कोरबा के आम और जामुन साउथ के लोगों की बढ़ाएंगे इम्यूनिटी, छत्तीसगढ़ के फल दक्षिण में दिखाएंगे दम - Korba Farmers become self reliant - KORBA FARMERS BECOME SELF RELIANT
कोरबा में आम और जामुन का पल्प निकाल यहां के किसान आत्मनिर्भर बन रहे हैं. इन पल्पों को साउथ के राज्यों में भेजने की तैयारी चल रही है. साथ ही इन पल्पों से बने प्रोडक्ट के मार्केटिंग की भी तैयारी की जा रही है.
आम और जामुन का पल्प निकाल सबल बन रहे किसान (ETV Bharat)
कोरबा:कोरबा जिले के वनांचल विकासखंड करतला के किसान आम और जामुन का पल्प निकल रहे हैं. यह नाबार्ड के बाड़ी विकास योजना कार्यक्रम से संभव हुआ है. दरअसल, करतला के किसान अन्य किसानों की तुलना में एक कदम आगे हैं. यहां ब्लैक राइस और काजू की खेती पहले ही वह कर रहे हैं. अब आम और जामुन का उत्पादन भी वह पिछले लगभग 5 से 7 सालों से कर रहे हैं, लेकिन जब इनका बंपर उत्पादन होता है तो कच्चे आम तो बिक जाते, लेकिन पके हुए आम सड़ने लगते हैं. जामुन की स्थिति भी यही थी.
गांव में लगाई गई पल्प निकालने की मशीन: करतला के किसानों के समूह को नाबार्ड से सहायता मिली. गांव नवापारा में आम और जामुन का पल्प यानी गूदा निकालने की मशीन इंस्टॉल की गई. अब किसानों के समूह इस मशीन से आम का पल्प निकल रहे हैं. जिसकी सप्लाई साउथ के राज्यों तक करने की तैयारी है. किसान अब इसकी मार्केटिंग के लिए भी कार्य योजना बना रहे हैं.
फ्रीजर में स्टोर हो रहा पल्प:करतला के किसान गर्मी के मौसम में आम और जामुन का बंपर उत्पादन करते हैं. अब तक यहां के आम और जामुन को ट्रेडिंग करने वाले लोग ट्रेडिंग कर पहले बिलासपुर ले जाते. यहां से जरूरतमंद कंपनियों को बेच देते थे. किसानों ने ही जानकारी दी कि साउथ के राज्यों में आम और जामुन के पल्प निकालने की फैक्ट्री है. यहां से जामुन का सिरका देशभर में सप्लाई किया जाता है, लेकिन रॉ मटेरियल हमारे करतला से ही जाता रहा है. अब किसानों ने खुद ही आम और जामुन का पल्प निकालने की मशीन इंस्टॉल कर ली है. नाबार्ड की बाड़ी विकास योजना के तहत किसानों को एक फ्रीजर भी मिला है. जहां वह न सिर्फ आम और जामुन का पल्प निकल रहे हैं, बल्कि इसे फ्रीजर में स्टोर करके भी रख रहे हैं. ताकि लंबे समय तक इसे स्टोर किया जा सके. साथ ही बेहतर मार्केटिंग के साथ इसे सही दाम पर बेचा जा सके.
पहले जब हम आम का उत्पादन करते थे तो पके हुए आम के सड़ने की समस्या आती थी. फसल बर्बाद हो जाते थे लेकिन अब जबसे पल्प निकालने की मशीन लगी है. हमने बड़े पैमाने पर आम का पल्प निकला है. इसे फ्रीज में स्टोर भी करके रखते हैं. फैक्ट्री में जब हम काम करते हैं तो हमें 300 रुपया रोजी भी मिल रही है, जिससे हमारा जीवनस्तर और भी सुधरा है. -दिल बाई, किसान
समूह के जरिए कर रहे उत्पादन: करतला के गांव नवापारा में सैकड़ों किसान बाड़ी योजना से जुड़े हैं. यहां कृषक उत्पादक संगठन का निर्माण किया गया है. किसानों के संगठन को ही नाबार्ड ने योजना के तहत पल्प निकालने की मशीन और फ्रीजर दिया है. किसान अब एक तरह से आम और जामुन के पल्प निकालने की फैक्ट्री का संचालन कर रहे हैं. जहां यदि कोई किसान काम करता है तो उसे रोजी के तौर पर मेहनताना भी दिया जाता है. नाबार्ड की ओर से तकनीकी सहायता भी दी जाती है.
करतला के ये समूह काफी बढ़िया काम कर रहा है. काजू और ब्लैक राइस का उत्पादन पहले ही ये लोग करते थे. आम और जामुन की खेती भी वह बड़े पैमाने पर करते आ रहे हैं, लेकिन पके हुए आम का नुकसान उन्हें झेलना पड़ता था. इसके सड़ने की समस्या थी. उन्हें नुकसान झेलना पड़ता था. इसे देखते हुए हमने नाबार्ड की बड़ी विकास योजना के तहत उन्हें मशीन और फ्रीजर प्रदान किया है. अब वह इसका पल्प निकाल रहे हैं और इसे फ्रीजर में स्टोर करके भी रखते हैं.आम और जामुन के पल्प का मार्केट बेहद बड़ा है. आम के पल्प से आइसक्रीम चॉकलेट और कई तरह के प्रोडक्ट बनते हैं, जबकि जामुन का सिरका शुगर के मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद होता है. इसे साउथ के राज्यों तक सप्लाई करने की तैयारी की जा रही है. फिलहाल 500 किलो आम का पल्प तैयार है, जिसकी मार्केटिंग की कार्ययोजना भी किसान बना रहे हैं, जिसे हम समय-समय पर सहायता देते रहते हैं. -एसके प्रधान, जिला विकास प्रबंधक, नाबार्ड
आम की आइसक्रीम, जामुन का सिरका शुगर पेशेंट के लिए फायदेमंद: आम और जामुन का फल और इससे बनने वाले उत्पादों का एक बड़ा मार्केट है, लेकिन करतला जैसे विकासखंड में इसका पल्प निकालने के काम को मूर्त रूप दिया जा सकता है. इस पर कम ही लोग विश्वास करेंगे. यहां से आम और जामुन ले जाने के बाद ट्रेडर्स इसे बड़ी कंपनियों को सप्लाई कर देते थे. नाबार्ड के अधिकारी की मानें तो आम के पल्प का चॉकलेट, आइसक्रीम से लेकर कई तरह के उत्पादों में इस्तेमाल होता है, जबकि जामुन के पल्प से बना सिरका शुगर पेशेंट के लिए बेहद फायदेमंद है. यहां से जो रॉ मटेरियल जाता है, उसका एक बड़ा बाजार है. किसानों के लिए अब मार्केट की तलाश भी की जा रही है. इसकी मार्केटिंग की योजना पर भी काम चल रहा है.