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यात्रा संबंधी जानकारी व्यक्तिगत, आरटीआई के तहत तीसरे पक्ष को नहीं बताई जा सकती: दिल्ली उच्च न्यायालय - Travel info cannot be disclosed

Travel info cannot be disclosed: 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में मौत की सजा पाए दोषी एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी ने आरटीआई से एक निश्चित अवधि के बीच मोहम्मद आलम गुलाम साबिर क़ुरैशी की यात्रा की जानकारी मांगी थी. इसपर दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यात्रा संबंधी जानकारी व्यक्तिगत प्रकृति की होने की बात कही.

Travel info cannot be disclosed
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By PTI

Published : Apr 12, 2024, 10:23 PM IST

नई दिल्ली:दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा है कि यात्रा से संबंधित जानकारी व्यक्तिगत प्रकृति की होती है और सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत ऐसे विवरण किसी तीसरे पक्ष को तब तक नहीं दिए जा सकते जब तक कि यह व्यापक सार्वजनिक हित में न हो. दरअसल 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में मौत की सजा पाए दोषी एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी ने, 1 जनवरी, 2006 से 30 जून, 2006 के बीच मुंबई हवाई अड्डे से हांगकांग या चीन तक मोहम्मद आलम गुलाम साबिर क़ुरैशी की विदेशियों के क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय से की गई यात्रा प्रविष्टियों (प्रस्थान और आगमन) के संबंध में आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी मांगी थी.

उसने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के जनवरी 2022 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें जानकारी देने से इनकार कर दिया गया था. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, किसी भी व्यक्ति की यात्रा जानकारी व्यक्तिगत जानकारी है और ऐसे विवरण किसी तीसरे पक्ष को तब तक प्रकट नहीं किए जा सकते जब तक कि वह व्यापक सार्वजनिक हित में न हो, जो उक्त जानकारी के प्रकटीकरण को उचित ठहराता हो. अदालत ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में मौत की सजा पाए दोषी एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी की याचिका खारिज कर दी गई थी.

याचिकाकर्ता ने आव्रजन ब्यूरो के केंद्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) के समक्ष एक आरटीआई आवेदन दायर किया था, जिसने इस आधार पर याचिका खारिज कर दी कि विभाग को धारा 24(1) और दूसरी अनुसूची के तहत कोई भी जानकारी प्रदान करने से छूट दी गई थी. कहा गया कि जिस व्यक्ति की यात्रा का विवरण मांगा गया था वह एक गवाह था और दावा किया था कि याचिकाकर्ता को मामले में झूठा फंसाने के बाद गिरफ्तार किया गया था. उसे जानकारी देने से इनकार करना मानवाधिकार का उल्लंघन था.

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वर्तमान में जेल में बंद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दावा किया था कि उसे मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस), मुंबई द्वारा फंसाया गया था. इससे पहले, अदालत ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर एक अन्य याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें सीआईसी के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें महाराष्ट्र सरकार द्वारा गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपराधों के लिए उसके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी से संबंधित कुछ जानकारी का खुलासा करने से इनकार कर दिया गया था.

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