रांचीः आरटीआई एक ऐसा कानूनी हथियार जिसके जरिए आप शासन प्रशासन के कामकाज को लिखित तौर पर जान सकते हैं. मगर झारखंड में यह संवैधानिक अधिकार आम लोगों से दूर है. हालत यह है कि 8 मई 2020 को तत्कालीन प्रभारी मुख्य सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर चौधरी के कार्यकाल समाप्त होते ही राज्य सूचना आयोग में सुनवाई पूरी तरह से ठप है. सुनवाई नहीं होने की वजह से आयोग में काफी अपील लंबित है. हर दिन जिला स्तर से करीब 100 अपील याचिका ऑनलाइन और ऑफलाइन आयोग के दफ्तर में पहुंचती है. आयुक्तों की नियुक्ति के इंतजार में ये सारी अपील यूं ही आयोग में पड़ी हुई है.
अब तक तीन बार सूचना आयुक्त के लिए मांगे गए आवेदन
राज्य सरकार के द्वारा सूचना आयुक्तों के खाली पदों को भरने के लिए अब तक तीन बार आवेदन मांगे जा चुके हैं. इसके बाबजूद चार वर्षों में सरकार नियुक्त नहीं कर पाई है. सबसे पहले जनवरी 2020 में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार के समय कार्मिक प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग ने मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के रिक्त पदों के लिए विज्ञापन निकाला था. आवेदन प्राप्त होने के बाद सरकार के द्वारा विधानसभा में मामला उठने पर यह भी जवाब दिया गया था कि एक मुख्य सूचना आयुक्त और पांच सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए समिति गठित है.
मुख्य सूचना आयुक्त के लिए 63 आवेदक को शॉर्टलिस्ट किया गया था और पांच सूचना आयुक्त के लिए 354 आवेदन प्राप्त हुए थे. इसके बाद एक बार फिर नये सिरे से आवेदन 2022 में मांगे गए. सरकार इन आवेदनों को भी मूर्तरूप देने में सफल नहीं हुई. चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष नामित नहीं होने की बात कही गई. इन सबके बीच विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही एक बार फिर सरकार को सूचना आयोग की याद आने लगी है. कार्मिक ने चुनाव आयुक्तों के पद को भरने की कवायद शुरू करते हुए 31 जुलाई तक नए सिरे से आवेदन मांगा है.
सूचना आयुक्त की नियुक्ति पर हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला
सूचना आयुक्तों के खाली पद को भरने के लिए सरकार पर न्यायपालिका का भी दबाव लगातार बना हुआ है. प्रारंभ में नेता प्रतिपक्ष नहीं होने की बात कहकर सरकार पल्ला झाड़ती रही. मगर अब तो राज्य में अमर कुमार बाउरी बतौर नेता प्रतिपक्ष भी मौजूद हैं, तो ऐसे में सरकार ने एक बार फिर आवेदन प्रक्रिया की शुरुआत कर हाईकोर्ट को तीन सप्ताह के भीतर नियुक्ति कर लेने का शपथपत्र के माध्यम से जवाब दिया है.