गिरिडीहः वैसे विकास का दंभ राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक खूब भरती है. कोई प्रधानमंत्री सड़क योजना तो कोई मुख्यमंत्री सड़क योजना से गांव की बदहाल सड़क को दुरूस्त करने की बात कहता है. कभी माननीयों के कोटे से गांव की गलियों को पक्की करने की बात कही जाती है. कई स्थानों पर काम भी हुआ है और गांव की बदहाली को दूर किया गया लेकिन आज भी ऐसे गांव है जहां विकास की बात कहना ही बेमानी होगा. हम एक ऐसे गांव की हकीकत बता रहे हैं जहां विकास भी अपना रास्ता भूल जाता है. हम बात कर रहे हैं डुमरी प्रखंड के अंतर्गत अतकी पंचायत के चूटरूमबेड़ा के आंगनबाड़ी टोला की.
चूटरूम बेड़ा, आदिवासी बाहुल्य गांव है. इस गांव का ही एक टोला है आंगनबाड़ी. यह टोला भी आदिवासी बाहुल्य है. इस टोला से चूटरूमबेड़ा गांव की दूरी लगभग डेढ़ किमी है. इस डेढ़ किमी में रास्ता नहीं है, पथरीला और उबड़ खाबड़ पगडंडी है. इसी पगडंडी से होकर लोगों को गुजरना पड़ता है.
पेयजल की भी समस्या, पहाड़ जंगल में भटकते हैं लोग
इस टोला के लोगों को पेयजल की समस्या से भी दोचार होना पड़ता है. यहां जल जीवन मिशन के तहत भी कार्य नहीं हुआ है. ऐसे में लोगों को पानी के लिए भटकना पड़ता है. यहां के निवासी रमेश हेंब्रम, लुकास सोरेन, नुनुराम हेंब्रम बताते हैं कि सड़क तो बदहाल है ही, पानी ने भी जीना मुहाल कर दिया है. यहां जल जीवन मिशन की बोरिंग भी नहीं हुई है. जब बोरिंग हुई ही नहीं तो पानी कहां से मिलेगा.
इस गांव के के लिए नहीं हैं फंड
यहां के लोग जनप्रतिनिधि के साथ साथ अधिकारी से भी नाराज हैं. इनका कहना है कि यहां की समस्या की जानकारी सभी को है. सांसद, विधायक, मुखिया, पंचायत सेवक सभी जानते हैं कि इस टोला की क्या क्या समस्या हैं. यहां वोट मांगने भी लोग आते हैं लेकिन उसके बाद हमें भूला दिया जाता है. हर बार कहा जाता हैं कि फंड नहीं है. लोग सवाल करते हैं कि आखिर उनके टोला तक आते आते फंड को क्या हो जाता हैं. यह भी बताया कि इस टोला के बच्चों को पढ़ाई के लिए भी काफी जद्दोजहद कराना पड़ता है. यहां के बच्चे दूसरे गांव के आंगनबाड़ी केंद्र में जाते हैं.
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