कुरुक्षेत्र:धर्मनगरी कुरुक्षेत्र का नाम विश्व विख्यात है. यहां पर भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान कृष्ण को गीता का उपदेश दिया था और यहां पर महाभारत का युद्ध हुआ था. लेकिन कुरुक्षेत्र की भूमि के अंतर्गत एक ऐसा स्थान भी है. जहां पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किए जाते हैं. गया के बाद पिहोवा एक ऐसी धर्म नगरी है, जहां पर पूजा पाठ करने से पितरों को मुक्ति की प्राप्ति होती है.
माना जाता है कि आज से करीब 5000 वर्ष पूर्व जो महाभारत का युद्ध हुआ था. तब उसे युद्ध में कौरव और पांडवों के हजारों लाखों सैनिक और योद्धा मारे गए थे. इतने बड़े स्तर पर मारे गए योद्धाओं को देखकर युधिष्ठिर विचलित हो गए थे, कि उनकी आत्मा को शांति कैसे मिलेगी. तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि कुरुक्षेत्र के ही पिहोवा में पृथुदक याद सरस्वती तीर्थ पर पूजा अर्चना करने से और पिंडदान करने से सभी की आत्मा को शांति मिल जाएगी.
उनके कहने पर युधिष्ठिर ने यहां पर अपने पुरुषों के लिए श्राद्ध और पिंडदान किए थे तभी से यह परंपरा चली आ रही है. यहां देवभूमि पर युगो युगांतर से मृत आत्मा की सद्गति और शांति के लिए शास्त्रों और पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है. इसी के चलते यहां पर दूर दराज से लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान करने के लिए पहुंचते हैं.
दान ही श्राद्ध:पिहोवा तीर्थ पुरोहित सुभाष ने कहा कि पितृ पक्ष में यहां पर विशेष तौर पर लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान करने के लिए आते हैं. यहां पर जो भी अपने पूर्वज के लिए पंडितों को दान दिया जाता है. उसको ही श्राद्ध कहा जाता है, वैसे तो यह कहीं भी किया जा सकता है. लेकिन अगर कोई इस तीर्थ पर आकर करता है. तो उस का विशेष फल प्राप्त होता है. पितृ पक्ष 15 दिन के होते हैं, जो आश्विन महीने के प्रतिवर्ष कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होते हैं और अमावस्या के दिन समाप्त होते हैं.
ऐसे मिलती है पितरों की आत्मा को शांति:सरस्वती तीर्थ पर एक 5000 वर्ष पुराना पीपल का वट वृक्ष भी खड़ा है. जिसको प्रेत पीपल के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि अगर किसी इंसान के पितरों की आत्मा कहां पर भटक रही है. या उसकी तृप्ति नहीं मिली है. उसकी आत्मा को तृप्त करने के लिए यहां पर सरस्वती तीर्थ से पानी की बाल्टी भर के उस पेड़ को 11 बाल्टी अर्पित की जाती है. जिसे उनके पितर की आत्मा को तृप्ति मिलती है. इसके साथ-साथ अपने पितरों के लिए वस्त्र के तौर पर सफेद कपड़ा भी यहां पर चढ़ाया जाता है. जिसे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वह यहां पर भड़काने की बजाय स्वर्ग में चले जाते हैं.