पटना: बिहार में शिक्षकों के लिए पुरुष होना गुनाह जैसा हो गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि जो नई ट्रांसफर नीति आई है, उसके कुछ प्रावधान ही ऐसे हैं कि पुरुष शिक्षक काफी निराश हैं. ट्रांसफर पॉलिसी की लंबे समय से शिक्षकों की मांग थी. लेकिन जब यह ट्रांसफर पॉलिसी आई तो इसके एक प्रावधान ने पुरुष शिक्षकों को निराश कर दिया. पुरुष शिक्षकों को परिवार टूटने का डर सता रहा है. इस नई ट्रांसफर पॉलिसी में यह है कि महिला शिक्षकों को उनके पंचायत से बाहर के पंचायत में पोस्टिंग मिलेगी. वहीं जो पुरुष शिक्षक हैं उन्हें उनके अनुमंडल के बाहर पोस्टिंग मिलेगी.
माता-पिता को लेकर पुरुष शिक्षक चिंतित : शिक्षा विभाग के इस नई ट्रांसफर पॉलिसी से बिहार में शिक्षकों का परिवार काफी चिंतित है. ऐसा इसलिए की पुरुष परिवार के मुखिया होते हैं और पुरुष के ऊपर कमाने के साथ-साथ घर चलाने की एक बड़ी जिम्मेवारी होती है. परिवार में माता-पिता पत्नी बच्चों की देखभाल की एक बड़ी जिम्मेवारी होती है. ऐसे में जो पुरुष शिक्षक हैं उन्हें यह डर सताने लगा है कि यदि उनका पोस्टिंग नई ट्रांसफर पॉलिसी के तहत अनुमंडल के बाहर हो जाती है तो उनके बीमार और लाचार माता-पिता का क्या होगा.
पुरुष शिक्षकों में परिवार टूटने का डर : सुपौल के शिक्षक अरविंद आयुष ने बताया कि उनके मन के हार्ट में छिद्र है और दिल्ली एम्स में इलाज चल रहा है. ओल्ड एज के कारण सर्जरी में दिक्कत है और दवाई पर ही अभी ट्रीटमेंट हो रहा है. पिताजी को पिछले वर्ष ब्रेन स्ट्रोक आया था और उसके बाद से शरीर का दाहिना हिस्सा हाथ से लेकर पैर तक काम नहीं करता है. उनकी शादी नहीं हुई है, ऐसे में माता-पिता की देखभाल के लिए वही हैं. वर्तमान में वह अपने घर से 48 किलोमीटर की दूरी पर पोस्टेड हैं. उन्हें ट्रांसफर पॉलिसी से उम्मीद थी कि घर से 15 से 20 किलोमीटर के रेडियस में उनकी पोस्टिंग हो जाएगी. लेकिन इस नई ट्रांसफर नीति के तहत पोस्टिंग होती है तो दूसरे अनुमंडल में पोस्टिंग होगी, जिसमें उनकी नई पोस्टिंग घर से 65 किलोमीटर से 120 किलोमीटर के दूरी पर हो जाएगी.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat) ''यह कैसा सुधार है कि एक ही विभाग में पुरुषों के ट्रांसफर नीति अलग है और महिलाओं की ट्रांसफर नीति अलग है. क्या बिहार में शिक्षकों के लिए पुरुष होना गुनाह हो गया है. हमें शिक्षक होने पर गर्व है और अगले जन्म में भी मैं शिक्षक बनना चाहता हूं. लेकिन भगवान से यही प्रार्थना करूंगा कि यदि अगले जन्म में शिक्षक बनना है तो महिला शिक्षक ही बनाएंं, क्योंकि बिहार में पुरुष शिक्षकों के साथ शिक्षा विभाग का बहुत भेदभाव है.''- अरविंद आयुष, शिक्षक
'बुढ़ापे में घर से दूर जाना पड़ेगा पढ़ाने' : गोपालगंज के शिक्षक असीम कांत वर्मा ने बताया कि उनकी उम्र 50 वर्ष से अधिक हो गई है. 2005 कि उनकी जॉइनिंग है. अभी के समय उनका विद्यालय घर से 3 किलोमीटर की दूरी पर है. लेकिन नई ट्रांसफर पॉलिसी के तहत नई पोस्टिंग उनकी न्यूनतम 65 किलोमीटर दूर होगी और अधिकतम की कल्पना नहीं. उनकी माताजी हृदय रोग से ग्रसित हैं और पटना के एक अस्पताल से इलाज चलता है. पिताजी की उम्र 83 वर्ष है और बुढ़ापे से चलने फिरने में दिक्कत होती है. इस स्थिति में यदि उनकी पोस्टिंग कहीं अन्यत्र हो जाती है तो उनका परिवार टूट जाएगा.
