प्रयागराज :मकाकुंभ देश ही नहीं पूरी दुनिया के संतों-आध्यात्मिक गुरुओं को आकर्षित कर रहा है. अमेरिका के न्यू मैक्सिको में जन्मे बाबा मोक्षपुरी भी मेले में मौजूद हैं. वह कभी अमेरिकी सेना में सैनिक थे. उस दौरान उनका नाम माइकल था. वह अपने बेटे की मौत से इस कदर टूटे कि सब कुछ त्यागने का फैसला ले लिया. इसके बाद भारत का रुख कर लिया. फिर उनकी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई. वे सनातन धर्म से जुड़कर माइकल से बाबा मोक्षपुरी बन गए.
कैसे शुरू हुआ सैनिक से संत बनने का सफर :बाबा मोक्षपुरी कहते हैं कि मैं भी कभी साधारण व्यक्ति था. परिवार और पत्नी के साथ समय बिताना था. घूमना मुझे हमेशा पसंद था. सेना में भी शामिल हुआ, लेकिन एक समय ऐसा आया जब मैंने महसूस किया कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है. तभी मैंने मोक्ष की तलाश में इस अनंत यात्रा की शुरुआत की. वे जूना अखाड़े से जुड़े हैं. अपना पूरा जीवन सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर चुके हैं.
पहली बार 25 साल पहले आए थे भारत :अमेरिका में जन्मे बाबा मोक्षपुरी ने वर्ष 2000 में पहली बार अपने परिवार (पत्नी और बेटे) के साथ भारत यात्रा की. उन्होंने बताया कि वह यात्रा उनके जीवन की सबसे यादगार घटना थी. इसी दौरान उन्होंने ध्यान और योग को जाना. पहली बार सनातन धर्म के बारे में समझा. भारतीय संस्कृति और परंपराओं ने उन्हें प्रभावित किया. यह उनकी आध्यात्मिक जागृति का आगाज था, जिसे वह ईश्वर का आह्वान मानते हैं.
बेटे की मृत्यु ने बदला दृष्टिकोण :बाबा मोक्षपुरी के जीवन में बड़ा बदलाव तब आया जब उनके बेटे की असमय मृत्यु हो गई. उन्होंने बताया कि इस दुखद घटना ने मुझे यह समझने में मदद की कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है. इसी दौरान मैंने ध्यान और योग को अपनी शरणस्थली बनाया, जिसने मुझे इस कठिन समय से बाहर निकाला.