बीजापुर :भोपालपटनम ब्लॉक के ग्राम पंचायत एड़ापल्ली के ईरपागुट्टा गांव के बुजुर्ग वेलादी वीरा और वेलादी हड़मा अपने बढ़ती उम्र के आगे लाचार है.इन दोनों ही बुजुर्गों को पिछले पांच साल से वृद्धा पेंशन नहीं मिला है.जिसके लिए ये सरकारी दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं.पांच साल तक स्थानीय स्तर पर एड़िया रगड़ने के बाद जब फायदा नहीं हुआ,तो लकड़ी के सहारे बुजुर्ग ट्रैक्टर और पैदल सफर तय करके ब्लॉक मुख्यालय पहुंचे हैं.
पांच साल से पेंशन की आस :बुजुर्ग वेलादी वीरा ने बताया कि पिछले पांच साल से पेंशन के लिए सचिव से गुहार लगा रहा है. लेकिन उसके खाते में पेंशन जमा नहीं हो रही है.अपनी समस्या बताते हुए कहा कि पहले भी भोपालपटनम आकर पंचायत सचिव से मुलाकात कर चले गए थे. सचिव ने जल्द ही खाते में पेंशन आने की बात कही थी.लेकिन आज तक पेंशन नहीं आया. आपको बता दें कि नेशनल पार्क एरिया के एडापल्ली, सेंड्रा, बड़ेकाकलेड जैसे ग्राम पंचायतों के सैकड़ों लोगों कई साल से पेंशन नहीं मिल रहा है. सेंड्रा में 22, बड़ेकाकले में 37 और एडापल्ली 34 हितग्राही हैं,जिन्हें पेंशन का इंतजार है.इन गांवों में हितग्राही ऐसे भी है जिनका नाम भी पेंशन के लिए नहीं जुड़ा है.
बुजुर्गों ने लकड़ी के सहारे 50 किमी का सफर किया तय (ETV Bharat Chhattisgarh)
''5 साल से पेंशन नहीं मिल रहा है. 2017 के बाद खाते में लेनदेन की एंट्री नहीं हुई है. सचिव से मिले तो उसने कहा कि अगले साल पेंशन मिलेगा.''- वेलादी हड़मा, पीड़ित
क्यों नहीं आ रहा है पेंशन : ग्रामीणों का कहना है कि पहले घर पहुंचाकर पेंशन सचिव लाकर देते थे. पासबुक ले जाकर बैंक में खाते से पैसे निकालकर पेंशन लाकर देते थे. अब खाते में पैसा जमा नहीं हो रहा है. वहीं इस पूरे मामले में ग्राम पंचायत एडापल्ली सचिव गोटा समैया ने बताया कि उनके पंचायत में कुल 34 हितग्राही हैं. जिसमें समाजिक सुरक्षा पेंशन 15 वृद्धावस्था 01 विधवा पेंशन14 और सुखद सहारा पेंशन के4 हितग्राही हैं. उन लोगों के खाते केवाईसी नहीं होने के वजह से दो साल से पेंशन नहीं आ रहा है.
आपको बता दें कि ग्रामीण अंचल के लोग ज्यादा बोल और समझ नहीं पाते है.इसलिए जो भी इन्हें पेंशन को लेकर भरोसा दिलाता है,वो इसे मान लेते हैं. बुजुर्ग हड़मा ने बताया कि उनके कोई बच्चे नहीं है.घरेलू सामान की जरुरत होती है तो मांगकर गुजारा करना पड़ता है. ब्लॉक मुख्यालय से 50 किमी दूर ईरपागुट्टा के बुजुर्ग दो दिनों का सफर तय करके अपनी समस्या सुनाने आए थे. घर से निकलने में बाद उन्होंने एक रात कानलापर्ती गांव में रूककर दूसरे दिन वहां से फिर सफर शुरु किया. इसके बाद ट्रैक्टर में बैठकर भोपालपट्नम पहुंचे.