कोरबा :छत्तीसगढ़ की ऊर्जानगरी कोरबा में मजदूरों के इलाज के लिए 56 करोड़ की लागत से 100 बिस्तरों का अस्पताल बनाया गया. ये हॉस्पिटल डिंगापुर में है.लेकिन आज तक इस अस्पताल में मजदूरों के लिए इलाज संभव नहीं हो सका है. इस अस्पताल का भूमि पूजन दो अलग-अलग सांसदों ने किया. यूपीए-2 के समय केंद्रीय राज्यमंत्री और कोरबा सांसद डॉ चरणदास महंत ने भूमिपूजन किया.इसके बाद बीजेपी सांसद बंशीलाल महतो ने इस अस्पताल का भूमिपूजन किया. अस्पताल बनकर तैयार होने के बाद सितंबर 2019 में इसे मिनिस्ट्री आफ लेबर एंड एंप्लॉयमेंट, भारत सरकार के अधीन संचालित एम्पलाइज स्टेट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन(ESIC) को सौंपा गया.
चार साल बाद भी नहीं आए अच्छे दिन :ESIC को अस्पताल मिलने के बाद आज चार साल बीत गए हैं. लेकिन आज भी ये अस्पताल डॉक्टर और मरीजों की राह देख रहा है.आज भी मजदूरों को इस अस्पताल में बेहतर इलाज का इंतजार है. यह अस्पताल सिर्फ और सिर्फ अपनी आलीशान बिल्डिंग और मरीजों को यहां से रेफर करने के लिए जाना जाता है. मजदूर को कैशलेस स्कीम के तहत ठोस और अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं वाला इलाज मिलने का सपना अब भी अधूरा है. अस्पताल से सिर्फ मजदूरों को रेफर किया जा रहा है.
श्रम मंत्री के क्षेत्र में हॉस्पिटल बेहाल :इस हॉस्पिटल में एक डेंटिस्ट और एक आई स्पेशलिस्ट की पदस्थापना है. इसके अलावा अस्पताल में किसी भी तरह के कोई सुविधा नहीं है. एक्स-रे और सोनोग्राफी जैसी सुविधाओं के लिए भी मजदूरों को निजी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ता है. वहीं इस व्यवस्था के लिए अब कांग्रेस और बीजेपी के नेता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लग रहे हैं. यह हाल तब है, जब कोरबा के विधायक लखनलाल देवांगन प्रदेश के उद्योग एवं श्रम मंत्री हैं. श्रम मंत्री के जिले में ही मजदूरों के अस्पताल का हाल बेहाल है.
कितने पद हैं स्वीकृत ?:ईएसआईसी के 100 बेड अस्पताल में एडमिनिस्ट्रेशन लेवल पर मेडिकल सुपरिंटेंडेंट(एमएस), असिस्टेंट मेडिकल सुपरिंटेंडेंट, डिप्टी डायरेक्टर सहित उच्च स्तर के लिए कल 28 पद स्वीकृत हैं. 50 बेड में ये संख्या 18 है. कोरबा में एमएस के साथ ही असिस्टेंट डायरेक्टर और कुछ ही पदों पर अफसर नियुक्त किए गए हैं. इसी तरह स्पेशलिस्ट चिकित्सकों के 14 रेगुलर और 5 कांट्रैक्ट बेसिस के पद स्वीकृत किए गए हैं. 50 बेड अस्पताल में कोरबा के लिए 8 रेगुलर और पांच कॉन्ट्रैक्ट स्पेशलिस्ट चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं. एनेस्थीसिया, चेस्ट(पलमोनरी) डेंटल, डर्मेटोलॉजी, ईएनटी, जनरल मेडिसिन, आई, जनरल सर्जरी, ओबेसिटी एंड गाइनेकोलॉजिस्ट, ऑर्थोपेडिक्स, पीडियाट्रिक्स, पैथोलॉजी और रेडियोलॉजी स्तर के डॉक्टर्स के पद स्वीकृत हैं. इसी तरह जनरल ड्यूटी और मेडिकल ऑपरेशंस(GDMO) के लिए डॉक्टरों के 38 पद स्वीकृत हैं. 50 बेड अस्पताल के लिए यह संख्या 26 है.
