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इस नदी का पानी छू मजबूत गुर्दे वाले भी हो जाएं बीमार! मध्य प्रदेश की 5 नदियां आचमन लायक नहीं? - Madhya Pradesh Dirtiest Rivers

मध्य प्रदेश को नदियों का मायका कहा जाता है क्योंकि यह एक ऐसा राज्य है जहां 200 से ज्यादा छोटी-बड़ी नदियां बहती हैं. इसके बावजूद दो दर्जन से ज्यादा ऐसी नदियां हैं जो प्रदूषित हो चुकी हैं. इनमें से 5 बड़ी नदियां तो ऐसी हैं कि इनका पानी पीना तो दूर आचमन करने लायक भी नहीं बचा है. पढ़िए आलोक कुमार श्रीवास्तव की ये खास रिपोर्ट...

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jul 10, 2024, 5:45 PM IST

Updated : Jul 10, 2024, 6:14 PM IST

MADHYA PRADESH DIRTIEST RIVERS
मध्य प्रदेश की सबसे गंदी नदियां (ETV Bharat)

MP Most Polluted 5 Rivers: मध्य प्रदेश की प्रमुख और जीवनदायिनी नदियों में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. ये प्रदूषण इस हद तक बढ़ रहा है कि नदियां छटपटा रही हैं और यदि यही हाल रहा तो इन नदियों का अस्तित्व समाप्त होने में ज्यादा साल नहीं लगेंगे. इन नदियों में इतने गंदे नाले मिल रहे हैं कि जब कभी इनकी सफाई होती है तो ये नदियां हांफने लगती हैं. इन नदियों में ऑक्सीजन भी कम ही है इसका असर जलीय जीव जंतुओं पर पड़ रहा है. नर्मदा प्रदेश की सबसे बड़ी और जीवनदायिनी नदी है. देश के बड़ी नदियों में प्रदूषण के मामले में ये 6वें नबंर पर इसकी गिनती होने लगी है. क्षिप्रा नदी का हाल तो इससे भी ज्यादा खराब है. यदि कहा जाए कि अब इन नदियों का दम घुट रहा है तो गलत नहीं होगा. ये ऐसी नदियां हैं जिनका पानी पीना तो दूर नहाने और अब तो आचमन करने लायक भी नहीं बचा है.

40 से ज्यादा नदियों का अस्तित्व खतरे में

मध्य प्रदेश को नदियों का मायका इसलिए कहा जाता है कि यहां 200 से ज्यादा छोटी बड़ी नदियां बहती हैं इसमें से कई नदियों का यहीं से उद्गम भी होता है. इनमें से 40 से ज्यादा ऐसी नदियां हैं जिनका अस्तित्व खतरे में पड़ता नजर आ रहा है और लगभग 20 नदियां ऐसी हैं जिनका पानी आचमन करने लायक नहीं है इनमें से 5 ऐसी बड़ी और प्रमुख नदियां शामिल हैं. अगर लोगों ने इन नदियों को प्रदूषित करना नहीं छोड़ा तो तय मानिए कि वह दिन दूर नहीं जब ये विलुप्त हो जाएंगी और आने वाली पीढ़ियां इन्हें किताबों में ही पढ़ेंगीं.

नेशनल वाटर क्वालिटी मॉनिटरिंग की रिपोर्ट

नेशनल वाटर क्वालिटी मॉनिटरिंग प्रोग्राम के तहत नदियों के पानी की जांच की जाती है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा नदियों की जल गुणवत्ता का विश्लेषण किया जाता है. 2023 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल नदियों की संख्या की बात करें तो वो लगभग 603 हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार देश के 28 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में 279 नदियां प्रदूषित पाई गईं. इन 279 नदियों के 817 स्थानों पर बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड( BOD) का स्तर 3 mg/L से अधिक था. हालांकि साल 2022 और 2018 से तुलना की जाए तो 2022 में नदियों के प्रदूषण में सुधार देखा गया है. साल 2018 की बात करें तो उस समय 31 राज्यों की 323 नदियां प्रदूषित थीं. इस रिपोर्ट में यदि मध्य प्रदेश की बात की जाए तो अलग-अलग श्रेणी में प्रदूषण के अनुसार यहां 19 नदियां प्रदूषित हैं.

