जामताड़ा: झारखंड सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सह विधायक इरफान अंसारी के क्षेत्र में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से बदहाल है. मरीज को इलाज की पूरी सुविधा नहीं मिल पाती है. इलाज के अभाव में मरीज को या तो निजी नर्सिंग होम में या फिर पश्चिम बंगाल जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है. लेकिन जिले का स्वास्थ्य महकमा और स्वास्थ्य मंत्री हैं कि अपने ही क्षेत्र की व्यवस्था से अनजान हैं.
स्वास्थ्य मंत्री के क्षेत्र में स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल
झारखंड सरकार के स्वास्थ्य मंत्री और जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी के क्षेत्र में स्वास्थ्य व्यवस्था अच्छी नहीं है. स्वास्थ्य सुविधा का काफी अभाव है. लाखों, करोड़ों की लागत से अस्पताल भवन तो बना दिया गया है, लेकिन मरीज के इलाज के लिए कोई सुविधा नसीब नहीं होती है, न पर्याप्त मात्रा में दवा उपलब्ध होती है और न ही डॉक्टर उपलब्ध होते हैं. जिसके कारण मरीज को इधर-उधर भटकना पड़ता है.
रेफर अस्पताल बन कर रह गया है जामताड़ा का सदर अस्पताल
स्वास्थ्य सुविधा के लिए जामताड़ा में सदर अस्पताल तो बनाया गया है लेकिन यह सदर अस्पताल रेफर अस्पताल बनकर रह गया है. यहां से ज्यादातर मरीजों को रेफर कर दिया जाता है. महिला डॉक्टर का भी अभाव है. दूसरे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से यहां महिला डॉक्टर की प्रतिनियुक्ति कहने के लिए की गई है. कभी महिला डॉक्टर मिलती हैं कभी नहीं मिलती हैं. ऐसे में महिला मरीजों को काफी परेशानी होती है. जब कोई सीरियस मरीज यहां आता है तो उसे तुरंत रेफर कर दिया जाता है.
निजी नर्सिंग होम या फिर पश्चिम बंगाल इलाज के लिये जाने को हैं मजबूर
इलाज के घोर अभाव में मरीज को या तो निजी नर्सिंग होम में या फिर पश्चिम बंगाल जाने को मजबूर होना पड़ता है. सबसे ज्यादा परेशानी गरीब मरीज को उठानी पड़ती है. आरोप है कि गरीब मरीज झोला छाप डॉक्टर या नीम हकीम के पास इलाज कराते हैं, अन्यथा असमय ही काल के मुंह में समा जाते हैं. सदर अस्पताल में बिचौलियों के हावी रहने का आरोप है. नर्सिंग होम से साठ गांठ रहती है. जहां रेफर कर नर्सिंग होम में पहुंचा दिया जाता है. वहां उनसे ऑपरेशन कर मोटी रकम वसूली जाती है. इसमें सबका कमीशन फिक्स रहता है. कई बार इसकी शिकायत प्रशासन से की गई बावजूद इसके आज भी सदर अस्पताल में बिचौलिए हावी हैं.
मिहिजाम का अस्पताल खुद है बीमार
सदर अस्पताल तो छोड़िए मिहिजाम शहर के लिए करोड़ों की लागत से हासी पहाड़ी में अस्पताल भवन तो बना दिया गया है, लेकिन शहर से दूर रहने के कारण एक तो मरीज वहां पहुंच नहीं पाते हैं और दूसरे अस्पताल में सुविधाओं का अभाव भी है. नर्स के भरोसे अस्पताल चलाये जाने का आरोप भी है. यहां महिला डॉक्टर नहीं है. एकमात्र डॉक्टर है तो वह दिन में बैठते हैं शाम को नहीं बैठते हैं. रविवार को यहां कोई डॉक्टर ही नहीं रहता है.
इलाज के लिए या तो मरीज बाहर जाते हैं या फिर निजी डॉक्टर से दिखाना पड़ता है. जिनके पास पैसा है वह तो अपना इलाज करा लेते हैं, मगर परेशानी गरीबों को होती है. अस्पताल के आसपास फैक्ट्री से उड़ने वाला जहरीला धुंआ भी अस्पताल को प्रदूषित कर रहा है, जिसके कारण यहां के कर्मी भी ग्रसित हैं. कर्मियों को काम करना दुश्वार होने लगा है.
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