नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल में बंद हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया है. अब केजरीवाल के सामने मेयर का चुनाव सबसे बड़ी चुनौती बन गई है. दिल्ली नगर निगम का सत्र अप्रैल से शुरू होता है और पहली बैठक में मेयर का चुनाव करवाने के लिए दिल्ली नगर निगम बाध्य है. यदि चुनाव नहीं हुआ तो संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा.
कई पड़ावों से गुजरती है सरकारी फाइल:निगम अधिकारियों की मानें तो अभी तक मेयर चुनाव में जो प्रक्रिया अपनाई जाती है, उसके अनुसार पीठासीन अधिकारी तय करने के लिए निगम की ओर से फाइल दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग को भेजी जाती है. शहरी विकास विभाग के पास से यह फाइल फिर मुख्यमंत्री के पास जाती है और मुख्यमंत्री के पास से फिर फाइल उपराज्यपाल (एलजी) के पास जाती है. एलजी निगम के प्रशासक हैं. अंतिम फैसला लेने की शक्ति उन्हीं के पास है. इसलिए एलजी द्वारा फाइल को मंजूरी देने के बाद पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति होती है.
वहीं, पीठासीन अधिकारी महापौर का चुनाव संपन्न कराता है. इस बार के चुनाव में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के जेल में होने की वजह से इस प्रक्रिया के पूरी होने में अड़चन आ सकती है. इस बारे में कोई अधिकारी यह भी नहीं कह रहा है कि फाइल को सीएम की मंजूरी के लिए तिहाड़ जेल भेजा जाएगा. इससे भी चुनाव टलने की संभावना जताई जा रही है. अगर फाइल को सीएम की मंजूरी के लिए तिहाड़ जेल नहीं भेजा जाता है तो इसमें प्रक्रिया का पालन नहीं हो पाएगा. साथ ही बिना सीएम द्वारा फाइल भेजे हुए एलजी फाइल को नामंजूर कर सकते हैं.
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