आगरा: हर किसी के हाथ में आज स्मार्टफोन है. सस्ते डेटा प्लान, ऑनलाइन पढ़ाई के साथ ही हर काम आज मोबाइल-लैपटॉप से हो रहा है. जिससे बच्चे, किशोर, युवा और हर कामकाजी का स्क्रीन टाइम बढ़ा है. जिसके रिजल्ट भी अब दिखने लगे हैं. मोबाइल और लैपटॉप की वजह से बच्चों की आंखों में परेशानी के साथ ही मनोरोगी हो रहे हैं, तो किशोर और युवा एनजाइटी के साथ ही अन्य साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम्स से जूझ रहे हैं.
इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत राठी ने दी जानकारी (video credit- Etv Bharat) ईटीवी भारत ने इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत राठी से इस प्रभाव को लेकस खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि, मोबाइल और लैपटॉप के अधिक चलन से आज हर किसी की नींद गड़बड़ाई है. जिससे स्लीप वेक साइकिल डिसऑर्डर के मरीज बढ़ रहे हैं. आइए, जानते हैं क्या क्या प्रॉब्लम हो रही हैं. उन्हें कैसे दूर करने के टिप्स जानें.
इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत राठी बताते हैं, कि आज हर हाथ में मोबाइल और लैपटॉप है. जिसकी वजह से बच्चे, किशोर, युवा और कामकाजी लोग देर रात तक मोबाइल या लैपटॉप पर रील देखना, मूवीज देखना पसंद करते है. इसकी वजह से देर तक जागना और देरी से सोना होता है. इससे ही नींद का चक्र गड़बड़ा जाता है. जिसकी वजह से आज बच्चे, किशोर और युवा के हार्मोंस प्रभावित हो रहे हैं. उनके दिमाग में केमिकल लोचा हो रहा है. ये विकार बच्चों, किशोर- युवाओं में तेजी से बढ़ रहा है.
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ये केमिकल कर रहे मष्तिक में लोचा:इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत राठी ने बताया, कि मानसिक बीमारी की सबसे अधिक डोपामाइन हार्मोन है. 'डोपामाइन' यानी 'हैप्पीनेस हार्मोन' ही हमारे दिमाग में काम करने वाले एक यूरो ट्रांसमीटर है. जिससे हमारे ब्रेन की कोशिकाएं आपस में बातचीत करती हैं. ये 'डोपामाइन' ही एक सेल से दूसरे सेल तक सिग्नल ट्रांसफर करता है.
इस पर ही हमारा मूवमेंट, मेमोरी, मूड, अटेंशन सब निर्भर है. जब शरीर में इसका पर्याप्त स्तर नहीं होता है, या स्तर गिरता है तो तमाम मनोरोग होते हैं. इसके साथ ही अन्य केमिकल हैं. जो मष्तिक की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं. ये ही मष्तिक को तरोताजा रखते हैं. इन केमिकल्स के डिसबैलेंस होने से व्यक्ति की याददाश्त कमजोर हो जाती है. ये मरीजों का दवाओं से किया जाता है.
मां-बाप कर रहे ये गलती:इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत राठी बताते हैं, कि बच्चे या किशोर में रही परेशानी को लेकर आने वाले माता-पिता की काउंसलिंग में कई बातें सामने आ रही हैं. अधिकतर माता-पिता ही अपने बच्चों को मोबाइल देते हैं. उसे रोने या खाना नहीं खाने पर मोबाइल थमा देते हैं. ऐसे में जब बच्चे के न्यूरोंस पहली बार मोबाइल देखते हैं. तो उन्हें अच्छा लगता है. बाद में यही उसकी आदत बन जाती है. जिसके बाद ऐसे बच्चों को लेकर माता-पिता क्लीनिक पर पहुंचते हैं.
बच्चों में ये बदलाव समझें:चिड़चिड़ापन अधिक होना. बच्चे को स्कूल ने पर रोना. बच्चे का खाना पीना कम होना. अपने आसपास लोगों से झगडना. बच्चे का दिन में सुस्त होना. बच्चे का उदंड होना.
काउंसलिंग से दूर रही बीमारी:इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत राठी ने बताया कि, मोबाइल और लेपटॉप पर देर रात तक काम करना या कुछ देखना मानसिक तनाव का कारण भी बन रहा है. ये लोगों की आदत बन गई है. ऑनलाइन क्लास और वर्क के नाम पर आज भी बच्चे देर तक मोबाइल या लैपटाप चलाते हैं. जिसकी वजह से बच्चे चिड़चिड़ापन हो रहे हैं. वे दिनभर सुस्त रहते हैं. पहले तो लोग ये समझते ही नहीं हैं कि, मोबाइल या लेपटॉप देखने से मनोरोग हो सकता है. जबकि, ऐसे लोगों की काउंसिलिंग के साथ ही दवाओं से ये लत और बीमारी ठीक हो रही है.
ये टिप्स अपनाएं:बच्चों में जल्दी सोने की आदत डालें. बच्चों को रात में मोबाइल न देखने दें. बच्चों को खेलकूद, शारीरिक गतिविधियां करवाएं. स्कूल संचालक अब बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई ना कराएं. युवा भी मोबाइल, लेपटॉप और टीवी रात में कम देंखें. कामकाजी लोग देर रात तक लेपटॉप पर कार्य ना करें.युवा और कामकाजी लोग भी रात को जल्दी सोएं.हर व्यक्ति रोजाना सुबह पांच बजे जाग जाएं. लोग सुबह योग-ध्यान के साथ ही व्यायाम करें.
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