रायपुर : छत्तीसगढ़ में पहले चरण का चुनाव बस्तर लोकसभा सीट के लिए होगा.इस सीट पर मौजूदा समय में कांग्रेस काबिज है.लेकिन छत्तीसगढ़ में जब से बीजेपी की सरकार आई है तब से ही बस्तर लोकसभा सीट को लेकर बीजेपी ने तैयारी शुरु कर दी थी.इस लोकसभा सीट पर वोटर्स का मूड बदलता रहता है. पिछले पांच चुनाव की बात करें तो बीजेपी का पलड़ा भारी नजर आता है.लेकिन पिछले चुनाव में जिस तरह से मोदी लहर के बाद भी कांग्रेस ये सीट बचाने में कामयाब रही,उसे देखकर यही लगता है कि बीजेपी के लिए इस बार भी मुकाबला आसान नहीं होगा.बीजेपी के लिए इस लोकसभा में अच्छी बात ये है कि हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में बस्तर जिले की सीटों में बीजेपी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है. 9 में से 6 विधानसभा सीट पर बीजेपी काबिज है.इसलिए बीजेपी के वोटर्स ने इस बार अपने कैंडिडेट का साथ दिया तो एक बार फिर बीजेपी इस सीट पर कब्जा कर सकती है.बीजेपी ने बस्तर लोकसभा सीट से महेश कश्यप को चुनावी मैदान में उतारा है.
कांग्रेस के लिए प्लस प्वाइंट :वहीं कांग्रेस की बात करें तो यहां से पार्टी ने छह बार के विधायक कवासी लखमा को अपना उम्मीदवार बनाया है. कवासी लखमा कोंटा से विधायक हैं.सीनियर लीडर के साथ कवासी अपने क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है. भले ही कवासी ने स्कूल का मुंह तक ना देखा हो,फिर भी छह भाषाओं का ज्ञान कवासी को है.कवासी लखमा में खासियत ये भी है कि यदि वो किसी चीज को ठीक तरह से सुन लें तो उन्हें वो बात लंबे समय तक याद रहती है.यहीं नहीं जनता के बीच जाकर कवासी आसानी से घुल मिल जाते हैं.देसी अंदाज और अपने समर्थकों को साधने का हुनर कवासी लखमा को आता है.इसलिए पिछली कांग्रेस के सरकार में कवासी लखमा को आबकारी मंत्री का पद भी मिला था.लेकिन इस बार कवासी को पार्टी दिल्ली भेजना चाहती है.लिहाजा बस्तर की रणभूमि में इस बार अपने सबसे भरोसेमंद सिपाही को कांग्रेस ने उतारा है. आज हम आपको बताएंगे बस्तर लोकसभा सीट का इतिहास साथ ही जानेंगे किस उम्मीदवार ने इस लोकसभा सीट पर सबसे लंबे समय तक अपना दबदबा कायम रखा.
पहले चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से हारी : 1952 से लेकर 1999 तक बस्तर लोकसभा मध्यप्रदेश का हिस्सा थी. देश के पहले चुनाव में इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा ने विजय पताका लहराया था.इस चुनाव की खास बात ये थी कि कांग्रेस उम्मीदवार सुरती किसतिया इस सीट पर बुरी तरह से हारे थे. कोसा ने पहले चुनाव में 1 लाख 77 हजार 588 मत हासिल किए. वहीं कांग्रेस उम्मीदवार सुरती को 36 हजार 257 वोटों से ही संतोष करना पड़ा. इसके बाद कांग्रेस ने इस लोकसभा सीट पर मेहनत की.कांग्रेस ने दोबारा 1957 में सुरती किसतिया को टिकट दिया.सुरती ने भी दोबारा टिकट मिलने पर कांग्रेस को निराश नहीं किया.सुरती ने करिश्मा करते हुए निर्दलीय उम्मीदवार बोदा दादा को बुरी तरह से हराया. सुरती ने दूसरे चुनाव में 1 लाख 40 हजार 961 मत हासिल किए.वहीं बोदा 41 हजार 684 वोट ही हासिल कर सके.
