ग्वालियर: कोरोना काल के दौरान शहर के निजी अस्पताल में भर्ती मरीज की नकली प्लाज्मा चढ़ाने से हुई मौत मामले के मुख्य आरोपी को कोर्ट ने 10 साल की सजा सुनाई है. हैरानी की बात यह है कि नकली प्लाज्मा चढ़ाए जाने को कोर्ट में सिद्ध नहीं किया जा सका. कोर्ट ने अजय शंकर त्यागी को फर्जी दस्तावेज बनाने का दोषी मानते हुए उसे सजा सुनाई है.
नकली प्लाज्मा को कोर्ट में पेश नहीं कर सकी पुलिस जिससे मरीज की हुई मौत
इस मामले में एक बार फिर पुलिस की विवेचना सवालों के घेरे में खड़ी हो गई. जिस नकली प्लाज्मा को लेकर मरीज की मौत हुई उसे न तो कोर्ट में पेश किया गया और न ही उसकी कोई कोई फोरेंसिक जांच की गई. इस चर्चित कांड में अस्पताल के प्रबंधन के अलावा बड़े लोग शामिल थे. इसीलिए पुलिस भी मुकदमा दर्ज करने से कतरा रही थी. लेकिन मृतक मनोज गुप्ता के परिवार के लोगों ने इस मामले को लेकर हंगामा खड़ा किया तब कहीं जाकर पड़ाव पुलिस ने गैर इरादतन हत्या और धोखाधड़ी की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था.
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न्यायालय ने नकली प्लाज्मा चढ़ाने की बात को सही नहीं माना और इस मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया. लेकिन एक आरोपी अजय शंकर त्यागी को धोखाधड़ी और कूट रचना कारित करने का दोषी मानते हुए उसे 10 साल की सजा से दंडित किया है. बचाव पक्ष के अधिवक्ता मनोज उपाध्याय का कहना है कि वह इस निर्णय के खिलाफ अपर कोर्ट में अपील करेंगे.