नर्सिंग स्टाफ और पैरामेडिकल टीम के लिए भी पद स्वीकृत:ईएसआईसी के हंड्रेड बेड अस्पताल में स्टाफ नर्स नर्सिंग सिस्टर एएनएम सहित गैर मेडिकल स्टाफ को मिलाकर 185 पद स्वीकृत किए गए हैं फिलहाल 50 बेड अस्पताल के हिसाब से कोरबा के लिए इस कैटेगरी में भी 112 पद स्वीकृत है.पैरामेडिकल स्टाफ कैटेगरी में भी डाइटिशियन, रेडियोग्राफर, जूनियर रेडियोग्राफर, फार्मासिस्ट, ड्रेसर सहित 18 प्रकार के अलग-अलग पदों पर कु 50 मेडिकल स्टाफ के पद स्वीकृत हैं. लेकिन इनके विरुद्ध भी भर्ती नहीं की गई है. लगभग सभी पद खाली हैं.
कब मिलता है ईएसआईसी हॉस्पिटल ?:कर्मचारी राज्य बीमा निगम भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली संस्था है. नियम के तहत किसी भी असंगठित क्षेत्र की संस्था में यदि 10 या इससे अधिक कर्मचारी हैं. तो उनके मूल वेतन से 1.75% के अंशदान के साथ नियोक्ता को ईएसआईसी से लाइसेंस लेना होगा.फिर उन्हें कैशलेस स्वास्थ्य सुविधा दी जाती है. इस स्कीम के तहत फैक्ट्री, कारखानों में काम करने वाले कर्मचारी और ठेका श्रमिकों को कवर किया जाता है. जिनकी तनख्वाह 21000 रुपये या इससे कम है. बीमारी स्थाई, विकलांगता या मृत्यु होने पर भी ढेरों सुविधाएं मिलती हैं. मेडिकल लीव पर होने पर भी कर्मचारियों को वेतन की सुविधा दी जाती है. किसी भी जिले में यदि ईएसआईसी के 50000 या इससे अधिक बीमित कर्मचारी और उनके आश्रित परिजन हैं.
तो वहां 100 बेड अस्पताल की स्थापना की जाती है. कोरबा जिले ने यह अर्हता वर्ष 2012-13 में ही पार कर ली थी. वर्तमान में कोरबा में बीमित व्यक्तियों की संख्या 1 लाख से भी अधिक है.
रिफरल सेंटर बनकर रह गया अस्पताल:ईएसआईसी बीमित व्यक्ति को कैशलेस सुविधा मिलती है. लेकिन यदि स्वयं की सुविधा नहीं है तो बीमित व्यक्ति को रेफरल की सुविधा मिलती है. कोरबा जिले में भी तीन बड़े निजी अस्पतालों से ईएसआईसी का अनुबंध है.इसके लिए ईएसआईसी के अधिकारी इसका कंसेंट मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डॉक्टर्स से लेते हैं. लेकिन इस कंसर्न को लेने के लिए मरीज या परिजन पहले मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल जाते हैं. फिर उसे वापस लेकर ईएसआईसी के अफसरों के पास आते हैं. इसके बाद मरीजों को किसी दूसरे हायर सेंटर में रेफर किया जाता है. यह प्रक्रिया बेहद जटिल होने के कारण कई मरीज बीच में ही निजी हॉस्पिटल का रुख कर लेते हैं.क्योंकि कई बार इमरजेंसी में रेफरल सिस्टम काम नहीं आती.
अस्पताल को लेकर राजनीति :जिला कांग्रेस कमेटी ग्रामीण के जिला अध्यक्ष सुरेंद्र जायसवाल ने इसे लेकर बीजेपी पर आरोप लगाया है. सुरेंद्र जायसवाल ने कहा कि कांग्रेस शासन में अस्पताल का भूमिपूजन हुआ था.लेकिन अस्पताल को लेकर कई अनियमतताएं बरती गई.