टिकुली कला को समर्पित-अशोक कुमार बिस्वास (ETV BHARAT) पटनाःइतिहास के पन्ने बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक गौरवगाथाओं से रंगे पड़े हैं. प्राचीन काल से ही कई कलाकृतियां बिहार में ही पुष्पित-पल्लवित हुई हैं. टिकुली कला भी उन्ही सांस्कृतिक धरोहरों का एक अहम हिस्सा है जो मौर्य काल से लेकर आधुनिक भारत की कला-संस्कृति का एक अहम हिस्सा रहा है. वहीं 21वीं सदी में इस कला को एक नयी पहचान दी है पद्मश्री अशोक कुमार बिस्वास ने, जिनके अथक परिश्रम से ये कला भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का दस्तावेज बन गयी है.
राष्ट्रपति से पद्मश्री सम्मान ग्रहण करते अशोक बिस्वास (ETV BHARAT) मौर्य काल से जुड़ा है टिकुली कला का इतिहासःपटना कलम और मिथिला पेंटिंग के बाद राष्ट्रीय स्तर पहचान बनानेवाली टिकुली कला का इतिहास मौर्य काल से जुड़ा हुआ है. माना जाता है कि मौर्य काल के दौरान ही टिकुली फैशन में आया और महिलाओं ने टिकुली को श्रृंगार में शामिल किया. मौर्य कालीन मूर्तियों में टिकुली के साक्ष्य मिलते हैं. तब टिकुली कला का केंद्र राजधानी पटना का अनुमंडल पटना सिटी हुआ करता था.शुरुआती दौर में टिकुली पर कलाकृतियों का निर्माण किया जाता था लेकिन धीरे-धीरे टिकुली कला का स्वरूप बदलता गया .मुगल काल में इस कला को राजकीय संरक्षण मिला जिससे कि टिकुली कला की पहुंच जन-जन तक हुई.
8000 कलाकारों को ट्रेनिंग दे चुके हैं (ETV BHARAT) पटना सिटी की गलियों में मिला नया जीवनः ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से पटना सिटी काफी समृद्ध रही है.आज भी पटना सिटी के इलाके में इतिहास की कई धरोहर मौजूद हैं. टिकुली कला भी पटना सिटी के इलाके में ही फूली-फली.आजादी के बाद पद्मश्री उपेंद्र महारथी के प्रयासों से टिकुली कल पुनर्जीवित हुई. अपने प्रयोगों के दौरान उन्हें हार्ड बोर्ड पर टिकुली कला को पारंपरिक शैली में उतारने का ख्याल आया ताकि बाजार के साथ उसे भी जोड़ा जा सके.अब 21वीं सदी में इसको खास स्थान और पहचान दिलाने का श्रेय अशोक कुमार बिस्वास जैसे कलाकारों को जाता है.
मुफलिसी में भी नहीं छोड़ा दामनः अशोक कुमार बिस्वास एक ऐसा नाम है, जिन्होंने गरीबी और मुफलिसी के बाद भी टिकुली कला का दामन नहीं छोड़ा. वर्षों संघर्ष करने के बाद अशोक कुमार बिस्वास के विश्वास को मुकाम मिला और टिकुली कला को उस समय मिली बड़ी पहचान जब केंद्र सरकार ने इस शानदार कलाकार को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया.
कला के साथ-साथ रोजगार का भी साधन (ETV BHARAT) कलाकारों की फौज तैयार कर डालीःकहा जाता है कि विद्या बांटने से बढ़ती है. अशोक बिस्वास ने इस सिद्धांत को आत्मसात कर लिया और अपनी इस कला की ज्योति से कई कलाकारों के जीवन में टिकुली कला की चमक बिखेरी. रोहतास जिले के डेहरी के रहनेवाले अशोक बिस्वास फिलहाल राजधानी पटना के भिखना पहाड़ी इलाके में रहकर इस कला और इसके कलाकारों को नयी रौशनी दे रहे हैं. अशोक बिस्वास करीब 8000 टिकुली कलाकारों की फौज तैयार कर चुके हैं.
पीएम नरेंद्र मोदी के साथ अशोक बिस्वास (ETV BHARAT) "मेरे दिमाग में था कि मैं खुद काम करूंगा तो मेरे बाद इसको आगे बढ़ानेवाले नहीं रहेंगे तो 1993 में दीघा, नासरीगंज में हम एक ऐसा सेंटर खोले जहां गरीब महिलाओं को फ्री ट्रेनिंग देनी शुरू की और अभी तक 8 हजार लोगों को ट्रेनिंग दे चुके हैं. मेरे 10 स्टूडेंट ऐसे हैं जो जिन्हें स्टेट अवॉर्ड मिल चुका है."पद्मश्री अशोक कुमार बिस्वास, टिकुली कलाकार
कला के साथ-साथ रोजगार का साधनःपद्मश्री अशोक बिस्वास ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान कहा कि "छात्र जीवन से ही मैं टिकुली कला के प्रति समर्पित था.मैंने कई गरीब महिलाओं को प्रशिक्षित किया जिससे कि आज वे अपनी रोजी-रोटी चला रही हैं । अशोक विश्वास ने कहा कि 1982 में एशियाड गेम्स के दौरान अतिथियों को सम्मानित करने के लिए 20 हजार पेंटिंग की ऑर्डर मिला था. दरअसल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पेंटिग खूब अच्छी लगी थी जिसके बाद उन्हें ये ऑर्डर मिले थे.
टिकुली कला और अशोक बिस्वास एक दूसरे के पर्यायः पद्मश्री अशोक बिस्वास और टिकुली कला आज एक-दूसरे के पर्याय बन चुके हैं. राष्ट्रीय स्तर पर अपनी खास पहचान बनी चुकी टिकुली कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पहचान दिलाने के लिए अशोक बिस्वास जीन-जान से जुटे हैं. उनकी हार्दिक इच्छा है कि टिकुली कला की रोशनी पूरी दुनिया के बाजारों में अपनी चमक बिखेरे और अशोक बिस्वास जिस लगन से लगे हुए वो अपने मिशन में निश्चित रूप से कामयाब होंगे.
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