भोपाल।एक बार फिर कमलनाथ सुर्खियों में हैं. राहुल गांधी से मुलाकात के बाद से इन सुर्खियों ने इतना जोर पकड़ा है कि एमपी में कमलनाथ के समर्थको को उम्मीद बंधने लगी. लेकिन सवाल ये है कि जिस तरह से कमलनाथ पर पहले कांग्रेस ने भरोसा जताया और फिर जैसे भरोसा दरकता गया. पार्टी के तजुर्बेदार नेता अपना गढ़ नहीं बचा पाए उसके बाद क्या एमपी में उनकी वापसी इतनी आसान होगी.
कांग्रेस को कमलनाथ का उपयोग करना चाहिए
वरिष्ठ पत्रकार पवन देवलिया कहते हैं "कमलनाथ लंबे ब्रेक के बाद फिर एक्टिव होते दिखाई दे रहे हैं. कमलनाथ देश और मध्य प्रदेश के बड़े नेता हैं. उनके राजनीतिक अनुभव का लाभ होने जा रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अवश्य लेना चाहिए. उन्होंने तीन पीढ़ियों की राजनीति को देखा है."लेकिन क्या एमपी में उनकी वापसी इतनी आसान है. इस पर वे कहते हैं "इसमे गुंजाइश है. मेरा मानना है कि कमलाथ प्रभारी बनाकर हरियाणा या जम्मू कश्मीर भेजे जा सकते हैं. पुनर्वास राजनीति में ऐसे ही होते हैं. मध्यप्रदेश में कमलनाथ की वापसी फिलहाल तो नहीं दिखती. बावजूद इसके कि उनकी गैरमौजूदगी में कांग्रेस यहां बहुत सक्रिय या जीवंत दिखाई नहीं दे रही."
कमलनाथ की विदाई के कर्णधार कांग्रेसी ही
बीजेपी प्रवक्ता आशीष अग्रवाल कहते हैं "असल में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के नेताओ के राजनीतिक पतन में किसी दूसरे की नहीं कांग्रेसियों की ही भूमिका होती है. धड़ों में बंटी कांग्रेस के नेता एक दूसरे के पैरों की जमीन खींचने का कोई मौका नहीं छोड़ते तो कमलनाथ भी आखिरकार उसका शिकार बने और इस तरह से बने कि उनकी सियासत का आखिरी मैदान तक उनसे छीन लिया गया." वहीं, सवाल ये नहीं कि राहुल गांधी से आधा घंटे की मुलाकात कमलनाथ की वापसी का संकेत है. सवाल ये है कि क्या जीतू पटवारी, उमंग सिंघार, कमलनाथ का रेड कार्पेट वेलकम कर पाएंगे. कहा जाता है कि कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ की सियासी जमीन बचाने रिटायरमेंट के बाद पुनर्वास तलाश रहे हैं. और कुछ नहीं है."