करनाल:सनातन धर्म में पितृ पक्ष का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है. क्योंकि यह दिन पितरों को समर्पित होते हैं और उनके लिए धार्मिक अनुष्ठान ,तर्पण, पिंडदान इत्यादि किए जाते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से होती है. पितृपक्ष के दौरान पितरों की आत्मा की शांति और संतुष्टि के लिए अनुष्ठान कार्य किए जाते हैं. कुछ लोग इसको श्राद्ध के नाम से भी जानते हैं. जिसके परिवार में अशांति बनी रहती है या पितृ दोष होता है. वह खास तौर पर अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा पाठ कराते हैं. जिस दिन उनके पूर्वज की मृत्यु हो जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार उस दिन उसके लिए श्राद्ध किया जाता है. उसकी आत्मा की शांति के लिए पूजा अर्चना भी की जाती है.
पितृ पक्ष की शुरुआत:पंडित श्रद्धानंद मिश्रा ने बताया कि इस बार पितृ पक्ष भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू हो रहा है. पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 17 सितंबर को सुबह 11:44 पर हो रही है. जबकि इसका समापन 18 सितंबर को सुबह 8:04 पर होगा. इसलिए पितृ पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर से हो चुकी है. जो भी लोग पूर्णिमा का व्रत रखना चाहते हैं या उसके लिए स्नान और दान करना चाहते हैं. उनके लिए 18 सितंबर का दिन होगा. उस दिन पूर्णिमा के लिए स्नान और दान किया जाएगा.
पितृ पक्ष का क्या होता है महत्व:हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व बताया गया है. क्योंकि इस दिन अपने पितरों या जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उनके पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान कर्म, पिंडदान, अर्पण किए जाते हैं. जिस इंसान के घर में पितरों की आत्मा को शांति नहीं मिलती, उसके लिए भी विशेष तौर पर पूजा-अर्चना की जाती है. ताकि उनको शांति मिल सके और मुक्ति मिल सके.
पितरों के लिए पूजा: वहीं, परिवार में खुशहाली के लिए भी सुख शांति की लिए पूजा की जाती है. ताकि पूर्वजों का और पितरों का आशीर्वाद उनके ऊपर बना रहे. अगर किसी की कुंडली में पितृ दोष है, उसके लिए भी उनके पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं. पूजा अर्चना की जाती है. इन दिनों के दौरान अपने पितरों के लिए पूजा करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है. पहले श्राद्ध पर यानि 18 सितंबर के दिन कुतुप मुहूर्त की शुरुआत सुबह 11 बजकर 50 मिनट से हो रहा है जो दोपहर 12 बजकर 19 मिनट तक रहेगा. इसके बाद रौहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजे से शुरू होकर दोपहर 1 बजकर 28 मिनट तक रहेगा. अगला मूहूर्त दोपहर 1 बजकर 28 मिनट से शुरू होकर दोपहर 3 बजकर 55 मिनट तक रहेगा.
कैसे करें तर्पण: श्राद्ध के दिनों में पितरों के नाम से हर दिन नियमित रूप से जल अर्पित करना शुभ माना जाता है. तर्पण करने के लिए सूर्योदय से पहले कुशी की जूड़ी लेकर पीपल के वृक्ष के नीचे स्थापित की जाती है. इसके बाद लोटे में थोड़ा गंगाजल, सादा जल और दूध लेकर उसमें बूरा, जौ और काले तिल डाले जाते हैं और कुशी की जूड़ी पर 108 बार जल चढ़ाया जाता है. जल चढ़ाते समय मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए.