नई दिल्ली : दिल्ली में पीने के पानी की किल्लत को लेकर आमतौर पर हर बार गर्मियों में हाय तौबा रहती है. दिल्ली सरकार अपने स्तर पर पानी की पर्याप्त सप्लाई करने के प्रयास भी करती है. बावजूद इसके यह नाकाफी नजर आते हैं. सरकार पानी की कमी को पूरा करने के साथ-साथ दिल्ली को खूबसूरत शहर बनाने को लेकर दिल्ली की वॉटर बॉडीज (जल निकायों/तालाबों) को रिवाइव करने की दिशा में भी काम कर रही है. नई वॉटर बॉडीज डेवल्प करने पर भी जोर है जिससे कि मॉनसून के वक्त बारिश के पानी को स्टोर किया जा सके.
डॉ. फैयाज ए. खुदसर (पर्यावरणविद एवं वैज्ञानिक) ने ईटीवी भारत से इस मुद्दे पर बातचीत की. उन्होंने वॉटर बॉडीज को रिवाइव करने से लेकर पानी की किल्लत, जलजमाव और अन्य कई दूसरी समस्याओं का समाधान निकालने के सुझाव भी दिए. उन्होंने बताया कि दिल्ली ऐतिहासिक तौर पर वाटर बॉडीज के लिए जानी जाती है. यमुना नदी दिल्ली से निकलती है और दिल्ली के बसने और बचने का आधार ही यमुना नदी है. इस लंबे समय के दौरान यह स्वाभाविक है कि कुछ वाटर बॉडीज का अतिक्रमण भी हुआ होगा. वर्तमान में कुछ वाटर बॉडीज बहुत अच्छी स्थिति में हैं, कुछ पर काम भी हुआ है और कुछ पर काम चल भी रहा है.
यमुना के फ्लड प्लेन एरिया में वेटलैंड आईडेंटिफाई करना है जरूरी
पर्यावरण विद डॉक्टर फैयाज ने यह भी सुझाव दिया कि हमें पानी की किल्लत और जल जमाव की समस्या को दूर करने के लिए दोनों का समाधान ढूंढना जरूरी है. डॉ. फैयाज ने यह भी बताया कि यह देखना बहुत जरूरी है कि यमुना के फ्लड प्लेन एरिया में कितनी वेटलैंड (नम भूमि) सक्रिय है. इसको आईडेंटिफाई और चिन्हित करना जरूरी है और उसका रेस्टोरेशन करना आवश्यक है. उन्होंने बताया कि अगर हम ऐसा कर पाएं तो ऑफशोर रिजर्वायर (अतटीय जलाशय) बना सकते हैं और जो वेटलैंड है, वह ऑफशोर रिजर्वायर की तरह काम करेंगे. इसमें बाढ़ का बहुत सारा पानी जमा हो सकता है और जब दिल्ली को पानी की जरूरत होगी तो स्टोर वाटर का प्रयोग जरूरत के मुताबिक किया जा सकता है. वहीं, यह पानी बाद में फिल्टर होकर नदी में भी जा सकता है जो नदी की ताकत को बढ़ाने का काम भी करेगा.नॉर्मल ड्रेनेज पेटर्न का सिद्धांत है कि हम नदी से नीचे नहीं जाएं
बारिश से होने वाले जल जमाव या बाढ़ से होने वाली समस्या को लेकर कहा कि फ्लड प्लेन एरिया में वेटलैंड को पहचानना और उसको रिस्टोर करना है. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इंफ्रास्ट्रक्चर, स्ट्रक्चर में हमें बहुत सी चीजों को भी ध्यान में रखना जरूरी है. उन्होंने बताया कि जब भी कहीं से कोई नदी निकलती है तो वह उसे शहर, क्षेत्र और भूभाग का सबसे निचला स्तर होता है. उन्होंने बताया कि यह नॉर्मल ड्रेनेज पेटर्न का सिद्धांत है कि हम नदी से नीचे नहीं जाएं. अगर हम इसका ख्याल रखते हुए नेचुरल ड्रेनेज पेटर्न को चैनेलाइज करते हुए अवरोध पैदा न होने दें तो पानी की किल्लत और जल भराव की समस्या से लड़ा जा सकता है
नदी से नीचे जाकर कोई संरचना सस्टेनेबल नहीं
डॉ. फैयाज बताते हैं कि नदी सबसे निचले स्तर पर बहती है और जब हम इस लेवल से नीचे जाकर कोई संरचना या स्ट्रक्चर होगा तो वह सस्टेनेबल नहीं होगा और उस पर लाभ से ज्यादा खर्च भी आएगा. सड़कों पर होने वाले जल जमाव और दूसरी समस्याओं के लिए कई स्तर पर काम किया जा सकता है. इसमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग, स्ट्रोम वाटर स्ट्रक्चर और दूसरे कई स्तर पर और तेजी से काम करने की जरूरत है. मौजूदा समय में भी इन सभी स्तर पर काम किया जा रहा है. इसके लिए जरूरी है कि इस प्रोजेक्ट को महत्वाकांक्षी मानते हुए लंबे समय तक इस पर काम किया जा सके, तभी हम इन समस्याओं का कोई ठोस समाधान निकालने में सक्षम हो पाएंगे.
दिल्ली में वाटर बॉडीज की संख्या 893
केंद्र सरकार भी दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश की वाटर बॉडीज को लेकर गंभीर है जिसका बड़ा उदाहरण पिछले साल पहली बार किया गया वाटर बॉडीज सेंसश (जल निकाय गणना) है जिसने देश के सामने इसके आंकड़े पेश किए. दरअसल, दिल्ली सरकार की दिल्ली पार्क एंड गार्डन सोसायटी के आंकड़े बताते हैं कि राजधानी में कुल 1045 वाटर बॉडीज यानी जल निकाय हैं लेकिन केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की ओर से पिछले साल 2023 में करवाए गए जल निकाय गणना के दौरान दिल्ली में वाटर बॉडीज की संख्या 893 बताई गई है.
70 फ़ीसदी वाटर बॉडीज जिनका किसी तरह उपयोग नहीं हो रहा
इस गणना के बाद यह भी खुलासा हुआ कि 70 फ़ीसदी वाटर बॉडीज ऐसी हैं जिनका किसी तरह से उपयोग नहीं हो रहा है. केंद्रीय मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में कुल 893 वाटर बॉडीज में से मात्र 237 वाटर बॉडीज ऐसे हैं जिनका इस्तेमाल किया जा रहा है. हैरान करने वाली बात यह है कि इनमें से 656 वाटर बॉडीज ऐसी है जिनका इस्तेमाल किसी भी तरह से नहीं हो पा रहा है. माना जाता है कि दिल्ली की जो वाटर बॉडीज इस्तेमाल में नहीं हो पा रही हैं, उसके पीछे की खास वजह इंडस्ट्रियल कचरा और लोगों की तरफ से करवाए गए कंस्ट्रक्शन और दूसरे कारण हैं. इन आंकड़ों से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि दिल्ली में वाटर बॉडीज यानी तालाब दम तोड़ते जा रहे हैं जबकि दिल्ली सरकार इनको पुनर्जीवित करने की दिशा में जुटी है.