कोटा.लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर कांग्रेस ने सोमवार को 6वीं लिस्ट जारी कर दी, जिसमें कोटा-बूंदी लोकसभा सीट से भाजपा छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन करने वाले प्रहलाद गुंजल को टिकट दिया है. गुंजल का मुकाबला भाजपा के ओम बिरला से है. दोनों एक ही पार्टी में लंबे समय से थे, लेकिन पार्टी में ही धुर-विरोधी के रूप में दोनों की पहचान थी. दोनों के बीच साल 2005 के बाद कोटा डेयरी के चुनाव से मनमुटाव शुरू हुआ था. इसके बाद दोनों की लगातार 18 सालों से एक ही पार्टी में होने के बावजूद अदावत रही है.
कई मामलों में दोनों के बीच एक ही पार्टी में होने के बावजूद अलग राय नजर आई है. यहां तक कि पार्टी में अपने वर्चस्व को लेकर भी दोनों के बीच में मुखर विरोध रहा है. भूमि विकास बैंक, कृषि उपज मंडी व मार्केटिंग बोर्ड में दोनों के बीच राजनीति में वर्चस्व की लड़ाई नजर आई थी. दोनों के परिवार का कुनबा को-ऑपरेटिव में सक्रिय रहा है. ऐसे में अपने-अपने भाइयों को अध्यक्ष बनाने के लिए ही विवाद का गहराता चला गया था.
वसुंधरा से विवाद पर एनपीपी से लड़े : प्रहलाद गुंजल 2008 में रामगंज मंडी से विधायक थे. इस दौरान गुर्जर आंदोलन की शुरुआत हुई और गुर्जर आंदोलन की अगुवाई करने वाले नेताओं में वे शामिल रहे थे. इसी के चलते उनके तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया से अनबन हो गई और विवाद इतना बढ़ गया कि इन्होंने वसुंधरा के खिलाफ कई बार नारेबाजी और बयान भी दिए थे. गुर्जर आंदोलन के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा से उनकी अनबन हो गई थी, तब वे रामगंजमंडी से विधायक थे और उन्होंने पार्टी छोड़ दी. इसके बाद 2008 के चुनाव से पहले किरोड़ी लाल मीणा के साथ पीए संगमा की पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी से जुड़ गए थे. परिसीमन के चलते रामगंजमंडी सीट भी आरक्षित हो गई. जिसके बाद एनपीपी से ही प्रहलाद गुंजल ने हिंडौली से चुनाव लड़ा. हालांकि, उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
कांग्रेस में धारीवाल रहे हैं गुंजल के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी : साल 2013 के चुनाव के पहले वसुंधरा राजे सिंधिया और प्रहलाद गुंजल के बीच सुलह हो गई. जिसके बाद गुंजल को वसुंधरा राजे का करीबी नेता बन गए थे. उसके बाद उन्हें कांग्रेस के दिग्गज नेता शांति धारीवाल के खिलाफ चुनावी मैदान में 2013 कोटा उत्तर से उतारा गया. इसमें गुंजल ने कांग्रेस के दिग्गज नेता धारीवाल को मात दे दी. गुंजल के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में शांति धारीवाल ही हाड़ौती में सबसे बड़ा नाम रहा.