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संथाल में जिसने भी झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थामा कभी नहीं मिली जीत, अब सीता का क्या होगा भविष्य?

Leader of Santhal who left JMM. सीता सोरेन ने झामुमो छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है. लेकिन अगर इतिहास को देखें को यह सीता सोरेन के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि इतिहास ये कहता है कि संथाल में जिसने भी झामुमो का हाथ छोड़ बीजेपी का दामन थामा वह ना तो लोकसभा चुनाव जीत सका और ना ही विधानसभा चुनाव.

Leader of Santhal who left JMM
Leader of Santhal who left JMM

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Mar 19, 2024, 8:49 PM IST

Updated : Mar 20, 2024, 6:28 AM IST

गोड्डा:संथाल परगाना झामुमो का गढ़ रहा है. यहां से शिबू सोरेन के कई करीबियों ने उनका साथ छोड़ा और अन्य दलों से भाग्य आजमाया, लेकिन कोई भी चुनावी जीत दर्ज नहीं कर पाया. उनमें भी एक खराब रिकॉर्ड ये रहा कि जिसने भी भाजपा का दामन थामा उसने कभी जीत का स्वाद नहीं चखा.

संथाल पर अगर एक नजर दौड़ाएं तो झामुमो छोड़ने वालों में सबसे बड़ा नाम सूरज मंडल, साइमन मरांडी, हेमलाल मुर्मू और स्टीफेन मरांडी का है. इनमें एक नया नाम गुरुजी शिबू सोरेन के घर की बड़ी बहू सीता सोरेन का नाम भी जुड़ गया है. इन्होंने ठीक लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा का दामन थाम लिया है.


सूरज मंडल ने छोड़ा था झामुमो का हाथ

सूरज मंडल झारखंड को राजनीति में एक समय बड़ा नाम रहे हैं. ये कभी शिबू सोरेन के राइट हैंड या यूं कहें नंबर दो की हैसियत रखते थे. पहले पोड़ैयाहाट से विधायक और 1994 में गोड्डा लोकसभा सांसद रहे. इससे पूर्व झारखंड स्वायत्तशासी परिषद के उपाध्यक्ष भी रहे. लेकिन धीरे-धीरे उनकी पकड़ पार्टी पर मजबूत होता देख उन्हें झामुमो ने निष्काषित कर दिया. फिर उन्होंने अपनी पार्टी झारखंड विकास दल बनाई और चुनाव लड़ा. मगर असफल रहे और लगभग 7 साल से भाजपा में है. ये चर्चा हुई कि उन्हें गोड्डा से चुनाव लड़ाया जाएगा, लेकिन आज वे राजनीतिक रूप से हाशिये पर हैं.


साइमन मरांडी की कभी झामुमो में थी अच्छी पकड़

साइमन मरांडी भी गुरुजी शिबू सोरेन के काफी करीबी लोगों में गिने जाते रहे थे. वे राजमहल से झामुमो के टिकट पर सांसद भी रहे. वहीं, वे लिट्टीपाड़ा से विधायक भी रहे. उनकी पत्नी सुशीला हांसदा भी कई बार विधायक रहीं, लेकिन टिकट को लेकर झामुमो से नाराजगी हुई और फिर वे भाजपा में चले गए. 2014 में वे भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन झामुमो के डॉ अनिल मुर्मू से हार गए. अनिल मुर्मू के आकस्मिक निधन के बाद 2017 में वे फिर झामुमो में आए और पार्टी टिकट पर फिर से जीते. हालांकि इस बार उनके सामने उनके ही पुराने साथी हेमलाल मुर्मू भाजपा से थे. 2019 के चुनाव में स्वास्थ्य कारणों से उनकी जगह झामुमो की टिकट पर उनके बेटा दिनेश विलियम मरांडी ने चुनाव लड़ा और अभी विधायक हैं.

हेमलाल मुर्मू कभी थे शिबू सोरेन के करीबी

हेमलाल मुर्मू भी शिबू सोरेन के करीबी रहे हैं. हेमन्त सोरेन उन्हें चाचा कहते हैं, लेकिन बरहेट से जब हेमन्त सोरेन ने चुनाव लड़ने का एलान कर दिया तो हेमलाल नाराज हो गए. वे चौदहवीं लोकसभा में पार्टी के राजमहल से सांसद के साथ ही हेमन्त सरकार में मंत्री भी रहे. लेकिन टिकट के खटपट में उन्होंने पार्टी छोड़ भाजपा ज्वाइन कर लिया. उन्हें भाजपा ने राजमहल लोकसभा और बरहेट, लिट्टीपाड़ा से पांच बार आजमाया, लेकिन हर बार उसे झामुमो से हार का सामना करना पड़ा. लगभग एक दशक बाद फिर 2023 में झामुमो में लौट आए है. उन्हें उम्मीद है झामुमो उन्हें किसी सीट से चुनाव में आजमाएगी और पुनः जीत का स्वाद चख पाएंगे. वे झामुमो से 4 बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके हैं.

स्टीफेन मरांडी रह चुके हैं झारखंड के उप मुख्यमंत्री

स्टीफेन मरांडी भी पुराने झारखंड मुक्ति मोर्चा के बड़े नेता रहे हैं और झारखंड के उपमुख्यमंत्री और मंत्री रह चुके हैं. उनकी भी टिकट को लेकर हेमन्त सोरेन खटपट हुई और वे निर्दलीय 2005 ने चुनाव लड़कर जीत गए. फिर वे कांग्रेस और बाबूलाल मरांडी वाली झारखंड विकास मोर्चा में भी रहे, लेकिन 2014 में वे फिर झामुमो में शामिल हुए और महेशपुर से जीत दर्ज कर विधायक बने.

इस तरह से अब तक जिस भी झामुमो के विधायक और सांसद ने संथाल में भाजपा का दामन थामा है. उसे जीत नसीब नहीं हुई है. अब खुद गुरूजी की बहू सीता सोरेन ने भाजपा का दामन थामा है, देखने वाली बात होगी कि उसका निर्णय कितना सही साबित होता है.

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Last Updated : Mar 20, 2024, 6:28 AM IST

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