आसमानी आग में जलकर बुझा रहे पेट की आग, तंबू में कट रहा मजदूरों का जीवन - Korba heat effect - KORBA HEAT EFFECT
Laborers working hard to provide Food देश समेत दूसरे राज्यों में नौतपा ने आसमान से आग बरसाई.छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं रहा.गर्मी के कारण कई शहरों का तापमान 48 डिग्री तक पहुंच गया. घरों को ठंडा रखने वाले संसाधन जैसे कूलर,पंखे यहां तक एसी भी फेल हो गए.ऐसे में घर से बाहर निकलकर मजदूरी जैसा काम करना आसान नहीं होता.आसमान की इस जला देने वाली आग के आगे भी एक आग ऐसी है,जिसे बुझाने के लिए हर आग और तपन छोटी लगती है.ये आग है भूख की,जिसे बुझाने के लिए किसी भी आग और तपिश को सहने के लिए इंसान तैयार रहता है. scorching heat in Korba
तंबू में कट रहा मजदूरों का जीवन (ETV Bharat Chhattisgarh)
कोरबा : कोरबा में भीषण गर्मी के बीच मजदूर पेट की भूख मिटाने की खातिर प्लास्टिक के तंबुओं में दिन गुजार रहे हैं.इनके लिए जितना कष्टदायक दिन है,उतनी ही कष्टदायक रात भी. क्योंकि दिन में सूरज की गर्मी और फिर रात में तपती धरती के कारण ना तो ये सो पाते हैं और ना ही दूसरा काम अच्छे से कर सकते हैं. उमस भरी गर्मी में मजदूर इसी तंबू के सहारे अपना दिन काटते हैं.
दिन में मेहनत,रात में नहीं मिलती राहत :दिन भर जी तोड़ मेहनत के बाद जब ये मजदूर रात को तंबू में लौटते हैं तो उमस और गर्मी से चैन नहीं मिलता.बस परिवार का पेट पालने के लिए वो इस जुल्म को भी चुपचाप सह रहे हैं. इन्हीं तंबू में निवास करने वाली धुरपा तार की तीन बेटियां हैं. दो की शादी हो चुकी है, एक बेटी उनके साथ है. जो इन्हीं तंबू में साथ रहने आई है.
''गर्मी तो लगती है. परेशानी भी बहुत है, सुबह उठकर खाना पकाने से लेकर मजदूरी करने तक गर्मी में जीना दुश्वार हो जाता है. लेकिन क्या करें कोई विकल्प नहीं है. मजबूरी है, इसलिए यहां आए हैं.''-धुरपा तार,मजदूर
धुरपा के मुताबिक मजदूरी के बाद मेहनताना के तौर पर जो पैसे मिलते हैं. उससे राशन पानी का इंतजाम हो जाता है.इसी से परिवार चलता है. सभी परिवार बालाघाट से कोरबा आए हुए हैं.काम खत्म होने के बाद भी इसी तरह तंबू में रहेंगे.
गर्मी से मजदूरों की तबीयत भी खराब : टीनू राम पंचतिलक भी मजदूरी करने कोरबा पहुंचे हैं. टीनू बताते हैं कि रेलवे स्टेशन में नाली के लिए गड्ढा खोदने का काम हमें दिया गया है. रोज सुबह हम काम पर निकल जाते हैं. इसके बाद जो परिवार के बच्चे हैं, वह तंबू की देखभाल करते हैं.
''गर्मी अधिक होने पर वह पेड़ के नीचे चले जाते हैं और वहीं दिन बिताते हैं. बच्चे फिलहाल पढ़ाई भी नहीं कर रहे हैं. गर्मी इतनी है कि हममें से कुछ मजदूरों की तबीयत भी खराब हो गई थी. जिनके इलाज के लिए हम जिला अस्पताल गए थे.'' टीनू राम,मजदूर
टीनू के मुताबिक रात को नींद भी नहीं आती. पसीना इतना आता है कि शरीर पसीने से तरबतर हो जाता है. लेकिन मजदूरी तो करनी है. काम करना है तो परेशानी झेलनी पड़ेगी. इसलिए हम यहां निवास कर रहे हैं. तंबू के निर्माण के लिए जो प्लास्टिक और लकड़ियों की जरूरत थी. वह हमें ठेकेदार ने उपलब्ध कराया था.
गांव जाते समय मिलता है पूरा पैसा : रेलवे स्टेशन में मजदूरी करने वाले श्यामू ने बताया कि यहां 40 परिवार आएं हैं. सभी मजदूरी का काम कर रहे हैं. जिनमें महिला और पुरुष दोनों शामिल हैं. जोड़ी के हिसाब से हमें मेहनताना मिलता है. हफ्ते में पार्ट पेमेंट किया जाता है.
''महीने के अंत में पूरा पैसा मिलता है. इसी से हमारा जीवन चल रहा है. कोरबा में जितनी गर्मी हम इस साल झेल रहे हैं. इतनी गर्मी हमने कहीं नहीं देखी है. गर्मी और धूप के कारण हमें काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है. लेकिन मजदूरी के लिए इस गर्मी को बर्दाश्त करना ही होगा.'' श्यामू ,मजदूर
मजदूरों की मानें तो जितनी गर्मी कोरबा में वो झेल रहे हैं,उतनी गर्मी पहले कभी नहीं झेली.काम की तलाश में कोरबा आए हैं और मजदूरी कर रहे हैं.परिवार का पेट पालना है इसलिए इस भीषण गर्मी में भी सब कुछ सह रहे हैं.मजदूर पेट की आग बुझाने के लिए प्लास्टिक के तंबू में दिन गुजार रहे हैं. कोरबा शहर के रेलवे स्टेशन के पास ऐसे ढेरों तंबू देखे जा सकते हैं. जिनमें मजदूर अपने परिवार के साथ रह रहे हैं. जमीन पर बने इन प्लास्टिक के तंबुओं में हर तरफ खतरा मंडराता रहता है.सांप और बिच्छू का डर तो है ही साथ ही साथ भीषण गर्मी में लू के कारण जान भी जाने का खतरा मंडराता है.ऐसे में रेलवे को भी चाहिए काम के साथ-साथ मजदूरों की जान का भी ख्याल रखा जाए.