''कक्षा तीन में वह बच्चों को परिवार का पाठ पढ़ाते हैं. उस पाठ में एकल परिवार और संयुक्त परिवार में संयुक्त परिवार कितना महत्वपूर्ण होता है सुदृढ़ समाज के लिए इसकी बच्चों को जानकारी देते हैं. ऐसे में एक शिक्षक होने के नाते जब वह अपने बुजुर्ग लाचार माता-पिता को छोड़कर नौकरी के लिए दूर जाएंगे, तो समाज और बच्चों पर क्या इंपैक्ट होगा? अगर वह बच्चों को कहेंगे कि माता-पिता की सेवा करनी चाहिए तो बच्चे कहेंगे कि खुद लाचार माता-पिता को घर पर अपने हाल पर छोड़े हुए हैं, और दूसरों को ज्ञान देने चले हैं. समाज के लोग ही कहेंगे यह कैसा शिक्षक है कि नौकरी के लिए परिवार को इस उम्र में छोड़ दिया.''- असीम कांत वर्मा, शिक्षक
'महिलाओं की ट्रांसफर पॉलिसी पुरुषों पर भी लागू करें' : असीम कांत वर्मा ने बताया कि यदि वह अपने माता- पिता की सेवा नहीं कर पाएंगे बुढ़ापे में तो उनके बच्चे पर इसका क्या असर होगा, एक समाज के तौर पर यह चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि महिला शिक्षकों की तरह ब्लॉक में अलग पंचायत में स्थानांतरण होता, अथवा आसपास के ब्लॉक में पोस्टिंग होती तो वह भी चल जाती. लेकिन इस नीति से परेशानी बढ़ गई है और काफी मानसिक तनाव में है. उन्हें डर है कि कहीं परिवार न टूट जाए. सरकार से यही आग्रह है कि जो ट्रांसफर नीति महिला शिक्षकों के लिए है वह पुरुषों पर भी लागू करें.
अनुमंडल से बाहर नौकरी कैसे संभव है? : मधेपुरा के शिक्षक प्रशांत कुमार ने बताया कि उनके पिताजी 74 वर्ष के हैं, चलने में असमर्थ हैं. दो छोटे बच्चे हैं, 7 और 5 वर्ष के, पत्नी भी अस्थमा से ग्रसित हैं और भाई में भी अकेले हैं. इस स्थिति में उनके लिए अनुमंडल से बाहर नौकरी करना काफी कठिन है. अभी उनका विद्यालय उनके घर से 3 किलोमीटर की दूरी पर है और 2 वर्ष पूर्व ही घर की सेविंग खत्म कर एक नया घर तैयार कराया है.
''अनुमंडल के बाहर पोस्टिंग होती है तो न्यूनतम 60 किलोमीटर दूर उनकी पोस्टिंग होगी और पोस्टिंग की जगह की दूरी और अधिक भी हो सकती है. विभाग एक है तो पुरुषों और महिलाओं में भेद नहीं होना चाहिए. पुरुष परिवार के मुखिया होते हैं और परिवार की सभी जिम्मेदारी उनके कंधों पर होती है. ऐसे में शिक्षा विभाग से यही गुहार लगाएंगे की उन लोगों की बातें सुनी जाए और शिक्षक संघ की जो मांग रही है कि अधिकतम शिक्षकों को घर से 15 से 25 किलोमीटर दूरी पर पोस्टिंग मिले, इस पर ध्यान दिया जाए.''- प्रशांत कुमार, शिक्षक, मधेपुरा
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