देहरादून: राजनीति में परिवारवाद देश की पुरानी समस्याओं में से एक है. उत्तराखंड की राजनीति में फैलते परिवारवाद पर अगर नजर डालें तो इसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों में से कोई भी पीछे नहीं है. उत्तराखंड की राजनीति में बढ़ते परिवारवाद की सबसे बड़ी पराकाष्ठा पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत हैं.
हरीश रावत ने अपने परिवार के अधिकतम लोगों के लिए राजनीतिक लॉन्च पैड तैयार किया. हरीश रावत को कांग्रेस पार्टी ने अल्मोड़ा से 1980 में पहली बार सांसद प्रत्याशी बनाया. फिर साल 1984 में, साल 1989 में, साल 1991 में, साल 1996 में, साल 1998 में, साल 1999 में सांसद प्रत्याशी बनाया. इनमें से शुरू के तीन बार को छोड़ कर बाद के चारों चुनाव हरीश रावत हारे, लेकिन टिकट मिलता रहा.
साल 2000 में उत्तराखंड का गठन हुआ और हरीश रावत नए प्रदेश उत्तराखंड में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने. इसके बाद साल 2002 में कांग्रेस ने हरीश रावत को राज्यसभा भी भेजा. साल 2004 में हरीश रावत ने अपनी धर्मपत्नी रेणुका रावत को अल्मोड़ा से सांसद प्रत्याशी बनाया लेकिन वो हार गईं. इसके बाद हरीश रावत ने 2012 में अपने पुत्र आनंद रावत को युवा कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया.
अल्मोड़ा सीट आरक्षित हुई तो हरीश रावत ने 2009 में हरिद्वार से सांसद का चुनाव लड़ा और जीत कर केंद्र में मंत्री बने. इसके बाद 2014 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने और फिर उपचुनाव में स्थानीय नेता के बजाय अपनी पत्नी रेणुका रावत को हरिद्वार से सांसद प्रत्याशी बनाया और फिर से वह बुरी तरह हार गईं. साल 2017 में हरीश रावत ने अकेले दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ा और हार गए.
साल 2019 में हरीश रावत नैनीताल लोकसभा सीट से प्रत्याशी बने और फिर हार गए. इससे बाद साल 2022 में हरीश रावत ने अपने पुत्र वीरेंद्र रावत को हैरतअंगेज तरीके से कांग्रेस का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया था. तब यह मामला बेहद चर्चाओं में रहा था. लोगों ने कहा कि जिस व्यक्ति ने पार्टी की सदस्यता की पर्ची भी नहीं भरी उसे उपाध्यक्ष बना दिया.
इससे पहले हरीश रावत 2019 में ही अपनी पुत्री अनुपमा रावत को महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री बना चुके थे. बाद में अनुपमा रावत को साल 2022 में हरिद्वार ग्रामीण से विधायक का टिकट दिला दिया. 2022 में हरीश रावत खुद लालकुआं से लड़े और हारे. अब लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी पर दबाव बनाकर उन्होंने अपने बेटे वीरेंद्र रावत को हरिद्वार लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है.
यही नहीं हरीश रावत ने अपने साले पूरन सिंह माहरा को साल 1980, 1985, 1989, 1991 और 2002 में रानीखेत से पांच बार विधायक प्रत्याशी बनाया जो केवल एक बार जीते और बाकी सब चुनाव हारे. लेकिन टिकट पर उनका कब्जा हरीश रावत के गॉड फादर होने के चलते बरकरार रहा.