1957 के बाद निर्दलियों का दबदबा : 1957 में बड़ी जीत हासिल करने वाली कांग्रेस के लिए आगामी चार लोकसभा चुनाव किसी बुरे सपने से कम ना थे.क्योंकि कांग्रेस लगातार चार लोकसभा चुनाव हारी. 1962 से 1977 तक बस्तर लोकसभा सीट पर निर्दलीयों ने राज किया. 1962 में दो निर्दलीय उम्मीदवार पहले और दूसरे नंबर पर रहे थे. जिसमें 87557 वोट पाकर लखमू भवानी ने जीत हासिल की.वहीं दूसरे नंबर पर निर्दलीय बोदा दादा थे.1967 में निर्दलीय उम्मीदवार जे सुंदरलाला ने जीत हासिल की. सुंदरलाल ने 53 हजार 798 वोट हासिल किए थे.इस चुनाव में कांग्रेस का सूरज ढल चुका था.क्योंकि राष्ट्रीय पार्टी पांचवें नंबर थी. इसके बाद 1971 के चुनाव में भी निर्दलीय उम्मीदवार लम्बोदर बलियार ने चुनाव जीता.दूसरे नंबर पर पीलूराम कृपाराम रहे.पीलूराम ने भी निर्दलीय चुनाव लड़ा था.
1977 में भारतीय लोकदल ने खोला खाता :1977 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार लम्बोदर बलियार कांग्रेस में शामिल हुए और चुनाव लड़ा.लेकिन कांग्रेस की किस्मत का ताला नहीं खुला.क्योंकि इस बार कांग्रेस के रास्ते में भारतीय लोकदल के उम्मीदवार रिगपाल शाह केसरी शाह खड़े हो गए. रिगपाल ने कांग्रेस उम्मीदवार लम्बोदर को बुरी तरह से हराया.रिगपाल को जहां 1 लाख 1007 मत मिले वहीं लंबोदर को 50 हजार 953 वोटों से संतोष करना पड़ा.
साल | जीते उम्मीदवार | पार्टी | हारे उम्मीदवार | पार्टी |
1952 | मुचाकी कोसा | निर्दलीय | सुरती किसतिया | कांग्रेस |
1957 | सुरती किसतिया | कांग्रेस | बोदा दादा | निर्दलीय |
1962 | लखमू भवानी | निर्दलीय | बोदा दादा | निर्दलीय |
1967 | जे सुंदरलाल | निर्दलीय | आर झादू | बीजेएस |
1971 | लंबोदर बलियार | निर्दलीय | पीलूराम कृपाराम | निर्दलीय |
1977 | रिगपाल शाह केसरी | भारतीय लोकदल | लंबोदर बलियार | कांग्रेस |
1980 में कांग्रेस का हुआ उदय : किसी राष्ट्रीय पार्टी के लिए चार बार लगातार एक ही लोकसभा सीट से हारना किसी बुरे सपने से कम ना था. कांग्रेस एक के बाद एक चार झटके खा चुकी थी.लिहाजा साल 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने रणनीति में बदलाव किया. पिछली गलतियों से सबक लेकर कांग्रेस ने 1980 में नए उम्मीदवार को मैदान में उतारा. कांग्रेस के लिए लक्ष्मण कर्मा प्रत्याशी बने. आखिरकार कांग्रेस का एक्सपेरिमेंट काम कर गया. लक्ष्मण ने कांग्रेस को निराश नहीं करते हुए जनता पार्टी के उम्मीदवार समारु राम परगनिया को हरा दिया.
कांग्रेस ने पीछे मुड़कर नहीं देखा : 1980 में जीत का स्वाद चखने के बाद कांग्रेस ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. चार बार लगातार लोकसभा चुनाव हारने वाली कांग्रेस ने आगामी तीन लोकसभा चुनाव बड़े मार्जिन से जीते.कांग्रेस ने 1984 से 1991 तक मंकूराम सोदी को टिकट देकर चुनाव लड़वाया.सोदी पार्टी के लिए मील का पत्थर साबित हुए. 1984 में सोदी ने सीपीआई नेता महेंद्र कर्मा को हराया. इसके बाद 1989 में बीजेपी के संपत भंडारी को पटखनी दी. इसके बाद 1991 में बीजेपी उम्मीदवार राजाराम तोडेम को भी मंकूराम सोदी ने चुनाव हरा दिया. लेकिन 1996 में कांग्रेस को फिर से निर्दलीय उम्मीदवार के हाथों हारना पड़ा. कांग्रेस के विपक्ष में खड़े हुए निर्दलीय उम्मीदवार महेंद्र कर्मा ने मंकूराम सोदी को 14 हजार मतों से हरा दिया.