दो वक्त की रोटी के लिए था संघर्ष, लोगों के घरों में किया काम, आज अमीरों के ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ा रही वनिता की कलाकृतियां - NATIONAL GIRL CHILD DAY 2025
शिमला में आदिवासी मजदूर परिवार की बेटी वनिता अपनी प्रतिभा के दम पर कला के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं.
आदिवासी लड़की वनिता की शानदार कलाकृतियां (ETV Bharat)
शिमला:दो वक्त की रोटी जुटाने के संघर्ष के बीच 12वीं के बाद आगे पढ़ाई कर पाना संभव नहीं था. इसलिए एक कारोबारी के घर पर काम करने लगी. कारोबारी परिवार ने हुनर को पहचाना और आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दिया. आज अमीरों के ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ा रही हैं वनिता की पेंटिंग और उसकी बनाई कलाकृतियां.
कला क्षेत्र में लोहा मनवा रही वनिता
अगर हौंसले कुछ कर दिखाने के हों और प्रतिभा का साथ हो, तो उस इंसान को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है आदिवासी परिवार की बेटी वनीता ने. गरीबी और संसाधनों का अभाव वनिता के लिए बड़ी चुनौती था. मगर वनिता ने अपनी कला और प्रतिभा ने हर मुश्किल का सामना किया और आज कला के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही है.
बिहार की मधुबनी पेंटिंग, गुजरात-राजस्थान के लिप्पन और तिब्बत के मंडला आर्ट बनाती हैं वनिता (ETV Bharat)
झारखंड की रहने वाली है वनिता
वनिता आदिवासी परिवार से है. वनिता का परिवार झारखंड के गुमला जिले के गांव चुहरू का रहने वाला है. मगर झारखंड के निवासी पुजार उरांव और राजकुमारी देवी की बेटी वनिता ने शिमला में ही होश संभाला, क्योंकि सालों पहले ही उसके माता-पिता मजदूरी के लिए यहां आ गए थे. वनिता ने राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला, ब्यूलिया से 12वीं की परीक्षा पास की. वनिता को बचपन से ही चित्रकारी का बहुत शौक था, लेकिन महंगे रंग और अन्य सामग्री खरीद पाना उसके लिए संभव नहीं था. गरीबी के चलते वनिता अपनी पढ़ाई भी आगे जारी नहीं रख सकी और किसी के घर में काम करने लगी.
घरेलू काम के बाद बनाती हैं पेंटिंग और कलाकृतियां
कोरोना काल के समय वनिता ने शिमला शहर के एक कारोबारी पंकज मल्होत्रा के घर में घरेलू सहायिका के रूप में काम करना शुरू किया. इस दौरान कारोबारी परिवार ने वनिता की कला की प्रतिभा को पहचाना और उसे इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू किया. जिसके चलते घरेलू काम से फुर्सत मिलने के बाद वनिता पेंटिंग बनाने लगी. इस दौरान बिहार की मधुबनी पेंटिंग, गुजरात व राजस्थान की लिप्पन आर्ट और तिब्बत की मंडला आर्ट भी उसकी पसंद का विषय बनी.
वनिता ने बताया, "पेंटिंग एवं अन्य कलाएं आमतौर पर उन लोगों का शौक होती हैं, जिन परिवारों में गरीबी नहीं होती है. एक मजदूर का परिवार तो सिर्फ दो वक्त की रोटी जुटाने के संघर्ष में ही लगा रहता है. मल्होत्रा परिवार ने मुझे अपने सपनों में रंग भरने का मौका दिया. मैं घरेलू काम करने के बाद अपना पूरा समय कला के शौक को देती हूं."
कला क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही वनिता (ETV Bharat)
इन कलाओं में माहिर हो चुकी हैं वनिता
वनिता ने बताया कि वो पेंटिंग, लिप्पन और मंडला कलाकृतियों के अलावा कप एवं कॉफी मग पर भी खूबसूरत चित्रकारी करती हैं. लोग उसके बनाए बुकमार्क, मिरर प्रेम और दूसरे हैंगिंग आइटम्स भी काफी पसंद करते हैं. झारखंड के आदिवासी मजदूर माता-पिता की बेटी वनिता को बचपन से कलाकृतियां बनाने का शौक है. वनिता ने बताया कि वो बिहार की मधुबनी पेंटिंग, गुजरात, राजस्थान के लिप्पन और तिब्बत के मंडला आर्ट में माहिर हो चुकी हैं. अब वो महीने में कलाकृतियों से 7 से 8 हजार रुपये कमा लेती हैं. लिप्पन 850 से 1900, मंडला आर्ट की कलाकृति 350 से 1900 रुपये में बिक रही है. यही नहीं वनिता आजकल शहर के दो-तीन युवाओं को प्रशिक्षण भी दे रही हैं.
शिमला में लगाना चाहती हैं कलाकृतियों की प्रदर्शनी
लोअर पंथाघाटी में एचएफआरआई के पास सड़क के किनारे पंकज मल्होत्रा की कोठी के परिसर में वनिता शाम को 2 घंटे अपनी कलाकृतियां सजाती हैं. वहां से आते जाते लोग उसकी कलाकृतियां खरीद लेते हैं. कुछ आर्डर उसे इंस्टाग्राम और सोशल मीडिया के जरिए भी मिल जाते हैं. वनिता भविष्य में शिमला में अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाना चाहती हैं और ई-कॉमर्स के जरिए भी देश-विदेश में उनकी कलाकृतियों की बिक्री उसके एजेंडे में है.
उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर अजय श्रीवास्तव ने कहा,"हमारी संस्था वनिता को शिमला में अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाने में मदद करेगी. एक आदिवासी मजदूर परिवार की बेटी की प्रतिभा के समाज के सामने आने से दूसरी बेटियां भी उससे प्रेरणा ले सकेंगी."