रायपुर : छ्त्तीसगढ़ सरकार ने गाइडलाइन दर पर संपत्ति रजिस्ट्री शुल्क लेने की घोषणा की है. सरकार का दावा है कि इससे मध्यम वर्गीय परिवार को लाभ मिलेगा. उन्हें बैंक लोन लेने में भी आसानी होगी. संपत्ति मामलों के जानकार बताते हैं कि इससे संपत्ति लेने वाले के साथ सरकार को भी फायदा होगा. इसे समझने के लिए ईटीवी भारत ने संपत्ति मामलों की जानकार और हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट दिवाकर सिन्हा से बात की.
गाइडलाइन दर और बाजार दर में अंतर :गाइडलाइन दर वह है जो सरकार किसी संपत्ति का दर निर्धारित करती है. वहीं, बाजार भाव वह है जिस पर लोग तात्कालिक स्थिति में संपत्ति की खरीदी बिक्री करते हैं. इन दोनों में काफी अंतर होता है. गाइडलाइन दर से बाजार भाव हमेशा ज्यादा होता है.
गाइडलाइन दर पर संपत्ति रजिस्ट्री का समझिए गणित (ETV Bharat Chhattisgarh)
पहले बाजार भाव पर इस स्टाम्प ड्यूटी देना होता था, जबकि गाइडलाइन के अनुसार संपत्ति का दाम कम होता था. इस वजह से लोग गाइडलाइन दर पर ही रजिस्ट्री कराते थे और जो गाइडलाइन दर व बाजार भाव के अंतर की राशि रहती थी, उसे नगद लेन देन करते थे. : दिवाकर सिन्हा, सीनियर एडवोकेट, छत्तीसगढ़ हाईकोर्टब्लैक मनी पर लगाम की कोशिश: हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट दिवाकर सिन्हा का कहना है कि नगद लेन देन में ब्लैक मनी को बढ़ावा मिलता था. साथ ही इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को राजस्व की हानि होती थी. गाइडलाइन पर स्टाम्प ड्यूटी लगने से ब्लैक मनी पर रोक लगेगी. साथ ही जो खरीदी के बाद विक्रेता के पास पैसे आते थे, उसे भी इधर उधर नहीं करना पड़ेगा. अब वह भी वाइट मनी रहेगी. हालांकि, इस खरीदी बिक्री पर इनकम टैक्स उसे देना होगा. इस तरह जहां एक ओर संपत्ति खरीदने बेचने वालों को फायदा मिलेगा. वहींं, दूसरी ओर सरकार को भी राजस्व मिलेगा. बैंक से लोन लेने में भी होगा आसान : सीनियर एडवोकेट दिवाकर सिन्हा ने बताया कि इस व्यवस्था के लागू होने से अब बैंक से लोन लेने में भी आसानी होगी. क्योंकि पहले गाइडलाइन दर पर रजिस्ट्री होती थी. जितने रुपए की रजिस्ट्री कराई जाती थी, उतने का ही लोन बैंक से मिलता था. क्योंकि बाजार भाव से गाइडलाइन दर कम होती थी. ऐसे में खरीदार को अंतर की राशि की व्यवस्था करने के लिए परेशान होना पड़ता था.
अब संपत्ति खरीदने के लिए जो बाजार भाव होगा, उतने का लोन मिल सकेगा. साथ ही स्टांप ड्यूटी के रूप में गाइडलाइन के अनुसार ही रजिस्ट्री शुल्क देना होगा. इससे उपभोक्ताओं को एक ओर को लोन लेने में आसानी होगी. वहीं, दूसरी ओर उनका रजिस्ट्री शुल्क भी बचेगा. : दिवाकर सिन्हा, सीनियर एडवोकेट, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
ऐसे समझिए रजिस्ट्री का गणित : इससे पहले संपत्ति की खरीद बिक्री में गाइडलाइन दर और सौदे की राशि में जो भी अधिक होता था, उस पर रजिस्ट्री शुल्क देना होता था. जैसे किसी संपत्ति का गाइडलाइन मूल्य 20 लाख रुपये है और उसका सौदा 30 लाख में हुआ है. ऐसे में रजिस्ट्री शुल्क 30 लाख पर 4 प्रतिशत के हिसाब से 1 लाख 20 हजार रुपये देना पड़ता था. लेकिन संशोधन के बाद संपत्ति खरीदने वाले अब सौदे की रकम गाइडलाइन दर से अधिक होने पर भी वास्तविक मूल्य को अंकित कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें कोई रजिस्ट्री शुल्क नहीं देना होगा.
क्रेता और विक्रेता मिलेगा लाभ : मान लीजिए 20 लाख रुपये की गाइडलाइन मूल्य वाली प्रॉपर्टी का सौदा 30 लाख में होता है. ऐसे में रजिस्ट्री शुल्क 20 लाख पर ही 4 प्रतिशत के हिसाब से 80 हजार रुपये देना होगा. इस तरह क्रेता और विक्रेता को 40 हजार रुपये की बचत होगी.