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सड़क, बिजली तो है, लेकिन शिक्षा के लिए आज भी तरस रही तोरपा विधानसभा की जनता

तोरपा विधानसभा क्षेत्र राज्य गठन के दो दशक बाद भी मूलभूत सुविधाओं से दूर है. जानिए क्या कहते हैं यहां के लोग.

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तोरपा विधानसभा की जनता (ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 18, 2024, 5:17 PM IST

खूंटी:कभी नक्सलियों के खौफ में रहने वाला तोरपा विधानसभा क्षेत्र अब लगभग नक्सल मुक्त हो चुका है. बावजूद इसके विकास से कोसो दूर है. सड़कें और पुल पुलिया जरूर बने हैं, लेकिन क्षेत्र की जनता शिक्षा और बुनियादी समस्याओं से आज भी जूझ रही है. बेरोजगार युवक बालू का अवैध धंधा कर रोजगार कर रहे हैं. तोरपा वासी अब विकास सहित शिक्षा देने वाले जनप्रतिनिधि की तलाश कर रहे हैं. दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जनता अब विकास चाहती है.

तोरपा से ईटीवी भारत संवादाता की ग्राउंड रिपोर्ट (ईटीवी भारत)


झारखंड गठन के बाद तोरपा विधानसभा सीट अब तक तीन बार भाजपा और दो बार झामुमो के पाले में गई है. लेकिन क्षेत्र की बुनियादी सुविधाओं को लेकर किसी ने खास ध्यान नहीं दिया है. सड़कें और पुल पुलिया के अलावा बिजली भी पहुंची है, लेकिन तोरपा क्षेत्र के लोग शिक्षा से दूर हो गए हैं. उच्च शिक्षा के लिए लोगों को क्षेत्र से बाहर जाना पड़ता है. तोरपा विधानसभा क्षेत्र की जनता अब ऐसे उम्मीदवार की तलाश कर रहे हैं जो सबका साथ सबका विकास कर सके. लोगों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में राजनीतिक पार्टियां एक अच्छे उम्मदीवार की घोषणा करेगी. उसी के अनुसार तय करेंगे कि इस बार तोरपा विधानसभा सीट का बादशाह कौन होगा.

कर्रा, रनिया और सिमडेगा जिले का बानो प्रखंड तोरपा विधानसभा सीट में आता है. इस सीट पर आदिवासियों की 60 फीसदी आबादी है, जबकि 40 फीसदी सवर्ण वर्ग के लोग रहते हैं. इस सीट पर 1 लाख 97 हजार 107 मतदाता हैं. जिसमें 96 हजार 524 पुरुष और 1 लाख 583 महिला मतदाता हैं. 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में तोरपा सीट पर भाजपा से कोचे मुंडा विधायक चुने गए थे. उनको इस चुनाव में 43 हजार 482 वोट मिले थे. जबकि झामुमो ने सुदीप गुड़िया को टिकट दिया था और वह दूसरे नंबर पर रहे. सुदीप गुड़िया को 33 हजार 852 वोट मिले थे. झामुमो के पूर्व विधायक पौलुस सुरीन उस वक्त स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़े और तीसरे नंबर पर रहे, जिसमें उनको कुल 19 हजार 234 वोट मिले थे.

झारखंड गठन के बाद पीएलएफआई संगठन का वर्चस्व बढ़ा, 2019 तक पूरे जिले में इसके नाम से लोग थर्राते थे. समय के साथ नक्सलवाद पर पुलिस ने लगाम लगाते हुए सुप्रीमो की गिरफ्तारी के बाद संगठन से जुड़े नक्सलियों को मार गिराया. बचे लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया तो कुछ ने सरेंडर कर दिया. जिसके बाद तोरपा क्षेत्र नक्सल मुक्त है, बावजूद विकास से कोसो दूर रहने के कारण जनप्रतिनिधियों से खासा नाराजगी है.

क्षेत्र में बेरोजगारी के कारण पलायन और मानव तस्करी एक समस्या रही जो कभी दूर नहीं हुई है. विधानसभा क्षेत्र के तोरपा, कर्रा और रनिया प्रखंड क्षेत्र बालू माफियाओं का अड्डा बना, जिससे लोगों की परेशानी बढ़ गई है. क्षेत्र के वोटरों को अब ऐसे जनप्रतिनिधि की तलाश है, जो विकास के साथ-साथ बालू माफियाओं पर अंकुश लगाए और नदियों को संरक्षित करने का काम करे ताकि आने वाले दिनों में तोरपा के लोगों को पानी की समस्या से जूझना न पड़े.

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