श्रीनगर:जहां एक ओर पहाड़ से लोग अपनी जल, जंगल और जमीन को छोड़कर रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ भाग रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो वापस आकर अपनी भूमि को आबाद कर रहे हैं. इनमें एक दंपति भी शामिल है, जो गांव लौटा और करीब 80 नाली बंजर पड़ी भूमि को उपजाऊ बना दिया है.
खंडूड़ी दंपति ने 80 नाली बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ:दरअसल, पौड़ी जिले के क्युराली गांव के रिटायर्ड इंजीनियर नरेश खंडूड़ी और उनकी अध्यापिका पत्नी पद्मा खंडूड़ी अपने पैतृक गांव लौटे हैं. नरेश खंडूड़ी हाल ही में हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर से सहायक अभियंता के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. जबकि, उनकी पत्नी पदमा खंडूड़ी पेशे से शिक्षिका हैं. जिन्होंने गांव पहुंचकर करीब 80 नाली बंजर पड़ी पहाड़ की भूमि को उपजाऊ बना दिया है.
पौड़ी में खंडूड़ी दंपति बने मिसाल (वीडियो- ETV Bharat) कई प्रकार के फलदार और बहूमूल्य पेड़ लगाए, सब्जियों का कर रहे उत्पादन:यह जमीन पूरी तरह से बिखरी हुई जोत और पहाड़ी पर थी. उन्होंने मेहनत से खोदकर खेती लायक और उपजाऊ बनाया है. उन्होंने यहां आम, लीची, कटहल, आड़ू, केला, चीकू, आंवला, लौंग, नींबू, सेब, नाशपाती, कागजी नींबू, पपीता, सफेद चंदन, लाल चंदन लगाए हैं. इसके अलावा मौसमी सब्जियों की भी खेती कर रहे हैं. उनके खून पसीने ने बंजर भूमि को हरा भरा कर दिया है.
अपने खेतों में काम करते नरेश खंडूड़ी और पद्मा (फोटो- ETV Bharat) सहायक अभियंता के पद से रिटायर्ड होने के बाद किया रिवर्स पलायन:नरेश खंडूड़ी ने बताया कि गढ़वाल विश्वविद्यालय से असिस्टेंट इंजीनियर के पद से रिटायर होने के बाद उन्हें लगा कि अब समाज के लिए भी कुछ करना चाहिए और अपना योगदान देना चाहिए. उनके पिता देवेश्वर प्रसाद खंडूड़ी और माता शकुंतला देवी के साथ ही उनकी पत्नी ने उन्हें समाज के लिए कुछ करने को लेकर प्रोत्साहित किया.
फल तोड़तीं पदमा खंडूड़ी (फोटो- ETV Bharat) उनका मन था कि कुछ ऐसा काम करना चाहिए, जिससे गांव के कुछ लोगों को रोजगार दिया जा सके. उन्होंने बताया कि उनका सपना था कि नौकरी से रिटायर होने के बाद रिवर्स पलायन करेंगे और गांव में खेती बाड़ी करेंगे. आज उन्होंने बंजर भूमि को अपने खून पसीने से सींचकर आबाद कर दिया है. साथ ही कहा कि किसी भी काम को मेहनत से करो तो उसका फल मिल ही जाता है.
नरेश खंडूड़ी के खेत में लगे पपीता (फोटो- ETV Bharat) नहीं भाया शहर, अब गांव में कर रहे खेती किसानी: पद्मा खंडूड़ी ने बताया कि उनके गांव में कुछ जमीन बंजर पड़ी हुई थी. कोरोना काल में उन्होंने उस जमीन को आबाद करने का सोची. क्योंकि, गांव में ही शुद्ध हवा और पानी मिल सकते हैं. वे पेशे से एक शिक्षिका हैं, इसलिए छुट्टी के दिनों में ही वे खेती को समय दे पाती हैं, लेकिन उनके पति रिटायर हो चुके हैं. ऐसे में वे ही ज्यादातर काम देखते हैं. उन्होंने कहा कि वे ग्रामीण परिवेश से आती हैं और शहरों का वातावरण उन्हें नहीं भाता है. इसलिए उन्होंने गांव में रहकर खेती-किसानी करने का निश्चय किया.
नरेश खंडूड़ी (फोटो- ETV Bharat) बंजर जमीन पर लगा दिए कई प्रकार के पेड़:नरेश खंडूड़ी बताते हैं कि उन्होंने यहां 250 से ज्यादा विभिन्न प्रकार के पेड़ लगाए हैं. अब उन्हें खेती और किसानी करने में आनंद आने लगा है. वे सुबह 9 बजे अपने घर से निकलते हैं और अपने बगीचे में 4 से 5 घंटे तक काम करते हैं. साथ ही उन्होंने एक रेस्ट हाउस का भी निर्माण किया है, जहां वे रहते हैं. उनका रेस्ट हाउस गोबर, पत्थर और मिट्टी से बना है.
खंडूड़ी दंपति के बगीचे में लगे फल (फोटो- ETV Bharat) उन्होंने बताया कि पहाड़ों में अक्सर पानी की समस्या होती है, इसलिए उन्होंने बरसात के समय, जब किसी को पानी की आवश्यकता नहीं होती, तब पानी को इकट्ठा करने का इंतजाम किया है. उन्होंने पेड़ों और पौधों को पानी देने के लिए 10 पांच सौ लीटर और हजार लीटर के दो टैंक रखे हैं. साथ ही 10 हजार लीटर का एक टैंक भी बनाया है, जिससे बगीचे में पानी की आपूर्ति होती है. वे गांव के दो अन्य लोगों को भी रोजगार दे रहे हैं.
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