Vastu Dosh Remedies : कलश स्थापना और वास्तु शास्त्र दोनों ही हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग हैं. धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा में कलश की स्थापना की जाती है. जबकि वास्तु शास्त्र का उपयोग घर और स्थान की सकारात्मक ऊर्जा सुनिश्चित करने के लिए होता है. इन दोनों के बीच संबंध का मुख्य उद्देश्य सकारात्मक शांति और समृद्धि प्राप्त करना है. वास्तु शास्त्र के अनुसार कलश स्थापना घर या पूजा स्थल पर सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने के लिए एक शक्तिशाली माध्यम है. जल से भरा हुआ कलश, जिस पर पत्ते और नारियल रखे जाते हैं, एक ऊर्जा का केंद्र बन जाता है. यह घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ावा देता है और बुरी शक्तियों को दूर करता है.
कलश स्थापना की दिशा
वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा का स्थान या मंदिर हमेशा उत्तर पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में होना चाहिए. कलश स्थापना भी इसी दिशा में करने से घर में सुख शांति और समृद्धि का वातावरण बना रहता है. उत्तर पूर्व दिशा को देवताओं की दिशा माना जाता है और इस स्थान को बेहद पवित्र माना गया है.
जल तत्व और वास्तु शास्त्र
वास्तु शास्त्र में जल तत्व का विशेष महत्व है. कलश में रखा जल जीवन और उर्वरता का प्रतीक है. कलश को उत्तर पूर्व दिशा में स्थापित करने से जल तत्व की ऊर्जा जागृत हो जाती है, जो मानसिक शांति स्वस्थ जीवन और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होती है. कलश स्थापना करके हम देवी देवताओं का आवाहन करते हैं. वास्तु शास्त्र में माना जाता है कि घर में देवी देवताओं की उपस्थिति सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाती है. कलश के माध्यम से देवी देवताओं का आवाहन करने पर घर की बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा से हम अपने आप को बचा लेते हैं. देवताओं का परिवार पर आशीर्वाद बना रहता है.
कलश संतुलन और स्थिरता का प्रतीक
वास्तु शास्त्र के अनुसार कलश को सही स्थान पर रखने से घर में उन्नति और समृद्धि आती है. वास्तु के नियमों का पालन करते हुए कलश की स्थापना की जाती है, तो पूरे घर के लिए सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र बनता है. कलश का आकार, उसमें रखा जल, पत्ते और नारियल वास्तु शास्त्र के अनुसार संतुलन और स्थिरता का प्रतीक होते हैं. यह ब्रह्मांड तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश का संतुलन बनाने में मदद करते हैं जो वास्तु शास्त्र के अनुसार मुख्य सिद्धांत हैं.