पटना:लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों के साथ-साथ बिहार के चार प्रमुख दलों भाजपा, जदयू, कांग्रेस और राजद के प्रदेश अध्यक्षों की भी अग्नि परीक्षा होने वाली है. 2019 में बिहार में चारों दलों के प्रदेश अध्यक्ष दूसरे थे, तो वहीं 2024 लोकसभा चुनाव में चारों के प्रदेश अध्यक्ष बदल गए हैं. ऐसे में पार्टी के जीत-हार की जवाबदेही में प्रदेश अध्यक्षों की अहम भूमिका रहने वाली है.
2024 के लिए प्रदेश अध्यक्षों के लिए चुनौती: लोकसभा चुनाव में जहां जदयू और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष को 2019 के प्रदर्शन के दौरान एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा था, तो वहीं इस बार राजद के प्रदेश अध्यक्ष के लिए खाता खोलना एक बड़ी चुनौती है. वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के लिए किशनगंज सीट बचाने के साथ नई सीट जीतना चुनौती है. चारों प्रदेश अध्यक्ष के लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन पर भविष्य की राजनीति तय होगी.
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पर बड़ी जिम्मेदारी: 2023 में सम्राट चौधरी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बने हैं, उनसे पहले नित्यानंद राय प्रदेश अध्यक्ष थे. नित्यानंद राय के नेतृत्व में 2019 में बीजेपी ने 17 सीट पर चुनाव लड़ा और 17 में जीत मिली थी. एनडीए को 40 में से 39 सीट पर जीत मिली थी, विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया. सम्राट चौधरी, नीतीश मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री के पद पर हैं. इस बार सम्राट चौधरी पर 2019 का प्रदर्शन दोहराने की बड़ी जिम्मेदारी है.
जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा की जिम्मेदारी: उमेश कुशवाहा जदयू के 2021 में प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए हैं. 2019 में वशिष्ठ नारायण सिंह जदयू के प्रदेश अध्यक्ष थे और उनके नेतृत्व में पार्टी ने 17 सीट पर चुनाव लड़ा था और 16 पर जीत मिली थी. प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा के ऊपर भी इस बार 2019 वाला प्रदर्शन दोहराने की जिम्मेवारी है, क्योंकि जदयू इस बार 16 सीट पर चुनाव लड़ रहा है.
2020 में जदयू का प्रदर्शन बेहतर नहीं: उमेश कुशवाहा के लिए लोकसभा का चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि 2020 में पार्टी का प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा और पार्टी तीसरे नंबर पर पहुंच गई अब 2025 में जब विधानसभा का चुनाव होगा तो पार्टी के लिए बेहतर प्रदर्शन करना भी एक बड़ी चुनौती है, लेकिन उससे पहले लोकसभा में अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना होगा.
2020 में जगदानंद सिंह बने राजद प्रदेश अध्यक्ष: जगदानंद सिंह लंबे समय से राजद के प्रदेश अध्यक्ष हैं और लालू तेजस्वी के भरोसेमंद भी है. 2020 में भी जगदानंद सिंह प्रदेश अध्यक्ष थे और राजद का शानदार प्रदर्शन हुआ लेकिन उससे पहले 2019 में रामचंद्र पूर्वे प्रदेश अध्यक्ष थे और पार्टी का खाता तक नहीं खुला. राजद के लिए 2019 का प्रदर्शन एक बड़ा झटका था लोकसभा चुनाव के बाद 2019 में ही जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप गई थी.
विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन: जगदा बाबू के नेतृत्व में 2020 विधानसभा चुनाव में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन से राहत भी मिली और अब फिर से जगदानंद सिंह पर आरजेडी के लिए लोकसभा चुनाव में खाता खोलने के साथ अधिक सीटों पर जितने की बड़ी जिम्मेदारी है. इस बार जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह बक्सर से लोकसभा का चुनाव भी लड़ रहे हैं, इसलिए जगदानंद सिंह पर दोहरी जिम्मेदारी है.
2022 में अखिलेश सिंह को मिली कांग्रेस की जिम्मेदारी: 2019 में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा थे. महागठबंधन में 2019 में कांग्रेस का ही खाता खुला था. कांग्रेस ने किशनगंज सीट पर जीत हासिल की थी, 2020 में भी मदन मोहन झा ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे. विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के तहत कांग्रेस को 19 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. मदन मोहन झा के इस्तीफा के बाद 2022 में प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी अखिलेश प्रसाद सिंह को मिली. लोकसभा चुनाव में उनपर किशनगंज सीट कांग्रेस के लिए फिर से जितना बड़ी चुनौती है, साथ ही कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरे इसकी भी जिम्मेदारी है.
क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ ?: वरिष्ठ पत्रकार और बिहार की राजनीति को नजदीक से समझने वाले रवि उपाध्याय का कहना है किचारों प्रदेश अध्यक्ष के लिए चुनौती बड़ी है और एक तरह से अग्नि परीक्षा है. लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर ही चारों प्रमुख राजनीतिक दल के प्रदेश अध्यक्ष का राजनीतिक भविष्य तय होगा.