छिंदवाड़ा।छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर कांग्रेस अंगद की तरह पैर जमाकर बैठी है. हर बार बीजेपी को यहां से मात खानी पड़ती है. सिर्फ एक उपचुनाव को छोड़ दिया जाए तो यहां पर कभी भी बीजेपी का कमल नहीं खिला. 1980 से लगातार कांग्रेस का 'कमल' जनता के दिलों पर राज कर रहा है. आपातकाल के बाद 1977 में जब देश में आम चुनाव हुए, उस दौरान खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गई थीं. सेंट्रल इंडिया में भी कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव हारी लेकिन एकमात्र छिंदवाड़ा लोकसभा सीट ऐसी थी, जहां पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहा. यहां से नागपुर के रहने वाले गार्गी शंकर मिश्रा सांसद बने थे. उसके बाद से 1980 में कमलनाथ ने छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और 2019 तक छिंदवाड़ा के सांसद रहे.
9 बार कमलनाथ जीते, केवल एक बार हारे, अब बेटे के हाथ कमान
साल 1980 में पहली बार छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से कमलनाथ मैदान में उतरे. फिर उन्होंने राजनीतिक रास्ते में पीछे पलट कर नहीं देखा. वह लगातार 9 बार सांसद और बड़े मंत्रालय में मंत्री रहे. एक बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे. कांग्रेस यहां पर 1997 में सिर्फ एक लोकसभा उपचुनाव हारी. 2019 से उनके बेटे नकुलनाथ छिंदवाड़ा सांसद हैं. 1996 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ का नाम हवाला कांड में आने की वजह से कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया. कमलनाथ ने अपनी पत्नी अलका नाथ को यहां से चुनाव लड़ाया. अलका नाथ चौधरी चंद्रभान सिंह को चुनाव हराकर सांसद बनी. हालांकि 1 साल के भीतर ही कमलनाथ ने अपनी पत्नी से इस्तीफा दिलवा दिया और फिर यहां से उपचुनाव में कमलनाथ खुद मैदान में उतरे. लेकिन इस बार कमलनाथ को पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के सामने हार का सामना करना पड़ा. हालांकि इसके बाद सुंदरलाल पटवा चुनाव हार गए थे.
अब 2024 में डगमगा रही नैया, बदल सकते हैं समीकरण
2019 तक छिंदवाड़ा में कमलनाथ और कांग्रेस को शिकस्त देना बीजेपी के लिए चुनौती भरा रहा है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह और भाजपा के कई बड़े दिग्गजों ने यहां पर प्रचाार किया लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. हालांकि 2019 के चुनाव में जीत का मार्जिन बीजेपी ने काफी कम कर दिया था, जो उनके लिए आशा की एक किरण है. राजनीतिक विश्लेषक मनीष तिवारी का कहना है "कमलनाथ का अपना एक राजनीतिक कद है. अगर 2024 में वे चुनाव लड़ते हैं तो बीजेपी के लिए फिर चुनौती साबित हो सकते हैं. लेकिन उनके बेटे और वर्तमान सांसद नकुलनाथ ही अगर मैदान में रहेंगे तो इस बार मोदी लहर उनके लिए खतरनाक साबित हो सकती है."