पटनाः पटना हाईकोर्ट ने तलाक के संबंध में दायर अर्जी को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि 'सिर्फ आरोप लगा देने से तलाक नहीं दिया जा सकता है.' जस्टिस पीबी बजनथ्री और जस्टिस आलोक कुमार पांडेय की खंडपीठ ने हाजीपुर परिवार न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए कहा कि, आरोप का साबित भी करना होता है. इसके साथ ही कोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया.
क्या है मामलाः एक व्यक्ति ने हाजीपुर परिवार न्यायालय में पत्नी से तलाक लेने के लिए केस दायर किया था. आरोप लगाया था कि पत्नी मानसिक बीमारी से ग्रसित है. उसका व्यवहार सामान्य नहीं है, जिस कारण उसका वैवाहिक जीवन काफी तनाव पूर्ण है. पत्नी की ओर से जवाबी हलफनामा दायर कर कहा गया कि लगाये गये सभी आरोप बेबुनियाद हैं. दहेज में मांगी गई कार नहीं दिये जाने के कारण यह आरोप लगाया गया है. शादी 2007 में हुई और सम्बंध विच्छेद केस 2011 में फर्जी कागजात के आधार पर दाखिल किया गया.
पत्नी के कारण जीवन खतरा मेंः लड़के की ओर से कोर्ट को बताया गया कि बीमारी की सूचना पत्नी के पिता को दी गई, तब वो अपने पुत्र के साथ आए और पत्नी को दवा दिये. जिसके बाद वह सामान्य हो गई. दी गई दवा को जब केमिस्ट को दिखाया गया, तो उसने बताया कि दवा मानसिक बीमारी की है. उसके बाद पता चला कि पत्नी मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं. उनका कहना था कि पत्नी के व्यवहार से उसका जीवन खतरा में है. बीमारी का पता चलने के बाद पत्नी मैके चली गई. शादी के चार साल बीत जाने के बाद कोई बच्चा नहीं हुआ.
देर से केस करने का कारण नहीं बतायाः दोनों पक्षों की ओर से पेश गवाहों की गवाही और साक्ष्य के रूप में दिये गये कागजात को देखने के बाद कोर्ट ने माना कि पति की ओर से दी मानसिक रोगी के कागजात को सत्यापित करने के लिए डॉक्टर को कोर्ट में पेश नहीं किया गया. यही नहीं, शादी के तुरंत बाद मानसिक रोग का पता चलने के चार साल बाद केस दायर करने का कोई कारण नहीं बताया गया. कोर्ट ने कहा कि इस बात का कहीं जिक्र नहीं किया गया है कि बीमारी ठीक हो सकती है या नहीं. कोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया.
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