गया:एक तरफ डिजिटलाइजेशन और गांवों को हाईटेक बनाने की बातें की जाती हैं. वहीं दूसरी तरफ बिहार के एक गांव की तस्वीर कुछ और ही बयां कर रही है. बिहार के गया जिले से 130 किलोमीटर दूर एक ऐसा गांव है जहां बच्चे हों या बड़े किसी ने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है. इस गांव में सभी नॉन मैट्रिक हैं.
बिहार के इस गांव में सभी नॉन मैट्रिक: बिहार के गया का यह गांव है पथलधंसा. गांव में 60 घर हैं और आबादी करीब 400 से 500 है. इस गांव तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है. जंगल, पहाड़ और नदी से होकर यहां पहुंचना पड़ता है. पथलधांसा गांव में न स्कूल है, न पीने का पानी, न सड़क और ना दूसरी बुनियादी सुविधाएं. 60 से अधिक घरों की आबादी वाले गांव में मध्य विद्यालय की बात छोड़ दीजिए आंगनबाड़ी केंद्र तक नहीं है.
गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं: ईटीवी भारत की टीम गया पथलधंसा गांव के लिए शहर से शेरघाटी, इमामगंज कोठी होते हुए सोहैल थाना क्षेत्र में 3:30 घंटे में पहुंची. सोहैल थाना क्षेत्र में ही पथलधंसा गांव स्थित है. सुहैल से लगभग 1 किलोमीटर दूरी के बाद कच्ची सड़क शुरू हो जाती है.पथरीली और कच्ची सड़क पर तीन किलोमीटर चलने के बाद गाड़ी से जाने का रास्ता खत्म हो जाता है.
60 घरों की आबादी वाले गांव को भूली सरकार: फिर वहां से पत्थर और खेत नदी से होते हुए लगभग 3 किलोमीटर पैदल चल कर गांव पहुंचे. पथलधंसा गांव में 60 घरों की आबादी होगी. पहले जगदेव सिंह के घर टीम पहुंची. घर पर उनके अलावे उनकी पत्नी सूरजबलि देवी और बेटी ललिता कुमारी थी. बातचीत में पता चला कि जगदेव सिंह कई वर्षों तक समाज के मुख्यधारा से भटके हुए थे, लेकिन अब पिछले कई वर्षों से मुख्यधारा से जुड़ गए हैं. वह बताते हैं कि गांव में उन्ही के तीन बच्चों ने पढ़ाई की है, लेकिन वह भी मैट्रिक पास नहीं हैं.
"तीनों 8वीं तक ही पढ़ सके हैं. गांव में स्कूल नहीं है इसलिए आगे पढ़ा नहीं सकते. बिराज सुहैल मध्य विद्यालय जाते थे. बच्ची को अकेले अब पढ़ने भेज नहीं सकते हैं. शादी करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लें यही अब सोच है. बेटे बाहर में रहकर मजदूरी करते हैं."- जगदेव सिंह, ग्रामीण, पथलधंसा गांव
'पढ़ने का शौक था लेकिन स्कूल नहीं': ललिता कुमारी ने बड़ी हिम्मत और सुविधा के अभाव के बाद भी हर दिन 4 किलोमीटर दूर जाकर किसी तरह 8वीं क्लास तक की पढ़ाई की. अब उनकी पढ़ाई बंद हो गई है. ललिता ने कहा कि पढ़ने का शौक था, लेकिन करें क्या, गांव में स्कूल नहीं है.
"जंगल होकर जाना पड़ता है. पहले भाई साथ होते थे तो स्कूल चली जाती थी. अब भाई नहीं है. अकेले जाना संभव नहीं है. पिता जी ने मना कर दिया. मैं चाहती थी कि पुलिस जवान बनकर सेवा करूं. सपना पूरा नहीं हुआ, हमारी पढ़ाई नहीं होने की वजह गांव में स्कूल का नहीं होना है."- ललिता कुमारी,ग्रामीण, पथलधंसा गांव
'अंगूठे का निशान लगाने में आती है शर्म':गांव की ही की एक और युवती सुमति कुमारी बताती हैं कि वह ' क ख ग भी नहीं पढ़ी है. पिता जी गांव में ही जानवर चराते हैं.जीविका का सहारा लकड़ी चुन कर बेचना है. मुझे भी पढ़ने का शौक था लेकिन गांव में स्कूल ही नहीं है. पढ़ें तो क्या पढ़ें. पिता के पास पैसे उतने नहीं है कि वह मुझे बाहर रख कर पढ़ाएंगे.
"पढ़ लेते तो कुछ जरूर बन जाते लेकिन पढ़े नहीं तो बनेंगे क्या. किसी काम में अंगूठा लगाने में शर्म आती है."-सुमति कुमारी
"समस्या बहुत है, आय का जरिया लकड़ी और पत्ते हैं. पैसे देकर पढ़ा नहीं सकते हैं. स्कूल होता तो जरूर पढ़ाते. मन तो करता है पढ़ाएं लेकिन क्या करें गांव में कोई ट्यूशन पढ़ाने वाला भी नहीं है."- श्रोता देवी, सुमति कुमारी की मां
गंजू और भोक्ता जाति के लोग:यह गांव गया जिला के इमामगंज प्रखंड अंतर्गत विराज पंचायत में आता है, जहां गंजू और भोक्ता जाति के लोग निवास करते हैं. सरकार द्वारा उन्हें आदिवासी कैटेगिरी का बताया जाता है, लेकिन गांव के बूढ़े जवान एवं बच्चों ने आज तक स्कूल का चेहरा नहीं देखा है.
बाजार जाने में भी परेशानी: गांव में सरकारी सुविधा के नाम पर सिर्फ बिजली है. उसमें भी पूरे गांव में बिजली के खंभे नहीं बल्कि लकड़ी बांस के सहारे तार खींचा हुआ है. गांव में प्रधानमंत्री इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत चार-पांच लोगों को लाभ मिला है,जिनको लाभ मिला है उन में जगदेव सिंह भी हैं. गांव के लोग बताते हैं की खरीदारी के लिए उन्हें सलैया बाजार जाना होता है. गांव से बाजार जाने के लिए पांच किलोमीटर सड़क नहीं है.
गांव में एक चापाकल: गांव के ग्रामीण बताते हैं कि गांव में एक मात्र निजी चापाकल है, जो केवल बरसात और ठंड के मौसम में चलता है. गर्मी में यह सुख जाता है. उन दिनों ग्रामीण पहाड़ी नदी में गड्ढे खोद कर पानी पीते हैं. गांव में कोई सरकारी बोरिंग नहीं है इसलिए समस्या होती है, नदी का गंदा पानी का सेवन करते हैं.