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श्राद्ध पक्ष में बिना कौए को भोग लगाए पूरा नहीं होता अनुष्ठान, मान्यता के चलते काक को तलाश रहे लोग - Shradh Paksha 2024

Shradh Paksha 2024, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में कौए को भोग लगाया जाता है. यदि कौए ने भोजन कर लिया तो ऐसा माना जाता है कि पितरों ने उस भोजन को ग्रहण कर लिया. वहीं, आज रेडिएशन और प्रदूषण की वजह से कौए देखने को नहीं मिल रहे हैं. यही कारण है कि लोग कई किलोमीटर तक काग की तलाश कर रहे हैं.

Shradh Paksha 2024
श्राद्ध पक्ष 2024 (Etv Bharat GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 21, 2024, 5:12 PM IST

जयपुर :श्राद्ध पक्ष में पितरों को भोग लगाया जाता है. इस निमित्त एक ऐसे पक्षी को अन्न-जल अर्पित किया जाता है, जिसकी कर्कश आवाज को लोग सुनना भी पसंद नहीं करते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में कौए को भोग लगाया जाता है. यदि कौए ने भोजन कर लिया तो वो भोजन पितरों ने ग्रहण कर लिया. हालांकि, आज रेडिएशन और प्रदूषण की वजह से ये कौए देखने को नहीं मिलते हैं. इसी वजह से लोग दूरदराज से इन्हें खोजते हुए जल महल और रामनिवास बाग तक पहुंचते हैं, ताकि श्राद्ध पक्ष का उनका अनुष्ठान पूरा हो सके.

दिवंगत पितृजनों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए तर्पण, हवन और दान के लिहाज से श्राद्ध पक्ष का पखवाड़ा खास माना जाता है. इस दौरान पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है. साथ ही पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, चींटियां और अभ्यागत को भोग लगाया जाता है. ज्योतिषाचार्य योगेश पारीक ने बताया कि श्राद्ध पक्ष में पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक पित्रेश्वर आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी लोक पर आते हैं. काक यानी कौए को पितरों का स्वरूप माना गया है.

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वहीं, कौआ पितरों के देव अर्यमा की सवारी माना जाता है. पितृ स्वरूपी वाहन पर अर्यमा 16 दिन तक पृथ्वी लोक पर विचरण करते हैं. तीर्थ स्थलों पर पितरों के निमित्त जो भी कार्य किए जाते हैं, उसमें भी एक अंश कौए के लिए निकाला जाता है. मान्यता है कि पितृ पक्ष में कौए को भोजन करने का विशेष महत्व रहता है. जब कौए इस भोग को ग्रहण करते हैं तो अर्यमा उन्हें आशीर्वाद देते हैं. शिव पुराण में भी इसका वर्णन मिलता है.

रेडिएशन और प्रदूषण की वजह से कौए देखने को नहीं मिल रहे हैं. (ETV BHARAT JAIPUR)

उन्होंने बताया कि श्राद्ध पक्ष में पंचबली निकाली जाती है, जिसमें गाय, श्वान, कौए, चींटी और अभ्यागत के लिए प्रसादी निकाली जाती है. फिर ब्राह्मण भोज कराया जाता है. जयपुर निवासी पंडित योगेंद्र शर्मा ने बताया कि हिंदू सनातन धर्म शास्त्रों में पितरों के मोक्ष के लिए कौए को भोग लगाते हैं. इससे पितृ योनि में जो भी बुजुर्ग हैं, उन्हें शांति मिलती है और वो प्रसन्न होकर संतति और संपत्ति दोनों प्रदान करते हैं. इसी मान्यता को लेकर शहरवासी रामनिवास बाग, जलमहल और कुछ एक श्मशान घाटों के आसपास जहां कौए की आवाजाही रहती है, वहां पितृपक्ष में ज्यादा से ज्यादा दान करने पहुंचते हैं.

कौए को बिना श्राद्ध का भोजन कराए नहीं पूरा होता पितृ पक्ष का अनुष्ठान (ETV BHARAT JAIPUR)

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पहले लोग दिवंगत पितृजन को भोग लगाने के लिए छत पर भोजन रख दिया करते थे, लेकिन अब आमतौर पर कौए देखने को भी नहीं मिलते हैं. इसलिए लोग कौओं को खोजते हुए जलमहल और रामनिवास बाग जैसे स्थानों पर पहुंचते हैं. लोग इन्हें पितरों का स्वरूप और प्रतिनिधि मानते हुए घर में बने स्वादिष्ट व्यंजन परोसते हैं. हालांकि, लोगों को इसके लिए कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. जयपुर के पुरानी बस्ती निवासी पान सिंह ने बताया कि पहले श्राद्ध पक्ष में जब कौए को भोग लगाना होता था तो घर की छत पर पुकारने पर ही कौए आ जाया करते थे. आज प्रदूषण और रेडिएशन की वजह से कौए सीमित स्थान पर ही देखने को मिलते हैं.

मान्यता के चलते काग को तलाश रहे लोग (ETV BHARAT JAIPUR)

वहीं, कालवाड़ रोड निवासी कुलदीप ने बताया कि बड़े बुजुर्गों की आत्मा की शांति के लिए कौआ को भोग लगाने की परंपरा रही है. उसी का निर्वहन करते हुए वो कालवाड़ से यहां कौए खोजते हुए पहुंचे हैं. बहरहाल, श्राद्ध के समय तो लोगों को कौए की याद आ जाती है, लेकिन इन्हें खोजने के लिए लोगों को भटकना पड़ता है. पुराने मोहल्लों और सोसायटियों में तो कौए दिखाई ही नहीं देते. इसका कारण बिगड़ता हुआ पर्यावरण संतुलन और बढ़ता शहरीकरण को भी बताया जाता है. ऐसे जरूरत है इनके संरक्षण के लिए प्रयास किए जाएं. अन्यथा भविष्य में श्राद्ध पक्ष का अनुष्ठान अधूरा ही रह जाएगा.

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