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महाकुंभ 2025; निर्वाणी अनी अखाड़े का विशेष महत्व, जानिए क्या है परंपरा, कहां है इसका मुख्य केंद्र? - MAHAKUMBH 2025

निर्माणी अखाड़ा के श्रीमहंत गौरी शंकर दास ने की खास बातचीत.

महाकुंभ 2025
महाकुंभ 2025 (Photo credit: ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 25, 2024, 8:52 PM IST

प्रयागराज : धर्म और आस्था की नगरी प्रयागराज में सबसे बड़े धार्मिक मेले महाकुंभ की शुरुआत होने वाली है. सभी 13 अखाड़ों में निर्वाणी अनी अखाड़े का अपना विशेष महत्व है. आज हम आपको निर्वाणी अनी अखाड़े के बारे बताएंगे.

श्रीमहंत गौरी शंकर दास ने की खास बातचीत (Video credit: ETV Bharat)

निर्माणी अखाड़ा के श्रीमहंत गौरी शंकर दास ने बताया कि स्वामी बाला आनंद ने अखाड़े का निर्माण किया था. मुगलों के प्रभाव से आक्रांत हो गया था देश जब, तब स्वामी बालानंद ने श्री पंचरामानंदी निर्वाणी अनी, निर्मोही और दिगंबर अखाड़े की स्थापना की. निर्वाणी अनी अखाड़े का मुख्य केंद्र हनुमानगढ़ी अयोध्या है. अखाड़े में निर्वाणी अखाड़ा, खाकी अखाड़ा, हरिव्यासी अखाड़ा, संतोषी अखाड़ा, निरावलंबी अखाड़ा, हरिव्यासी निरावलंबी अखाड़ा यानी कुल 7 अखाड़े शामिल हैं. इस अखाड़े के महंत का चुनाव 12 वर्ष पर होता है. वर्तमान में अखाड़े के महंत गौरी शंकर दास हैं.

हिंदू धर्म की रक्षा के लिए करीब 500 वर्ष पूर्व नासिक कुंभ में जयपुर राजघराने के राजकुमार ने अपनी संपत्ति दान देकर जगद्गुरु रामानंदाचार्य महाराज से दीक्षा ली थी. कालांतर में इनका नाम स्वामी बाला आनंद रखा गया. निर्वाणी अनी अखाड़े का मुख्य केंद्र हनुमानगढ़ी है. यह अयोध्या में स्थित है. इसका संविधान संस्कृत भाषा में 1825 में लिखा गया. इसका हिंदी रूपांतरण 1963 में हुआ. हनुमानगढ़ी अखाड़ा लोकतंत्र का आगे लेकर चलने वाला अखाड़ा है. अखाड़े में चार अलग-अलग पट्टियां हैं. इनके नाम सागरिया, उज्जैनिया, हरिद्वारी और बसंतिया निर्वाणी अखाड़ा हैं.


12 वर्षों में होता है नागापना :हनुमानगढ़ी मंदिर की गद्दी पर वर्तमान में महंत प्रेमदास महाराज विराजमान हैं. इससे पहले इस पद को महंत बलराम दास, महंत जयकरण दास, महंत सीताराम दास, महंत दीनबंधु दास, महंत मथुरा दास, महंत रमेश दास सुशोभित कर चुके हैं. हनुमानगढ़ी में हर 12 वर्ष पर नागापना समारोह होता है. इसमें धर्म प्रचार का संकल्प लेकर नए सदस्यों को साधु की दीक्षा दी जाती है. इन्हें 16 दिन तक सेवक के रूप में सेवा करनी होती है. इसके बाद वे मुरेठिया के रूप में सेवा करते हैं. 16 दिन बाद नए सदस्यों का नाम मंदिर के रजिस्टर में दर्ज होता है. इसके बाद इन्हें हुड़दंगा का नाम दिया जाता है. 12 वर्ष पर कुंभ के दौरान वरिष्ठ संतों को नागा की उपाधि दी जाती है.


लोकतांत्रिक तरीके से निपटाए जाते हैं सारे विवाद :12 वर्ष पर कुंभ के दौरान वरिष्ठ संतों को नागा की उपाधि दी जाती है. हनुमानगढ़ी अखाड़े में 4 पट्टी में प्रत्येक में तीन जमात हैं. इनके नाम खालसा, झुन्डी और डुंडा हैं. प्रत्येक जमात में दो थोक होता है. इसे परिवार कहा जाता है. प्रत्येक परिवार में आसन होते हैं. इन्हें संतों का निवास स्थान कहा जाता है. सारे विवाद लोकतांत्रिक परंपरा के अंतर्गत ही निपटाए जाते हैं. हनुमानगढ़ी के संतों को कहीं मांगने नहीं जाना पड़ता. उनके लिए भोजन, प्रसाद, फलाहार, वस्त्र आदि की व्यवस्था मंदिर की लोकतांत्रिक परंपरा के तहत की जाती है.

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