भोपाल: मध्य प्रदेश में बाघ और तेंदुए की आबादी तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में इनके बीच इलाके के वर्चस्व को लेकर टेरिटरी वार होना आम बात है, लेकिन मध्य प्रदेश के वन विभाग के सामने कुछ मामले ऐसे भी आए, जिसमें अपनी अलग टेरिटरी बनाने के लिए बाघों ने अपने पूर्वजों के दशकों पुराने रास्तों का इस्तेमाल किया. ये बाघ ने अपनी नई टेरिटरी बनाने के लिए 100 से 150 किलोमीटर दूर चले गए. जबकि इस मार्ग को कभी उनकी मां ने नहीं दिखाया था.
जब इस बात की जानकारी वन विभाग के अधिकारियों को लगी तो उन्होंने इस पर एक स्टडी कराई. जिसमें सामने आया कि आबादी बढ़ने के कारण बाघ ऐसे रास्तों की खोज कर नए इलाके का विस्तार करना चाहते हैं, जहां कभी उनके पूर्वज थे या उन रास्तों से होकर गुजरे थे.
भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की रिपोर्ट में खुलासा
भोपाल के आसपास के जंगलों के बाघों का मूवमेंट लगातर देवास, इछावर और सीहोर की ओर होना बताया जा रहा था. जबकि दशकों से इन जंगलों में कोई टाइगर नहीं आया था. ऐसे में टाइगर के मूवमेंट को देखते हुए मध्य प्रदेश वन विभाग ने एक स्टडी देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान से एक स्टडी कराई. इसमें सामने आया कि बाघ अपने दशकों पुराने पूर्वजों के कॉरिडोर का इस्तेमाल कर रहे हैं.
![MP TIGERS NO FIGHT FOR TERRITORY](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/08-02-2025/23501159_mp-tiger-_-info.jpg)
भोपाल से लेकर ओंकारेश्वर तक बाघों का कॉरिडोर
वन विभाग के पीसीसीएफ शुभरंज सेन ने बताया कि "जब वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों ने मध्य प्रदेश के बाघों और इनकी टेरिटरी का अध्ययन किया तो दो बातें सामने आई. इसमें पहला ये कि बाघों की संख्या बढ़ने से वे टेरिटोरियल फाइट की जगह नए इलाकों का विस्तार कर रहे हैं. दूसरी पहले कभी भोपाल के जंगलों से से सीधा ओंकारेश्वर तक बाघों का कॉरिडोर था, लेकिन बस्तियां बसने के कारण बाघों का मूवमेंट सीमित इलाके में सिमट गया. वनजीव संस्थान की स्टडी में ये भी सामने आया कि मध्य प्रदेश में बाघ-तेंदुए के ऐसे 11 जेनेटिक कॉरिडोर हैं.
![MP TIGERS NO FIGHT FOR TERRITORY](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/08-02-2025/mptiger_08022025135003_0802f_1739002803_21.jpg)
इन मामलों से समझिए कैसे बाघ बदल रहे इलाका
आबादी बढ़ने से बाघों में बदलाव आ रहा है, अब वो पूर्वजों के दशकों पर पुराने ढर्रे पर चलकर नई टेरिटरी बनाना चाह रहे हैं. बता दें कि ऐसा ही बाघ भोपाल के जंगलों से होकर 127 किलोमीटर दूर देवास और महू होते हुए नौरोदगही के जंगल में पहुंच गया. जबकि पहले इसे रेडिया कॉलर लगाकर सिवनी स्थित पेंच टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया था. खास बात यह थी कि इसने नैरोदेही तक पहुंचने के लिए उस रास्ते का इस्तेमाल किया, जिसे कभी पूर्वज इस्तेमाल करते थे.
![MP TIGERS FOLLOW ANCESTORS PATH](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/08-02-2025/mptiger_08022025135003_0802f_1739002803_277.jpg)
इसी प्रकार भोपाल का एक अन्य बाघ रायसेन होते हुए नैरोदेही पहुंच गया, बाद में अधिकारियों को पता चला कि उसने नौरोदेही में अपनी नई टेरिटरी बना ली है. वहीं एक अन्य बाघ सतपुड़ा नेशनल पार्क से रायसने पहुंच गया था. जिसे बाद में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया.
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मध्य प्रदेश में 1 हजार से अधिक हो सकती है बाघों की संख्या
बता दें कि बाघों की गणना हर 4 साल में की जाती है. इससे पहले साल 2022 में की गई थी. अब प्रदेश के टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ गई है. रातापानी टाईगर रिजर्व में ही 90 से अधिक बाघ हैं. इसी प्रकार अन्य टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या वर्तमान में 785 के करीब है. वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अब साल 2026 में बाघों की गणना होगी. ऐसे में मध्य प्रदेश में इनकी संख्या 1 हजार के पार पहुंच सकती है.