लखनऊ :नवाबी तहजीब और अनूठी कला-परंपरा के लिए लखनऊ की पहचान विश्वभर में है. ऐसी ही विशेष कला है लखनऊ की चिकनकारी (कढ़ाई कला). यह कला न केवल देश के विभिन्न हिस्सों में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बना चुकी है. खूबसूरत कढ़ाई का अंदाज लखनऊ की धरोहरों में खास है. यह ऐसी धरोहर है जो अपनी बारीकी और सुंदरता से सभी को मंत्रमुग्ध कर कर रही है.
विदेशियों में बढ़ रही दीवानगी :नवाब मसूद अब्दुल्ला के अनुसार बीते वर्षों में अमेरिका, इंग्लैंड, और फ्रांस से हजारों लोग चिकनकारी का हुनर सीखने लखनऊ आए हैं. इन विदेशी लोगों को चिकनकारी सिखाने के लिए विशेष वर्कशॉप आयोजित की जाती हैं. सुई, धागा, और डिजाइन किट के जरिए ये लोग अपने-अपने देशों में जाकर इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं. इंग्लैंड की शीला पेन ने 1980 के दशक में चिकनकारी पर पहली किताब लिखी थी. नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि हमारे पिता नियर अब्दुल्ला के पास इंग्लैंड में रहने वाली महिला शीला पेन ने 3 साल तक चिकनकारी सीखी और उसके बाद उन्होंने चिकनकारी पर पहली पुस्तक लिखी थी.
क्यों सीख रहे अंग्रेज लखनवी चिकनकारी :नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि अब तक के हजारों की संख्या में अंग्रेजों को चिकनकारी सिखा चुका हूं. जब अंग्रेज लखनऊ में घूमने आते हैं तो शौकिया तौर पर वह लखनवी चिकनकारी भी सीखते हैं. सबसे पहले चिकनकारी पर लेक्चर के जरिए बताया जाता है कि चिकनकारी की क्या बारीकी है. इसका क्या इतिहास है और इसे क्यों पसंद किया जाता है. इसके बाद उन्हें सुई धागा डिजाइन किए हुए कपड़े और कार्यक्रम के जरिए चिकनकारी के गुर सिखाए जाते हैं.
नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि कई ऐसे अंग्रेज हैं जिन्होंने चिकनकारी सीख कर विदेशों में अपना बिजनेस शुरू कर दिया है, हालांकि कई ऐसे अंग्रेज हैं जिन्होंने चिकनकारी सिर्फ शौकिया तौर पर सीखी है. वह लखनऊ के धरोहरों के बारे में जानना चाहते हैं और उस से मनोरंजन और कला के तौर पर रुचि रखते हैं. नवाब मसूद अब्दुल्ला के मुताबिक लखनऊ चिकनकारी में अंग्रेजों को सबसे ज्यादा कुर्ता और कुर्ती पसंद आता है. साथ ही शेरवानी को लेकर भी काफी क्रेज रहता है.