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एक रात में भगवान विश्वकर्मा ने बनाया चमत्कारिक मंदिर! स्थापत्य कला देख प्यार हो जाएगा - SIDHI HISTORICAL TEMPLE

सीधी जिले का इतिहास काफी पुराना है और उसमें एक मंदिर है, जिसका उल्लेख कई किताबों व पुरातत्व विभाग की पुस्तकों में भी मिलता है.

SIDHI CHANDREHA MANDIR HISTORY FACTS
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 25, 2024, 2:23 PM IST

Updated : Nov 26, 2024, 9:35 AM IST

सीधी :जिले के रामपुर नैकिन के चंद्रेह ग्राम में अत्यंत प्राचीन शैव मंदिर व मठ मौजूद है, जिसे लेकर कहा जाता है कि इसे भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था. किवदंतियां ये भी हैं कि चेदि शासकों ने शैव सिद्धांत के प्रचार हेतु भगवान शिव की यहां स्थापना करवाई थी. मंदिर से जुड़ी हुई संरचना बालुका पत्थर से निर्मित एक मठ की तरह है, जिसमें इसके निर्माण काल से संबंधित दो प्राचीन व रहस्यमयी शिलालेख भी लगे हुए हैं. इस संप्रदाय द्वारा अनेक मंदिर स्थापित किए गए जिनमें कदवाहा मंदिर, अशोकनगर व सुरवाया मंदिर, शिवपुरी प्रमुख हैं. चंद्रेह शैव मंदिर सोन और बनास नदी के संगम के निकट स्थित है. वर्तमान में भारतीय पुरातात्विक सर्वे द्वारा इसे संरक्षित किया गया है

स्थापत्य कला का अद्भुत नजारा

सीधी जिले की जीवनदायनी नदी सोन नदी है, जिसके दाहिने किनारे पर यह चंद्रेह का शिव मंदिर है. इसका गोलाकार गर्भगृह कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण माना गया है. माना जाता है कि चेदि के राजा प्रबोध शिव द्वारा 10वीं शताब्दी यानी 972 से 973 ई. में इस प्राचीन मंदिर का निर्माण करवाया गया था. इस मंदिर की खास बात यह है कि यह मंदिर योजना के अनुसार योनि पीठ जैसा दिखता है, ऐसा डिजाइन, जो उत्तर भारत में और कही नहीं देखा गया है.

चमत्कारिक मंदिर चंद्रेह (Etv Bharat)

भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में किया था निर्माण

अगर गांव वालों की बात मानें तो इसके निर्माण से जुड़ी एक और किवदंती प्रचलित है. यहां के इतिहास की जानकारी रखने वाले ग्रामीण मनसारखन तिवारी के मुताबिक, '' इस दुर्लभ मंदिर का निर्माण दिव्य वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में किया था.'' ऐसा भी नहीं है कि इस कहानी पर कोई विश्वास न करे. क्योंकि मंदिर की स्थापत्य कला को देखकर आप भी उस पर विश्वास जरूर करने लगेंगे. इस मंदिर और किले में वास्तुकला का विवरण, पहाड़ियों के बीच मंदिर का निर्माण और पत्थरों को एक साथ रखने के लिए चूने के मोर्टार की कमी निश्चित रूप से उनके कथन को पुष्ट करती है. इसके अलावा इस मंदिर की एक और विशेषता यह भी है कि इसमें जॉइंट का उपयोग नहीं किया गया है. पत्थरों के ऊपर पत्थरों को रखकर इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया है, जो किसी आम आदमी के बस की बात नहीं और चमत्कार ही प्रतीत होती है. ऐसे में भगवान द्वारा बनाए जाने की कहानी को ज्यादा बल मिलता है.

मंदिर के साथ गढ़ी का भी कराया गया निर्माण

यहां भगवान शिव के मंदिर के साथ ही साथ एक किले का भी निर्माण कार्य कराया गया है. हालांकि, इस किले का निर्माण कार्य अधूरा था क्योंकि लोगों का कहना था कि भगवान विश्वकर्मा ने रात में यह निर्माण कार्य किया था लेकिन सुबह जल्दी हो गई, जिसकी वजह से जितना निर्माण हो सका, उतने पर ही रोक दिया गया. यहां आज भी बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए देखने को मिलते हैं और इस किले की खूबसूरती में और भी अधिक चार चांद लगाते हैं. मंदिर की किलेबंदी और मंदिर के पास स्थित किला खंडहर में तब्दील हो चुका है, जबकि मंदिर मौसम और समय की मार झेलते हुए आज में चमत्कारिक रूप से अडिग खड़ा है.

मंदिर के अंदर मौजूद शिलालेख (Etv Bharat)

मंदिर की बनावट खजुराहो से मिलती-जुलती है

मंदिर को देखकर ऐसा लगता है मानो खजुराहो के मंदिरों से ये मिलता जुलता हो. यह मंदिर 46.5 फीट लंबे और 28 फीट चौड़े एक ऊंचे चबूतरे पर बना है, जहां गोलाकार गर्भगृह के ऊपर एक बेहद अलंकृत वक्रीय शिखर है और एक बहुत ही अलंकृत सुकनासी भी है. मंदिर के ऊपरी सिरे पर छोटे-छोटे आलों, हाथियों, कीर्तिमुखों, शुभ हिंदू प्रतिमाओं, पत्ते और फूलों के पैटर्न और रैखिक पट्टियों में मानव आकृतियां बनी हुई हैं, जो बेहद ख़ास हैं. गर्भगृह में शिव पिंडी की बनावट और स्थान सबसे अनोखा है. शिव लिंग पर अर्पित जल की निकासी मगरमच्छ के मुख से होती है.

शिलालेख की भाषा अभी तक अज्ञात

इस पूरे मंदिर और किले की सबसे खास विशेषता उसके शिलालेख हैं. मंदिर में मिले दो शिलालेख में लिखी भाषा अज्ञात है. कई इतिहासकारों, सैद्धांतिक भाषाविज्ञानियों और भाषाविज्ञानियों ने शिलालेखों को पढ़ने का प्रयास किया है, लेकिन वे असफल रहे हैं. अभी तक उस भाषा के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है कि वह भाषा कब की है. इसके अलावा इसमें क्या लिखा गया है, यह भी किसी को आज तक पता ही नहीं चल पाया है. इसलिए इसे बेहद प्राचीन माना जाता है. पुरातत्व विद मोतीलाल शर्मा कहते हैं, '' इसका इतिहास अभी भी लोगों से परे है लेकिन यह लगभग 972 ई का बताया जाता है. हालांकि, इसका सबसे खास पहलू इसका शिलालेख है, जो आज तक कोई पढ़ नहीं पाया है. भारत सरकार ने इस शिलालेख को पढ़ने के लिए कई विद्वान भेजे लेकिन इसे अभी तक पढ़ने में किसी को कामयाबी नहीं मिली है.''

Last Updated : Nov 26, 2024, 9:35 AM IST

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