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होना सबसे बड़ी वजह

बता दें कि पानी की परख बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) के मानक के आधार पर की जाती है. पानी में अगर जैविक कचरा ज्यादा हो तो उसे नष्ट करने के लिए पानी में घुलित ऑक्सीजन की ज्यादा खपत होती है, यानि बीओडी जितना ज्यादा, प्रदूषण भी उतना ज्यादा. पीने के पानी में बीओडी अधिकतम दो या उससे कम होना चाहिए. नहाने के पानी में यह 3 से ज्यादा नहीं होना चाहिए. नदियों में बीओडी बढ़ने की सबसे बड़ी वजह सीवेज का गंदा पानी है. मल-मूत्र के अलावा मानव और पशु शव, फूल-पत्तियों का प्रवाह नदी के संतुलन को बिगाड़ देता है. दूसरी सबसे बड़ी वजह नदियों के किनारे बसे बड़े शहरों में ज्यादातर शहरो में तो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं ही नहीं. कुछ जगह हैं वहां पूरी तरह पानी साफ नहीं हो रहा है और यह गंदा पानी सीवेज नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है.

नर्मदा नदी

भारत की 7 सबसे पवित्र नदियों में नर्मदा नदी भी शामिल है. मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी और सबसे लंबी और चौड़ी नदी है. ये नदी तीन राज्यों से होकर बहती है, जिनमें मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र शामिल हैं. जिसकी कुल लंबाई 1312 किमी है. नर्मदा 1077 किमी तक मध्य प्रदेश में ही बहती हैं. ये अनूपपुर जिले में स्थित मैकाल पर्वतमानाल के अमरकंटक पहाड़ी से निकलती है और 16 शहरों से गुजरते हुए पश्चिम की तरफ होते हुए गुजरात में जाकर खंबात की खाड़ी में गिरती है. इसे रेवा के नाम से भी जाना जाता है. स्कंद पुराण के रेवाखंड में भी इस नदी के महत्व का उल्लेख मिलता है.

16 शहरों से गुजरने के कारण प्रदूषित हुई नर्मदा

यह नदी अब सबसे ज्यादा प्रदूषित हो चुकी है. 16 बड़े शहरों से गुजरने के कारण हर शहर के सीवरेज का पानी इसमें कहीं न कहीं से पहुंच रहा है. प्रयास हो रहे हैं लेकिन ये नाकाफी साबित हो रहे हैं. अब राज्य सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट की तर्ज पर नमामि देवी नर्मदे प्रोजेक्ट की शुरुआत की है. इसके तहत 1042 करोड़ की लागत से नर्मदा नदी के संरक्षण, प्रदूषण निवारण और परिक्रमा पथ के लिए कॉरिडोर के निर्माण का प्रस्ताव है. नर्मदा ही ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है और हर वर्ष हजारों श्रद्धालु नर्मदा परिक्रमा करते हैं. बावजूद इस नदी को प्रदूषण से बचाने के गंभीर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं.

क्षिप्रा नदी

हिंदू धर्म की सबसे पवित्र नदियों में क्षिप्रा नदी की गिनती होती है. इसका धार्मिक और पौराणिक महत्व बहुत ज्यादा है. ब्रह्मपुराण में भी इस नदी का उल्लेख मिलता है. यह नदी धार जिले से निकलती है और 195 किमी लंबी है. इस नदी को हिंदुओं द्वारा गंगा जैसे पवित्र नदी की संज्ञा दी जाती है. इसी कारण इसे मोक्षदायिनी भी कहा जाता है. इस नदी के पूर्वी तट पर उज्जैन शहर बसा हुआ है. इस स्थान पर हर 12 साल में सिंहस्थ मेले का आयोजन किया जाता है. क्षिप्रा की प्रमुख सहायक नदियां खान और गंभीर नदियां हैं.

अब आचमन करने लायक भी नहीं बची क्षिप्रा

क्षिप्रा नदी को लेकर आई एक रिपोर्ट में यह सामने आया है कि उज्जैन में मोक्षदायिनी क्षिप्रा के जिस जल से लोग आचमन करते हैं वह इतना अधिक गंदा है कि उसको पीकर लोग गंभीर बीमार पड़ सकते हैं. उज्जैन के आसपास के क्षेत्र में क्षिप्रा का भूजल स्तर न के बराबर बचा है. यहां 12 ज्योतिर्लिंग में से एक महाकाल के दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में देशभर से लोग आते हैं और क्षिप्रा में डुबकी लगाते हैं. इस नदी का जल अब लगभग सूख चुका है और खान नदी का गंदा पानी अब इसमें छोड़ा जा रहा है. वहीं शहर के कई सीवरेज इसमें आकर मिलते हैं जिन्हें रोकने का प्रयास किया गया है लेकिन यह नाकाफी हैं. अपने उद्गम स्थान से सूखने वाली क्षिप्रा नदी को करीब 432 करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजना के द्वारा नर्मदा के सहयोग से जीवित किया गया है. इसमें नर्मदा नदी का जल छोड़ा जा रहा है.

