लखनऊ : बहुत सारे लोगों के पैर सपाट होते हैं जिसे 'फ्लैट फुट' के नाम से भी जाना जाता है. ऐसे में लोगों के पैर में त्वचा कठोर हो जाती है. लोग इस बात को हल्के में ले लेते हैं और नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन अगर ऐसा है तो आपको सावधान होने की जरूरत है, क्योंकि इसे कॉर्न कहते हैं. कई लोग डायबिटिक, न्यूरोपैथ या ग्रैंगीन जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं. इसमें घाव जल्दी नहीं भरता है और जब पैरों में कॉर्न बन जाता है तो यह गंभीर रूप ले लेता है. ऐसे में जरूरी है कि जिनके फ्लैट पैर हैं, वह शुरुआत से ही अपने पैरों का ख्याल रखें, क्योंकि इसमें पहले एड़ियां अंदर धंसने लगती हैं और फिर धीरे-धीरे घुटने भी टेढ़े हो जाते हैं. इसके अलावा घाव बढ़ने लगता है तो उसे नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर्स पैर के उस हिस्से या उंगलियों को काटने की सलाह देते हैं.
वरिष्ठ प्रोस्थेटिस्ट एवं इंचार्ज शगुन सिंह ने बताया कि पैर में आर्च होना बहुत ज्यादा जरूरी है. क्योंकि, अगर पैर में आर्च नहीं बनेगा तो व्यक्ति को पैर में बार-बार कॉर्न बनेगा. कॉर्न उस स्थिति में बनता है, जब उस जगह में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है. ज्यादातर ऐसे मरीज को दिक्कत होती है, जिन्हें कोई गंभीर बीमारी रहती है. अगर किसी मरीज को डायबिटीज है तो उसको कॉर्न की समस्या बन ही जाती है. कुछ मरीजों में इसकी समस्या अधिक हो जाती है. खास बात है कि अगर किसी का फ्लैट फुट है और उसे कोई गंभीर बीमारी है तो कॉर्न बनने की संभावनाएं अधिक हो जाती हैं. कृत्रिम अंग विभाग में बहुत सारे ऐसे मरीज आते हैं, जिन्हें कॉर्न की समस्या होती है.
सही डायग्नोज जरूरी :उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोगों को इस विभाग के बारे में जानकारी ही नहीं है. आर्च और कॉर्न को नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. अगर किसी व्यक्ति के पैर के तलवों में त्वचा कठोर हो जाती है तो उसे तुरंत विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए, ज्यादातर लोग पहचान नहीं पाते हैं और जब विशेषज्ञ को दिखाते हैं तो दवा शुरू हो जाती है, वहीं यह जानना जरूरी है कि दो से तीन वर्ष की उम्र में सारे बच्चे फ्लैट फुट वाले ही होते हैं, क्योंकि इसी उम्र में पैरों में आर्च बनना शुरू होता है. आमतौर पर 7 साल की उम्र तक तकरीबन 40 फीसदी बच्चे फ्लैट फुट से युक्त होते हैं और इनमें से 20 फीसदी बच्चों के पैर व्यस्क जीवन में भी फ्लैट फुट बने रहते हैं.
दो तरह के फ्लैट फुट :उन्होंने कहा कि बच्चों में फ्लैट फुट दो प्रकार के होते हैं. इनके बारे में समझना बहुत जरूरी है, क्योंकि दोनों मामलों में इसे अलग ढंग से मैनेज करना होता है. जब बच्चा चल नहीं रहा है, उस समय पैर में आर्च दिखाई दे और चलने के दौरान पैर फ्लैट हो जाए तो आमतौर पर इसमें सुधार संभव है. अगर बच्चे के चलने या आराम करने के दौरान आर्च दिखाई न दे तो इसे ठीक करना मुश्किल होता है.
इन बातों का रखें ख्याल |
- सही फुटवियर पहनें. |
- फ्लैट फुट के लिए सही फुटवियर चयन करें. |
- आर्च में सपोर्ट वाला फुटवियर हो. |
- शॉक-एब्जार्निंग सोल बेहतर होता है. |
दीपक कुमार ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से डायबिटीज के साथ-साथ गठिया भी है. गठिया के कारण उनके घुटनों में दिक्कत है. डायबिटीज के कारण कोई भी चोट लगती है तो वह भरने में समस्या होती है. पहले उनके अंगूठे की बगल वाली उंगली में कॉर्न बना. वह घाव भर नहीं रहा था. जिसकी वजह से डॉक्टर ने उंगली को काटने की सलाह दी. एक साल बाद अब फिर से उनके पैर में दो कॉर्न बन गए हैं. कृत्रिम अंग विभाग की ओर से फुट सोल बना है.
कृत्रिम अंक विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अनिल कुमार गुप्ता ने कहा कि लोगों में देखा गया है कि उनके पैर में आर्च नहीं होता है. रोजाना यहां पर ट्राॅमा सेंटर में गंभीर मरीज आते हैं.