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नए साल के पहले दिन लगा करणी माता मंदिर में 'सावन भादो कढ़ाई' महाप्रसाद का भोग - KARNI MATA TEMPLE

विश्व विख्यात बीकानेर के देशनोक स्थित करणी माता मंदिर में नए साल के पहले दिन महाप्रसाद का भोग लगाया गया.

श्रीकरणी माता मंदिर
श्रीकरणी माता मंदिर (ETV Bharat Bikaner)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 1, 2025, 10:25 AM IST

बीकानेर : बीकानेर के देशनोक स्थित विश्व विख्यात श्रीकरणी माता मंदिर में नए साल के पहले दिन सावन भादो महाप्रसाद का भोग लगाया गया. मां करणी के प्रति आस्था देश के कोने-कोने में है. वैसे तो इस मंदिर में घूमते चूहों को देखकर लोग अचंभित हो जाते हैं और इस कारण पूरे विश्व में इस मंदिर की अपनी एक अलग चर्चा है, लेकिन इस मंदिर से जुड़ी एक और परंपरा है. महाप्रसाद की परंपरा यहां दशकों से चली आ रही है. श्रद्धालु मन्नत पूरी होने के बाद माता को महाप्रसाद चढ़ाता है, जिसकी सामग्री और वितरण दोनों पहले से ही तय होते है. तय मानक से अधिक या कम न तो बन सकता है, न बंट सकता है.

महाराजा गंगा सिंह ने शुरू की थी परंपरा :महाप्रसादी का भोग आयोजन किसी भी दिन किया जा सकता है. जरूरी नहीं कि नए साल पर भी इसे बनाया जाए, लेकिन श्रद्धालु इसे सही समय मानकर नववर्ष पर महाप्रसाद का भोग लगवाते हैं. मंदिर प्रन्यास ट्रस्ट के सीतादान बारहठ इस महाप्रसादी के इतिहास पर बात करते हुए कहते हैं कि देशनोक मंदिर में बीकानेर रियासत के महाराजा गंगासिंह के समय से यह परंपरा शुरू हुई. लंबे समय तक केवल राज परिवार ही इस आयोजन को कराता रहा, लेकिन बदलते समय में अब आम श्रद्धालु भी इसे करने में लग गए. अपनी मन्नत पूरी होने पर वे मां के दरबार में आते हैं और महाप्रसाद का आयोजन करते हैं.

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मिश्रण की मात्रा तय मात्रा व बरसाती पानी का उपयोग :उन्होंने बताया कि महाप्रसाद के लिए हलवा या लापसी का भोग लगता है. इसके लिए मिश्रण, अनुपात व वजन सब तय होता है. इस बार पहली बार दाल का हलुआ महाप्रसाद में भोग लगाया गया. इस महाप्रसादी में केवल मंदिर के अंदर बनी बावड़ी के बरसाती पानी का ही उपयोग होता है. इस बार महाप्रसादी करणी और वाचक डॉ. करणी प्रताप सिंह, पार्थ सारथी, प्रतिभा उज्ज्वल परिवार की ओर से की जा रही है.

गंग कैनाल के वक्त शुरू हुई परंपरा :बताया जाता है कि तत्कालीन महाराजा गंगासिंह जब क्षेत्र में गंगनहर लाए थे, तब कई परेशानियां आई थी, इसीलिए उन्होंने सबसे पहले इस महाप्रसादी की शुरुआत की. ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष कैलाशदान कहते हैं कि इस महाप्रसाद का नाम 'सावन भादो' है. मंदिर परिसर में ही लोहे की तीन बड़ी कढ़ाई है, जिसमें एक सावन एक भादवा और एक आसोज नाम से हैं. यह नाम हिंदू कैलेंडर माह के नाम से रखे गए हैं. एक कड़ाई में 9000 और दूसरी में 8000 किलो मात्रा में भोग तैयार होता है. इस बार 17500 किलो हलवा बनाया गया है जिसे सुबह पूजा आरती के बाद मां करणी को भोग लगाया गया.

तीन जातियों के 250 लोग करते हैं तैयार :उन्होंने बताया कि देशनोक के ही तीन जातियों के लोगों में इस कार्य को करने की जिम्मेदारी दी गई हैं. करीब 250 से ज्यादा लोग मंदिर परिसर में ही तीन दिन तक लगातार इस महाप्रसाद को बनाते हैं. इसके बाद मां करणी को महाप्रसाद का भोग लगाया जाता है. फिर मां करणी के वंशजों में निश्चित तौल के हिसाब से इसे वितरित किया जाता है. बाद में दिनभर श्रद्धालुओं को इसका वितरण होता है. करीब 50 हजार से एक लाख लोगों तक यह प्रसाद पहुंचता है.

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