बेतवा नदी

बेतवा मध्य प्रदेश की प्रमुख नदियों में से एक है, ये रायसेन जिले के कुमरा गांव से निकलती है. ये नदी यूपी के हमीरपुर के पास यमुना नदी में मिल जाती है. बेतवा नदी की कुल लंबाई करीबन 480 किमी है, जिसमें से 380 किमी का सफर मध्य प्रदेश में तय हो होता है. बेतवा नदी की सहायक नदियों में बीना, केन, धसान, सिंध, देनवा जैसी कई नदियां शामिल हैं. बेतवा नदी का धार्मिक महत्व भी है. इसके पास भगवान राम की चरण पादुका मौजूद हैं. एक समय वो था जब बेतवा नदी के पानी से आचमन और स्नान करने मात्र से कुष्ठ रोग और चर्म रोग ठीक हो जाते थे. लेकिन इसी बेतवा में स्नान करने वालों को अब गंभीर रोग होने की आशंका है.

प्रदूषित हुई बुंदेलखंड की बेतवा

बेतवा नदी को बुंदेलखंड की गंगा कहा जाता है. पर्यावरण रिपोर्ट के अनुसार बेतवा देश की 38 सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है. इसमें केमिकल ऑक्सीजन डिमांड 250 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से भी अधिक है. मंत्रालय ने माना है कि पानी में प्रदूषण का वह स्तर है जिसे सीवेज ट्रीटमेंट में भेजे जाने की जरूरत है.

चंबल नदी

चंबल नदी देश की नदियों में से एक प्रमुख नदी है. यह इंदौर के महू के भादकला वाटरफॉल से निकलती है. वैसे इसका मुख्य उद्गम राजस्थान से होता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार चंबल नदी का नाम चर्मणवती था. ये नदी करीबन 965 किमी का सफर तय करती है और इटावा के पास यमुना नदी में मिल जाती है. मध्य प्रदेश में चंबल नदी 325 किमी का सफर तय करती है.

जलीय जीव जंतुओं पर खतरा

चंबल नदी भी प्रदूषित हो चुकी है. कई शहरों में सीवरेज के अलावा नागदा में उद्योगों से निकलने वाले पानी से यह नदी प्रदूषित हो रही है. इसके लिए पानी की सैंपल रिपोर्ट पेश की गई जिसमें पानी में लैड, मरक्यूरी और एल्यूमिनियम जैसे कई तत्वों की मात्रा खतरनाक स्तर तक बढ़ी हुई मिली. चंबल नदी में प्रदूषण के कारण घड़ियाल समेत सभी जलीय वन्यजीवों की जान पर खतरा मंडरा रहा है. मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल भी पहुंच चुका है.

कान्ह नदी

मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के सीमा क्षेत्र में बहने वाली कान्ह नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित है. पानी की गुणवत्ता खराब होने के कारण अब नदी का पानी अब आचमन लायक भी नहीं बचा है. आपको बता दें कि इंदौर संभाग में नर्मदा सहित 12 नदियों के सर्वे की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है. यह नदी सांवेर से उज्जैन की ओर जाती है. इसी बीच के ग्रामीण नदी के पानी का उपयोग पीने के लिए करते हैं और इससे कई गंभीर बीमारियां हो रही हैं. बताया जाता है कि कान्ह नदी की सफाई को लेकर पिछले 15 साल में कई प्रोजेक्ट तैयार किए गए और इन सालों में 1157 करोड़ रुपये खर्च किया जा चुका है लेकिन नतीजा कोई खास नहीं यानि प्रदूषण जस का तस बना हुआ है.

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करोड़ों-अरबों रुपये खर्च होने के बाद भी नहीं बदलते हालात

बता दें कि इन नदियों में प्रदूषण का स्तर इस हद तक बढ़ गया है कि उनका पानी अब पीना और नहाना तो दूर आचमन करने योग्य भी नहीं है. इससे जलीय-जीवों पर भी खतरा मंडरा रहा है. जीव-जंतु दम तोड़ रहे हैं. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि नदियों के संरक्षण पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं लेकिन हालात नहीं बदल रहे हैं यह चिंताजनक है. ऐसे में लोगों को अब और ज्यादा जागरुक होने की जरूरत है.

Last Updated : Jul 10, 2024, 6:14 PM IST

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