्कूल के हालात की जानकारी दे रहे हैं. संसाधन कम होने के बावजूद हम बच्चों को स्कूल तक लाने में सफल रहे. लेकिन जमीन और भवन नहीं होने के कारण 8 साल पहले स्कूल को धोबियाही रहटौली पंचायत से अटैच कर दिया गया. स्कूल दूर होने की वजह से बच्चे कम हो गए. अब फिर स्कूल चल रहा है. लेकिन झोपड़ी में है."- नरेश कुमार सिंह, हेडमास्टर, पुरन्दाही प्राथमिक विद्यालय

टीन की छत, घास-फूस की दीवार : गाँव से स्कूल दूर होने के कारण जब बच्चों को स्कूल जाने में परेशानी होने लगी, आधे से अधिक बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया. जिसके बाद एक बार फिर, इस पंचायत के मुखिया और ग्रामीणों के प्रयास से यह स्कूल इस वर्ष जनवरी में वापस यहां आया. वर्तमान में किसी तरह टीन की छत वाले एक रूम झोपड़ी में बड़ी परेशानी में स्कूल का संचालन हो रहा है.

कब होगा कायाकल्प? : गौरतलब है कि जिले में आज भी बड़ी संख्या में ऐसे स्कूल हैं जिसके पास न जमींन है न अपना भवन. वैसे इस मामले पर विभागीय अधिकारियों का रटा रटाया एक ही शब्द है. जल्द समस्या का समाधान होगा. बहरहाल बड़ा सवाल, जिस राज्य में शिक्षा के पीछे बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया जा रहा, वहां धरातल पर शिक्षा के केंद्र का ये हाल सोचने पर मजबूर कर रहा है. देखना ये है कि कब ACS एस सिद्धार्थ की नजरें इस स्कूल पर मेहरबान होंगी.

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