फतेहपुर: 15 अगस्त 2024 को हमारा राष्ट्र भारत अपनी आजादी के 78 साल पूरे कर रहा है. इस मौके पर आजादी के जश्न को मनाने की तैयारी जोरशोर से पूरे देश में चल रही है. घर से बाहर निकलते ही सभी सड़के अभी से तिरंगे से पटी हुई दिख रही हैं.
आजादी के उत्सव के मौके पर देशभर में ‘हर घर तिरंगा’ अभियान भी चलाया जा रहा है. इस अभियान की शुरुआत आजादी के ‘अमृत महोत्सव’ यानी कि 75वीं वर्षगांठ के मौके पर की गई थी. आजादी के इस अमृत महोत्सव’ पर हर भारतवासी अभी से उत्साह से सराबोर लग रहा है.
अभी से देश भक्ति गाने जगह जगह गूंजने लगे हैं. इन्ही गानों में से एक गाना है विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा, इसकी शान न जाने पाए चाहे जान भले ही जाए... भी है. जिसे सुनते ही देश पर जान न्योछावर करने को तत्काल मन मचलने लगता है.
आपको बता दें कि देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले गीत 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा, इसकी शान न जाने पाए चाहे जान भले ही जाए' यह गीत उत्तर प्रदेश की फतेहपुर जेल में रहकर श्यामलाल गुप्त पार्षद ने लिखा था. यह गीत आज भी भारत माता की गौरव गाथा को अविस्मरणीय बना रहा है. इस गीत की आजादी के आंदोलन में अहम भूमिका थी.
कानपुर के नर्वल में 9 सितंबर 1896 को एक वैश्य परिवार में जन्मे गीत के रचयिता श्याम लाल गुप्त, पिता विश्वेश्वर प्रसाद और कौशल्या देवी की 5 संतानों में सबसे छोटे बेटे थे. बचपन से ही उनके मन में देशभक्ति की भावनाएं हिलोरें मार रहीं थीं. ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी से वह व्यथित रहते थे.
घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी. मिडिल की परीक्षा पास करने के बाद पार्षद ने विशारद की उपाधि प्राप्त की. नगर पालिका और जिला परिषद में अध्यापक की नौकरी की, लेकिन तीन साल की बाध्यता की अनिवार्यता पर उन्होंने नौकरी त्याग दी थी.