मानसून में घना हुआ गुलजार (ETV BHARAT BHARATPUR) भरतपुर.मानसूनी सीजन के शुरुआत में हुई अच्छी बरसात की वजह से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और आसपास के जंगल के जलाशयों में अच्छी मात्रा में पानी पहुंच चुका है. यही वजह है कि अब घना और आसपास के जंगलों में करीब 10 से अधिक प्रजाति के सैकड़ों पक्षियों ने नेस्टिंग कर ली है. घना में जहां ओपन बिल स्टॉर्क, स्नेक बर्ड आदि ने तो घना के पास के जंगल में आईबिस, स्पूनबिल आदि पक्षियों ने डेरा डाल लिया है. ऐसे में अब जल्द ही पक्षियों के घोंसलों में बच्चे भी नजर आने लगेंगे.
इस बार मानसून की शुरुआत में ही कुल औसत बरसात की करीब 50 फीसदी यानी 227 एमसीएफटी बरसात हो चुकी है. इससे घना के जलाशयों के साथ ही आसपास के जंगलों के जलाशयों में भी अच्छी मात्रा में पानी पहुंच चुका है. मानसूनी बरसात ने घना के अंदर के पानी की कमी को करीब-करीब पूरा कर दिया है. यही वजह है कि घना के अंदर और पास वाले जंगल में अच्छी संख्या में नेस्टिंग नजर आने लगी है.
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इन पक्षियों ने की नेस्टिंग :वाइल्डलाइफर देवेंद्र सिंह ने बताया कि मानसून से पहले घना में पहुंचे ओपन बिल स्टार्क की बरसात के साथ ही संख्या बढ़ गई है. इसके अलावा घना में स्नेक बर्ड, इग्रेट आदि ने भी नेस्टिंग कर ली है. घना के पास मलाह क्षेत्र के वेटलैंड के जंगल में ब्लैक हेडेड आईबिस, ग्रे हेरोन, कैटल ईग्रेट, नाइट हेरोन , पर्पल हेरोन, यूरेशियन स्पूनबिल आदि प्रजाति के सैकड़ों पक्षियों ने नेस्टिंग कर ली है.
वाइल्डलाइफर देवेंद्र सिंह ने बताया कि घना और बाहर के जंगल में पक्षियों के लिए पर्याप्त पानी और भोजन उपलब्ध हो रहा है. सुरक्षित वातावरण के चलते यहां अच्छी संख्या में नेस्टिंग हो रही है. मानसूनी बरसात बढ़ने के साथ ही पक्षियों की संख्या भी बढ़ती जाएगी. सर्दियों की शुरुआत में अक्टूबर माह से प्रवासी पक्षियों का आना शुरू हो जाएगा.
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गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में सर्दियों के मौसम में करीब 350 से अधिक प्रजाति के हजारों पक्षी प्रवास पर पहुंचते हैं. बीते लंबे समय से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान जल संकट के दौर से गुजर रहा है. पांचना बांध का पानी नहीं मिलने की वजह से यहां पक्षियों की संख्या में भी काफी गिरावट आई है. हालांकि मानसूनी सीजन में घना के अंदर व बाहर के जलाशयों में पानी पहुंच जाता है लेकिन घना के लिए जरूरी पूरा 550 एमसीएफटी पानी लंबे समय से नहीं मिल पा रहा. जिसका असर यहां के हैबिटाट पर भी देखने को मिल रहा है.