देहरादून:लोकसभा चुनाव रणभेरी कभी भी बज सकती है. ऐसे में लोकसभा के प्रत्याशियों को लेकर माथापच्ची जारी है. इसी कड़ी में बीजेपी ने उत्तराखंड की 3 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. जिसमें टिहरी लोकसभा सीट, नैनीताल उधमसिंह नगर सीट और अल्मोड़ा पिथौरागढ़ लोकसभा सीट शामिल हैं. खास बात ये है इन तीनों सीटों पर प्रत्याशियों को रिपीट किया गया है. यानी जो पिछली बार जीतकर सांसद बने थे, उन्हीं पर पार्टी ने भरोसा जताते हुए टिकट दिया है.
अगर अल्मोड़ा पिथौरागढ़ लोकसभा सीट की बात करें तो अजय टम्टा को फिर से टिकट देकर लोकसभा का प्रत्याशी बनाया है. पिछली लोकसभा चुनाव 2019 में उन्होंने प्रदीप टम्टा को पटखनी दी और अल्मोड़ा पिथौरागढ़ लोकसभा सीट से सांसद बने. अभी अजय टम्टा 17वीं लोकसभा के सदस्य भी है. अजय टम्टा का राजनीतिक लंबा सफर रहा है. अजय टम्टा अपने बेहद सरल स्वभाव की वजह से जनता की बीच खास पहचान रखते हैं.
अजय टम्टा ने ट्रांसपोर्टर का काम भी किया:बीजेपी के अल्मोड़ा लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाए गए अजय टम्टा का जन्म साल 1972 में हुआ था. बागेश्वर जिले के भट्ठखोला गांव में उनका जन्म हुआ था. सामान्य परिवार में जन्मे अजय टम्टा ने अपनी पढ़ाई 12वीं कक्षा तक करने के बाद समाज सेवा और व्यवसाय की तरफ रख कर लिया. अजय टम्टा ने एक ट्रांसपोर्टर के रूप में अपनी रोजी रोटी को शुरू किया. आज भी उनकी आय का एक जरिया तेल टैंकर है.
राम जन्मभूमि के आंदोलन में लिया हिस्सा:साल 1990 के दौरान राम जन्मभूमि के आंदोलन में अजय टम्टा ने सक्रिय भूमिका अदा की थी और उस दौरान राम जन्मभूमि के लिए विभिन्न रैलियों और कार्यक्रमों में उन्होंने हिस्सा लिया था. इसके बाद व्यवसाय करते हुए ही उन्होंने राजनीति की तरफ भी कदम बढ़ा लिया. राम जन्मभूमि से जुड़े होने के कारण बीजेपी से उनकी विचारधारा हमेशा ही मिलती थी.
साल 1997 में बने जिला पंचायत सदस्य:उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत पंचायत स्तर पर की और लोगों के बीच सरल स्वभाव के कारण काफी जल्दी पकड़ भी बना ली. ट्रांसपोर्टर के तौर पर अपना व्यवसाय आगे बढ़ाने के साथ वो समाज सेवा से भी जुड़े रहे. इसके बाद साल 1997 में उन्होंने जिला पंचायत सदस्य बनने में कामयाबी हासिल की. इतना ही नहीं उन्होंने जिला पंचायत में सामान्य सीट से उपाध्यक्ष पद पर निर्वाचन भी पाया.
साल 2002 में निर्दलीय लड़े चुनाव, मिली हार:वहीं, साल 1997 में जिला पंचायत सदस्य बनने के बाद 2 सालों में ही वो जिला पंचायत अध्यक्ष अल्मोड़ा के पद पर भी निर्वाचित हो गए. इसके बाद उन्होंने विधायक बनने के लिए अपने प्रयास शुरू कर दिए और राज्य स्थापना के बाद प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में निर्दलीय ही ताल ठोक दी. साल 2002 में चुनाव निर्दलीय रूप से लड़ते हुए वो खासे चर्चाओं में तो रहे लेकिन चुनाव हार गए.